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________________ * गीता दर्शन भाग-42 मैं मरने को तैयार हूं। सब काम पूरा है, मैं मरने को तैयार हूं। | दिखाई पड़ा था, वह धोखा सिद्ध होता है। एक मित्र कल ही आए थे; सालभर पहले भी आए थे। सालभर वे बोले, फिर भी एक वर्ष का मौका मुझे और दें। मैंने कहा, मैं पहले वे कहते थे कि मेरे बड़े लड़के की शादी मुझे करनी है; कम | मौका देने वाला कौन हूं! जब तुम्हीं मौका मांग रहे हो, तो परमात्मा से कम एक लड़के की शादी कर लूं, फिर संन्यास लूं। मैंने उनसे तम्हें मौका दिए चला जाएगा। उसने बहत-बहत जन्मों तक तम्हें कहा कि संन्यास से कोई बाधा नहीं पड़ती। लड़के की शादी मजे मौका दिया है। अधैर्य नहीं किया। आगे भी मौका देता रहेगा। और से करना। और संन्यासी पिता जितने आशीर्वाद दे सकेगा विवाह | हर बार तुम यही करते रहे हो। के क्षण में, संसारी पिता नहीं दे सकेगा। पर वे बोले, आप कहते ___ काम बाकी रह जाते हैं, कुछ न कुछ बाकी रह जाता है। और हैं ठीक, लेकिन विवाह में और गैरिक वस्त्र पहनकर खड़ा होऊंगा, मन कहता है, बस इसे पूरा कर लो। लेकिन उसे पूरा करने में हम थोड़ी अड़चन मालूम पड़ेगी। बस, सालभर रुक जाएं। एक लड़के | दस नई और वासनाएं पैदा कर लेते हैं। वे अधूरी रह जाती हैं। इस का विवाह कर दूं, फिर चिंता नहीं बाकी लड़कों की। कम से कम | अधूरेपन की कोई सीमा नहीं आती। तो फिर अगले जन्म की मांग एक का मुझसे निपट जाए। जरूरी हो जाती है। वह विवाह हो गया। वे कल फिर आए थे। अब वे कहते हैं, | ___ मरते क्षण में भी जो अधूरा रह जाता है, उसी के कारण हमें दूसरे पत्नी राजी नहीं है। जरा रुकें। मैं पत्नी को समझा-बझा लं। आखिर जन्म को स्वीकार करना पड़ता है। मरते क्षण में जो पूरा करके मर उसे दुख देने से भी क्या फायदा है! मैंने उनसे पूछा, कब तक | सकता है, उसका अगला जन्म नहीं होगा। क्योंकि उसे मांग ही नहीं समझा पाएंगे आप? कितना समय चाहिए? उन्होंने कहा, जैसे रह जाएगी। जन्म का करिएगा क्या? उसका कोई उपयोग नहीं है। आसार हैं, उसे देखकर कम से कम सालभर तो लग ही जाएगा। समय की मांग बंद हो जाए, तो अगला जन्म नहीं होता। लेकिन मैंने उनसे कहा, मुझे कोई अड़चन नहीं है। आप ही रुकने को राजी समय की मांग तो बनी रहती है। हैं, तो मुझे क्या अड़चन हो सकती है। लेकिन ध्यान रखें, इस मन और बहुत अजीब लोग हैं हम। एक तरफ कहते हैं कि समय से जन्मों-जन्मों तक समय की मांग रहेगी और घटना नहीं घट बहत कम है. और दसरी तरफ कहते रहते हैं दिन-रात कि समय सकेगी। क्योंकि सालभर पीछे आप कहते थे, बस, एक सवाल है। काटे नहीं कटता! एक तरफ कहते हैं कि समय बहुत थोड़ा है हाथ अब भी कहते हैं, एक सवाल है। लेकिन यह साल और सवाल | में, और दूसरी तरफ निरंतर रोते रहते हैं कि समय कैसे काटें ? जरूर पैदा कर देगी। कुछ कारण होगा इस दुविधा का। दुविधा का कारण है। सवालों का अंत नहीं है। कामों का अंत नहीं है। समय चुक समय तो निश्चित कम है, क्योंकि वासनाएं बहुत हैं। और सब जाता है, वासना तो नहीं चुकती। समय तो चुक ही जाता है, कामना | | चीजें तुलनात्मक होती हैं। जब हम कहते हैं कि समय कम है, तो नहीं चुकती है। समय छोटा पड़ जाता है, कामना अनंत है। | उसका मतलब है किससे? वासनाओं से। जिसकी वासनाएं नहीं बुद्ध ने कहा है, कामना दुष्पूर है। उसे तुम पूरा नहीं कर सकते। | हैं, उसके पास तो समय बहुत है, उसका कोई अंत नहीं। और बुद्ध कहते थे, वह ऐसे बर्तन की तरह है, जो दोनों तरफ से खुला | जिसके पास वासनाएं बहुत हैं, समय बहुत छोटा है। फिर भी हो और तुम उसमें कुएं से पानी भरो। वह कभी भरेगा नहीं। इसलिए | वासनाओं वाला आदमी भी कहता है, समय काटे नहीं कटता, नहीं कि कुएं में पानी नहीं है। और इसलिए भी नहीं कि तुम्हारे भरने | क्योंकि वासनाओं को पूरा करते-करते भी वह पाता है कि वासनाएं के प्रयास में कोई कमी है। और इसलिए भी नहीं कि जब कुएं में | | पूरी नहीं होतीं। वासनाएं पूरी नहीं होतीं। सब तरह कोशिश कर बर्तन डूबता है, तो पानी नहीं भरता है। सब हो जाता है। कुआं है, | | लेता है और कोई वासना पूरी होती नहीं दिखाई पड़ती। तब वह पानी है, बर्तन बिलकुल ठीक है। तुम्हारी ताकत है, कुएं में डालते | | समय को भुलाने की कोशिश करता है। उसी को वह समय नहीं हो, बर्तन पानी में डूबता है, भरा हुआ दिखाई पड़ता है। खींचते हो, | कटता कहता है। इतने मनोरंजन के साधन खोजने पड़ते हैं समय बर्तन निकल आता है, पानी पीछे रह जाता है। वह दोनों तरफ से | को भुलाने के लिए। खुला हुआ है। दुष्पूर का यही अर्थ है। वासना को डालते हैं, वासना इधर वासना है, वह समय को चुका देती है। थोड़ा-बहुत समय खाली लौट आती है। मेहनत व्यर्थ हो जाती है। जो पानी भरा हुआ बचता है, तो वासना से थका हुआ मन उसको भुलाने के लिए
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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