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________________ * गीता दर्शन भाग-42 मरते वक्त शायद ही कोई मांगता हो कि अब मुझे और कुछ नहीं | है? वह जा चुका। सब बह चुका है। जिस शरीर को लेकर तुम मांगना है। मांग जारी रहती है। आखिरी क्षण, डूबते हुए मौत में भी | | आए थे, वह भी एक बहाव है। मांग जारी रहती है। वही मांग बीज बन जाती है। दैट डिजायर प्रतिपल आदमी का शरीर बह रहा है नदी की तरह। मन बह रहा बिकम्स दि सीड। वही बीज बन जाती है और फिर नए जीवन का | है नदी की तरह। और जो नहीं बह रहा है, उसका हमें कोई भी पता अंकुर फूटना शुरू हो जाता है। नहीं है। जो बह रहा है, उसी में हम बह रहे हैं। और पकड़ रहे हैं इस बीज से दुख क्यों मिलता है? और यह नया जन्म क्यों दुख लहरों को, बबूलों को। लहर और बबूले हाथ में आते हैं और टूट ले आता है? क्षणभंगुर होने के कारण। | जाते हैं। क्षणभर को दिखाई पड़ता है कुछ, दौड़ते हैं, खो जाता है। कृष्ण कहते हैं, क्षणभंगुर पुनर्जन्म को...। दुख हाथ में लगता है। इस जगत में जो भी हम पा सकते हैं, वह क्षणभंगुर है, क्षणभर क्षणभंगुरता अस्तित्व का स्वभाव है। यहां कोई भी चीज थिर हाथ में होगा। पानी में जैसे बबूला उठ आए हवा का, बस, वैसा नहीं है। यद्यपि हम कोशिश करते हैं निरंतर कि सब कुछ थिर हो होगा। जब देखेंगे उसे, तो सूरज की किरणें उस पर इंद्रधनुष फैला | जाए। अगर मैं आपसे प्रेम करूं, तो मैं कहूंगा कि यह मेरा प्रेम रही होंगी। और जब हाथ से छुएंगे, तो वह फूट जाएगा। सोचा | | शाश्वत है, सदा रहेगा। सभी प्रेमी कहते हैं। और कोई चीज इस होगा, इंद्रधनुष को पकड़ लें हाथ में। नहीं मन में आता कि इंद्रधनुष | | जगत में शाश्वत नहीं है। मजा तो यह है कि जितनी देर लगेगी यह को ले आएं और घर के बैठकखाने में लगा दें? | बात कहने में कि यह प्रेम शाश्वत है और सदा रहेगा, और लेकिन जब इंद्रधनुष के पास पहुंचेंगे, तो वहां कुछ भी न | | चांद-तारे मिट जाएं, लेकिन यह प्रेम नहीं मिटेगा-शायद इतना मिलेगा। वहां कुछ है ही नहीं। वह जो इतना सुंदर धनुष खिंचा हुआ कहने में जितनी देर लगी, उतने में ही मिट गया हो। दिखता है आकाश के ओर-छोर, अगर जाएं उसके पास, तो वहां लेकिन कोशिश चलती है कि प्रेम को हम थिर बना लें, इटरनल कुछ भी नहीं है। केवल पानी के बिंदु, पानी की बूंदें और बूंदों से | बना लें। फिर दुख लगता है। क्योंकि जो थिर नहीं है, वह थिर नहीं गुजरती हुई सूरज की किरणों का जाल है। पास पहुंचकर कुछ भी | | हो सकता। जो क्षणभंगुर है, वह क्षणभंगुर रहेगा। वह उसका नहीं है वहां। अंतर-स्वभाव है। ठीक पूरे जीवन यही इंद्रधनुष की खोज है। और जब पहुंचते हैं | __इस जगत की प्रत्येक वस्तु का स्वभाव क्षणभंगुर है। जवान रहना पास, तो पाते हैं, कुछ हाथ नहीं लगा। और हाथ जो लगता है, वह चाहें सदा, न रह पाएंगे। प्रसन्न रहना चाहें सदा, न रह पाएंगे। मजा केवल टूटा हुआ इंद्रधनुष है, पानी की बूंदें हैं। न वहां रंग हैं, न तो यह है कि अगर दुखी भी रहना चाहें सदा, तो न रह पाएंगे। दुख वहां सौंदर्य है, न वहां कुछ और है। खाली हाथ रह जाता है। | | भी क्षणभंगुर है। वह भी बदलता रहेगा। वह भी बदलता रहेगा। क्षणभंगुर सब कुछ है इस जगत में। एक क्षण होना है उसका, || | यहां सभी कुछ बदलता हुआ है, फ्लक्स है। और उस क्षण में हम उसे पाने निकलते हैं। जब तक हम पाने के | | - हेराक्लतु यूनान का बहुत विचारशील मनीषी कहता था, यू कैन करीब पहुंचते हैं, वह क्षण बीत चुका होता है। दुख हाथ लगता है। नाट स्टेप ट्वाइस इन दि सेम रिवर–एक ही नदी में दुबारा नहीं असफलता, विषाद, फ्रस्ट्रेशन हाथ लगता है। और इस जगत में | उतर सकते। क्योंकि जब तक उतरे, नदी बह गई। दुबारा कैसे कोई भी चीज क्षणभंगर से ज्यादा नहीं हो सकती। उतरिएगा? सच तो यह है कि हेराक्लतु मुझे मिल जाए, तो उससे बुद्ध कहते थे—जब भी कोई उनके पास आता, तो बुद्ध कहते कहूं कि यू कैन नाट स्टेप इन दि सेम रिवर ईवेन वंस—एक बार थे जाते वक्त उससे–कि ध्यान रखना, तुम जो मुझसे मिलने आए भी नहीं उतर सकते हो एक ही नदी में। क्योंकि पैर जब नदी की थे, वही तुम वापस नहीं लौट रहे हो। वह आदमी चकित होता। वह | | ऊपर की सतह छूता है, तो नीचे की नदी भागी जा रही है। पैर जब कहता, मैं वही हूं। आप कैसी बात कर रहे हैं! मैं ही आया था | | नीचे जाता है, ऊपर की सतह भाग गई! घड़ीभर पहले। आपसे बात की। अब वापस लौट रहा हूं। । एक ही पर्त, एक फीट पानी की पर्त को भी एक साथ नहीं छुआ बुद्ध कहते, भ्रांति में हो तुम। इस जगत में सभी कुछ क्षणभंगुर जा सकता। सब भागा जा रहा है। और पूरा जीवन नदी की तरह है। है। क्षणभर पहले जिस मन को लेकर तुम आए थे, अब वह कहां इस भागने में हम स्थायी घर बनाने की कामना करते हैं। दुख 80
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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