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गीता दर्शन भाग-3
सिर्फ उस आदमी को पराधीन नहीं बनाया जा सकता, जिसको सुख | | लगाकर देखें कि आपको कैसी-कैसी बातें डांवाडोल कर जाती हैं!
और दुख नहीं कंपाते। उसको अब इस दुनिया में कोई पराधीन नहीं कैसी क्षुद्र बातें डांवाडोल कर जाती हैं! रास्ते से गुजर रहे हैं, दो बना सकता। कोई उपाय न रहा। उस आदमी को हिलाने का उपाय | आदमी जरा जोर से हंस देते हैं; आप डांवाडोल हो जाते हैं। न रहा। अब तलवारें उसके शरीर को काट सकती हैं, लेकिन वह | एक मित्र को संन्यास लेना है। वे मुझसे रोज कहते हैं, लेना है, अडिग रह जाएगा। अब सोने की वर्षा उसके चरणों में हो सकती लेकिन मैं तो इन्हीं कपड़ों में संन्यासी हूं। अनेक लोग आकर मुझसे है, लेकिन मिट्टी की वर्षा से ज्यादा कोई परिणाम नहीं होगा। अब | यही कहते हैं कि हममें कमी ही क्या है? हम तो इन्हीं कपड़ों में सारी पृथ्वी का सिंहासन उसे मिल सकता है, वह उस पर ऐसे ही | संन्यासी हैं! तो मैं कहता हूं, फिर डर क्या है ? डाल लो गेरुए वस्त्र। चढ़ जाएगा, जैसे मिट्टी के ढेर पर चढ़ता है; और ऐसे ही उतर | तब कंप जाते हैं। बड़ा शक्तिशाली संन्यास है। वह गेरुआ वस्त्र जाएगा, जैसे मिट्टी के ढेर से उतरता है।
डालने से कंपता है। क्यों कंपता है? भीतरी शक्ति अकंपन से आती है। भीतरी शक्ति, आंतरिक - वह दूसरों की आंखों का कंपन है। रास्ते से गुजरेंगे, लोग क्या ऊर्जा, परम शक्ति उस व्यक्ति को उपलब्ध होती है, जो अकंप को कहेंगे? दफ्तर में जाएंगे, लोग क्या कहेंगे? दफ्तर में गए, कहीं उपलब्ध हो जाता है। और अकंप वही हो सकता है, जो सुख-दुख चपरासी ने हंस दिया ऐसा मुंह करके, मुस्कराकर, तो फिर क्या में कंपित न हो।
होगा? कोई क्या कहेगा? इतना भयभीत कर देती है बात। इतने योगारूढ़ होने के पहले यह अकंप, यह निष्कंप दशा उपलब्ध | कमजोर चित्त में बहुत बड़ी घटनाएं नहीं घट सकतीं। होनी जरूरी है। और इस निष्कंप दशा में ही आदमी के पास इतनी | गेरुए कपड़े पहनने से कोई बड़ी घटना नहीं घट जाएंगी। लेकिन ऊर्जा, इतनी शक्ति, इतनी स्वतंत्रता और इतनी स्वाधीनता होती है, | गेरुआ कपड़ा पहनने से एक सूचना हो जाती है कि अब दूसरे क्या कहना चाहिए, आदमी स्व होता है, स्वयं होता है कि इस पात्रता में | कहते हैं, इसकी फिक्र छोड़ी। यह बड़ी घटना है। गेरुए कपड़े में ही परमात्मा से मिलन है; इसके पहले कोई मिलन नहीं है। | कुछ भी नहीं है, लेकिन इस घटना में बहुत कुछ है।
जो सुख-दुख से कंप जाता है, वह इतना कमजोर है कि | लोग क्या कहेंगे! लोगों के कहे हुए शब्द कितना कंपा जाते हैं। परमात्मा को सह भी न पाएगा। इतना कमजोर है। एक चांदी के शब्द। जिनमें कछ भी नहीं होता है: हवा के बबले। एक आदमी ने सिक्के से जिसके प्राण डांवाडोल हो जाते हैं। एक जरा-सा कांटा | होंठ हिलाए। एक आवाज पैदा हुई हवा में। आपके कान से जिसकी आत्मा तक छिद जाता है। एक जरा-सी तिरछी आंख टकराई। आप कंप गए। इतनी कमजोर आत्मा! नहीं; फिर बड़ी किसी की जिसकी रातभर की नींद को खराब कर जाती है। वह घटनाओं की पात्रता पैदा नहीं हो सकती। आदमी इतना कमजोर है कि कृपा है परमात्मा की कि उस आदमी | | कृष्ण कहते हैं कि सुख-दुख में जो अडोल रह जाए, अकंप, को न मिले। नहीं तो आदमी टूटकर, फूटकर, एक्सप्लोड ही हो | उसकी चेतना थिर होती है। और वैसी चेतना परमात्मा के भीतर जाएगा, बिलकुल नष्ट ही हो जाएगा।
विराजमान है और वैसी चेतना में परमात्मा विराजमान है। इतनी बड़ी घटना उस आदमी की जिंदगी में घटेगी, जो एक रुपए चलें निष्कंप चेतना की तरफ! बढ़ें! सुख से शुरू करें, दुख से से कंप जाता है, जिसका एक रुपया रास्ते पर खो जाए, तो मुश्किल | कभी शुरू मत करना। सुख से शुरू करें, दुख तक पहुंच जाएगी में पड़ जाता है। इतनी बड़ी घटना को झेलने की उसकी सामर्थ्य नहीं बात। दुख से कभी शुरू मत करना। दुख से कभी शुरू नहीं होती होगी। वह इतना क्रिस्टलाइज्ड नहीं है, इतना संगठित नहीं है भीतर, बात। इतना सत्तावान नहीं है कि परमात्मा को झेल सके। वह पात्रता सुख को ठीक से देखें और पाएंगे कि सुख दुख का ही रूप है। उसकी नहीं है।
सुख में ही तलाश करें और पाएंगे कि सुख में ही दुख के सारे के नियम से सब घटता है। जिस दिन आप पात्र हो जाएंगे स्वाधीन | सारे बीज, सारी संभावना छिपी है। और सुख से अपने को न होने के, उसी दिन परम सत्ता आप पर अवतरित हो जाती है। वह कंपने दें। सदा उतरने को तैयार है, सिर्फ आपकी प्रतीक्षा है। और आप इतनी | न कंपने देने के लिए क्या करना पड़ेगा? क्या आंख बंद करके क्षुद्र बातों में डोल रहे हैं कि जिसका कोई हिसाब नहीं। कभी हिसाब खड़े हो जाएंगे कि सुख न कंपाए? अगर बहुत ताकत लगाकर खड़े
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