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________________ * गीता दर्शन भाग-4 कहा है ज्ञानियों ने अलोक, नान-वर्ल्ड, नो वर्ल्ड। जहां तक जगत हुए, और जवान हुए, और प्रेम में पड़े, और विवाह हुआ, और हैं, वहां तक लोक हैं, फिर अलोक है। वह अलोक में ही प्रवेश बच्चे हुए, और अब आप अपने बच्चे की शादी करके बारात लिए परमात्मा में प्रवेश है। वहां पुनरुक्ति नहीं है। जा रहे हैं, तभी बैंड-बाजे के शोर में नींद खुल गई। लेकिन घड़ी में ध्यान रखें, यहां सब कुछ पुराना है; वहां सब कुछ नया। यहां देखते हैं, तो लगता है, केवल मिनटभर सोए थे। तो मिनटभर में सब कुछ पुराना है; वहां सब कुछ नया। यहां सब कुछ बासा है; | यह चालीस साल का विस्तार कैसे देखा जा सका। वहां सब कुछ ताजा। यहां सब कुछ बूढ़ा है; वहां सब कुछ युवा, ___ एक मिनट है बाहर के लिए जो, सपने के लिए चालीस साल फ्रेश, ताजा। जैसे सुबह ओस की बूंद, सुबह-सुबह खिला हुआ | | हो सकता है। समय बड़ी अदभुत चीज है। बड़ी अदभुत चीज है। फूल-बस, खिला ही रह जाए और कभी सांझ न आए, और कभी | इसे छोड़ें। दोपहरी न हो, और फूल कभी मुरझाए न, और फूल कभी वापस | आइंस्टीन कहता था कि जगत में सभी कुछ सापेक्ष है, समय धूल में न गिरे। बस, वह ताजगी ताजी ही रह जाए, वैसी ही युवा, | भी। तो कई लोग उससे पूछ लेते थे कि सापेक्षता, रिलेटिविटी का वैसी ही युवा सदा-सदा के लिए। जैसे कोई गीत की कड़ी गूंजे, क्या अर्थ है? तो आइंस्टीन का सिद्धांत तो बहुत दुरूह है। कहते और गूंजती ही रहे, गूंजती ही रहे, गूंजती ही रहे; फिर कभी समाप्त | हैं, जब वह जीवित था, तो दस-बारह लोग ही सारी जमीन पर न हो। | उसके सिद्धांत को समझते थे। और ये दस-बारह भी इस मामले में लेकिन यह तो वहीं हो सकता है, जहां कुछ भी कभी शुरू न राजी नहीं थे कि बाकी समझते हैं कि नहीं समझते! वह दुरूह है; हुआ हो। लोक में सभी कुछ पुनरुक्त होता है, पुराना है। लोक के | गणित की गहनतम पहेली है। पार परमात्मा में सभी कुछ नया है, कुछ भी पुनरुक्त नहीं होता। लेकिन आम जन को भी समझाना पड़ता था आइंस्टीन को। तो वहां सभी कुछ नया है, सभी कुछ ताजा है। इस ताजगी की, इस | वह कहता था, ऐसा समझो कि तुम अगर एक गरम आग से तपे निर्दोष ताजगी की, इस कुंआरेपन की जो उपलब्धि है, वह आनंद हुए चूल्हे पर बिठा दिए जाओ, तो क्षणभर भी घंटों लंबा लगेगा। है। और इस पुराने की, बासे की, पुनरुक्ति की, बार-बार इसी में | | और अगर तुम्हारा बहत दिन का बिछड़ा हआ प्रियजन तम्हें मिल सड़ने और घूमने की जो प्रतीति है, वह दुख है। जाए और उसके हाथ में हाथ डालकर तुम बैठे रहो, तो घंटाभर भी परंतु हे कुंतीपुत्र, मेरे को प्राप्त होकर पुनर्जन्म नहीं होता। क्षणभर जैसा लगेगा। परमात्मा को पा लेने के बाद पा लेने को बचता क्या है, जिसके समय की प्रतीति चित्त पर निर्भर है। कभी आपने शायद खयाल लिए जन्म की और जीवन की जरूरत पड़े, समय की जरूरत पड़े! | | न किया हो, दुख में समय बहुत लंबा मालूम पड़ता है। घर में कोई हे अर्जुन, ब्रह्मा का जो एक दिन है, उसको हजार युग तक मर रहा है। बिस्तर पर पड़ा है। चिकित्सक कहते हैं, बस आखिरी अवधि वाला और एक रात्रि जो है, वह भी हजार युग अवधि वाली, रात है। बहुत लंबी लगती है रात। ऐसा लगता है, कभी समाप्त न ऐसा जो पुरुष तत्व से जानते हैं, वे योगीजन काल के तत्व को । | होगी। लेकिन सुख की स्थिति हो, चित्त प्रसन्न हो, प्रमुदित हो, तो जानने वाले हैं। रात ऐसे बीत जाती है कि जैसे समय ने कुछ बेईमानी की और घड़ी यह आज के लिए अंतिम सूत्र। के कांटे को जल्दी घुमाया। मैंने समय के बाबत थोड़ी बात आपसे कही। यहां समय के नहीं, घड़ी के कांटों को आपमें कोई उत्सुकता नहीं है, वे अपनी बाबत और भी कछ बातें कृष्ण ने कहीं। और कहा कि इस काल ही चाल से चलते चले जाते हैं। लेकिन चित्त के अनुसार समय के रहस्य को जो जान लेता है, वही जानने वाला है। यह काल का | लंबा और छोटा हो जाता है। रहस्य क्या है ? व्हाट इज़ दिस मिस्ट्री आफ टाइम? क्या है समय __ अगर आपने दिनभर बहुत-से काम किए, तो बाद में सोचने पर का राज? तो दो-तीन बातें खयाल में लें। लगेगा कि दिन बहुत लंबा था, क्योंकि बहुत भरा हुआ मालूम एक, कभी आपने खयाल किया, कुर्सी पर बैठे-बैठे झपकी लग | पड़ेगा। इसलिए यात्रा के दिन बहुत लंबे मालूम पड़ते हैं। लेकिन गई और आपने एक लंबा सपना देखा। लंबा-कि चालीस साल | आप दिनभर खाली बैठे रहे, तो खाली बैठते समय तो लंबा मालूम लग जाएं उस सपने के पूरे होने में। कि आप बच्चे थे, और बड़े पड़ेगा, बाद में याद करने पर बहुत छोटा मालूम पड़ेगा। क्योंकि
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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