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________________ *गीता दर्शन भाग-4* मन तो राज है; बनाता है भवन। बुद्ध कहते हैं, अब कोई जरूरत | | ताकि वह अपनी जगह पर पहुंच जाए। नहीं रही और नए घर बनाने की जीवन के। अब मैंने उसे जान जब आप क्रोध में तन जाते हैं, तत्काल आपको पश्चात्ताप की लिया, जो शाश्वत घर है-दि इटरनल होम। अति पर जाना पड़ता है। यह सिर्फ अपनी जगह पर वापस लौटने के उसकी प्रतीति हो, उसी को कृष्ण कहते हैं, मुझे पाकर वे | | लिए है, दि स्टेटस-को। वह जो पहली स्थिति थी क्रोध के पहले महात्माजन फिर क्षणभंगुर पुनर्जन्म की वासना नहीं करते। और | आपके मन की, उस तक आने के लिए। क्रोध कर लिया, एक सीमा वासना नहीं, तो पुनर्जन्म की पुनरुक्ति नहीं। क्योंकि हे अर्जुन, | | में खिंच गए। अब पश्चात्ताप कर लिया, अब दूसरी तरफ चले गए। ब्रह्मलोक से लेकर सब लोक पुनरावृत्ति वाले हैं, रिपिटीटिव हैं। | फिर क्रोध-पश्चात्ताप दोनों के बीच डोलते-डोलते अपनी जगह यह बहुत मजे का वचन है। इसे हम अपनी तरफ से समझें, तो | वापस आ गए। नाउ यू कैन बी एंग्री अगेन-अब आप फिर से क्रोध आसानी हो जाएगी। क्या आपको पता है, सभी वासनाएं | कर सकते हैं। क्योंकि आपने पुरानी स्थिति पा ली, जहां आप क्रोध रिपिटीटिव हैं? आप बहुत-सी वासनाएं नहीं कर रहे हैं, एक-एक के पहले थे। उस स्थान पर आप पुनः पहुंच गए। वासना को हजार-हजार बार दोहरा रहे हैं। और बड़ा मजा यह है | आप शायद सोचते होंगे, पश्चात्ताप इसलिए करते हैं, ताकि कि हर बार दोहराकर कहते हैं, कुछ नहीं पाया। और चौबीस | दुबारा क्रोध न करें, तो आप गलती में हैं; आपको जीवन के सत्यों घंटेभर बाद फिर दोहराने को तैयार खड़े हैं। बड़े अजीब हैं! का कोई भी पता नहीं है। पश्चात्ताप आदमी इसीलिए करता है, अपनी भी याद नहीं रहती कि चौबीस घंटे पहले क्या कहा था! | ताकि फिर क्रोध कर सके। यह बहुत उलटा लगेगा। लेकिन कितनी बार आपने क्रोध किया है? और हर क्रोध के बाद कितनी | | आपका अनुभव भी यही कहेगा। बार आप पछताए हैं ? शायद क्रोध से ज्यादा पछताए होंगे। क्योंकि | तो मैं तो आपसे कहूंगा, अगर क्रोध से मुक्त होना हो, तो अब आदमी एक दफे क्रोध करता है, तो पीछे पांच-सात दफे पछताता | की बार क्रोध करना, पश्चात्ताप मत करना। फिर देखें, क्रोध दुबारा है। लेकिन यह पछताना क्रोध के आने में रुकावट नहीं बनती। | आता है कि नहीं! अगर पश्चात्ताप से बच गए, तो फिर क्रोध को बल्कि जो जानते हैं, वे कहते हैं, यह पछतावा फिर से क्रोध करने | | दोहरा न सकेंगे, क्योंकि क्रोध के लिए पुरानी स्थिति उपलब्ध नहीं की तैयारी है। होगी। यह ऐसे ही है, जैसे मैं वृक्ष की एक शाखा को अपने हाथ में | | लेकिन पश्चात्ताप से बचना उतना ही मुश्किल है, जितना क्रोध नींचकर छोड़ दं, तो वह ठीक से एकदम अपनी जगह पर नहीं से बचना मुश्किल है। दोनों अनकांशस हैं, दोनों अचेतन हैं। आप पहुंचेगी। जब मैं उसे छोडूंगा, तब वह अपनी जगह से आगे निकल कहते हैं, क्या करें, क्रोध आ ही गया! फिर ऐसे ही, क्या करें, जाएगी. दसरी एक्सटीम पर। अगर मैं वक्ष की शाखा को खींचकर | पश्चात्ताप आ ही गया! दोनों एक साथ चलते रहेंगे। छोडूं, तो वह ठीक उसी जगह नहीं पहुंच जाएगी, जहां से मैं उसे | लेकिन क्रोध करके आपने कुछ पाया है? कुछ मिला? कोई रत्न खींच लाया था। जब में उसे छोडूंगा, तो वह अपनी जगह से और | हाथ लगा? कहेंगे, कुछ भी नहीं पाया; सिर्फ राख हाथ लगती है; आगे निकल जाएगी उतनी ही दूर, जितनी दूर मैं इस तरफ खींच | | और अपना ही पतित मन हाथ लगता है। गड्ढे में गिर गए। अपने लाया था। क्यों? ही हाथ से कीचड़ से भर गए। ऐसा हो जाता है। वह अपनी जगह पर लौटने की तैयारी कर रही है। फिर वापस | | लेकिन दुबारा फिर क्रोध क्यों करते हैं? क्योंकि वासना आएगी। फिर थोड़ी दूर इस तरफ आएगी, फिर वापस जाएगी। फिर | रिपिटीटिव है। चौबीस घंटे में फिर भूल जाते हैं। फिर वासना मांग थोड़ी दूर उस तरफ जाएगी। इस तरह कंपते-कंपते, कंपते-कंपते | करती है। कामवासना से भरता है चित्त। वह वापस अपनी जगह पर पहुंच जाएगी। अगर वैज्ञानिक हिसाब से सोचें, तो एक आदमी साधारणतः यह जो कंपन है, यह कंपन मैंने उसे खींचकर जो ताकत अपने | अपने जीवन में चार हजार बार संभोग करता है। साधारणतः। यह हाथ की दे दी थी, उसको फेंकने के लिए है; अपने से बाहर फेंकने | साधारण आदमी की बात कर रहा हूं, असाधारण का हिसाब के लिए है—जस्ट ट्रेंबलिंग। यह उस ऊर्जा को बाहर फेंक रही है | लगाना मुश्किल है। बिलकुल कामन आदमी, साधारण आदमी वह शाखा, जो मेरे हाथ ने खींचकर तनाव के द्वारा उसे दे दी थी, | चार हजार बार अपने जीवन में संभोग करता है। और चार हजार 82
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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