________________
ज्ञान विजय है -
हो गए, तो आप कंप गए!
| था और दुख पर पूरा हुआ! दो-चार-दस सुखों के बीच से गुजरिए अगर एक आदमी कहे कि मैं तो अंधेरे में से निकल जाता हूं। समझते हुए। और आप पाएंगे कि आपकी समझ में वह जगह आ आंख बंद कर लेता हूं; हाथ पकड़कर जोर से ताकत लगाता हूं; | गई, वह मैच्योरिटी, वह प्रौढ़ता आपकी समझ में आ गई कि अब बिलकुल निकल जाता हूं बिना डरे। यह हाथ और यह ताकत, ये | ताकत लगाने की जरूरत नहीं है। आप, बस अब सुख आता है और सब डर के लक्षण हैं। इस आदमी का यह कहना कि मैं अंधेरे में | | जानते हैं कि वह दुख है। इतनी सरलता से जिस दिन आप रहेंगे, उस बिना डरे निकल जाता हूं, यह भी डरे हुए आदमी का वक्तव्य है।। | दिन निष्कंप चित्त पैदा होगा; ताकत से नहीं पैदा होगा। नहीं तो अंधेरे का पता ही नहीं चलता; यह निकल जाता। उजाले । इसलिए बहुत से हठवादी धर्म को ताकत से छीनना चाहते हैं। में तो नहीं कहता यह आदमी कि मैं उजाले में बिना डरे निकल जाता | | वे कभी धर्म को नहीं उपलब्ध हो पाते, सिर्फ अहंकार को उपलब्ध हूं! अंधेरे की कहता है कि अंधेरे में बिना डरे निकल जाता हूं। होते हैं। ताकत से अहंकार मिल सकता है। समझ से अहंकार
नहीं; अगर आपने बहुत ताकत लगाई, तो समझ लेना कि आप | गलता है। कंप गए, वह ताकत कंपन ही है। नहीं; ताकत लगाने की कोई _अगर ताकत लगाकर आपने कहा कि ठीक, अब हम सुख को जरूरत नहीं है।
सुख नहीं मानते, दुख को दुख नहीं मानते; और खड़े हो गए आंख __इस बात को, तीसरे सूत्र को, ठीक से खयाल में ले लें। इससे | बद करके ताकत लगाकर, तो सिर्फ अहंकार मजबूत होगा। और साधक को बड़ी कठिनाई होती है।
कुछ भी होने वाला नहीं है। और यह अहंकार अपने तरह के सुख ताकत लगाई अगर आपने और कहा कि ठीक है, अब सुख | | देने लगेगा; और यह अहंकार अपने तरह के दुख लाने लगेगा; आएगा, तुम डालना मेरे गले में माला और मैं बिलकुल छाती को खेल शुरू हो जाएगा। अकड़ाकर और सांस को रोककर बिलकुल अकंप रह जाऊंगा! | | समझ, अंडरस्टैंडिंग पर खयाल रखिए। जितनी समझ बढ़ती है,
आप कंप गए। बुरी तरह कंप गए। यह इतनी ताकत लगाई माला | जितनी प्रज्ञा बढ़ती है, उतना ही...। के लिए! चार आने में बाजार में मिल जाती है। चार आने के लिए बुद्ध ने तीन शब्द उपयोग किए हैं—प्रज्ञा, शील, समाधि। बुद्ध इतनी ताकत लगानी पड़ी आत्मा की, तब तो कंपन काफी हो गया। | कहते हैं, जितनी प्रज्ञा बढ़े, जितनी समझ बढ़े, उतना शील
और कितनी देर मुट्ठी बांधकर रखिएगा? थोड़ी देर में मुट्ठी ढीली | | रूपांतरित होता है, चरित्र बदलता है। जितना चरित्र रूपांतरित हो, करनी पड़ेगी। सांस कितनी देर रोकिएगा? थोड़ी देर में सांस लेंगे। उतनी समाधि निकट आती है। तो जो डर था, वह थोड़ी देर बाद शुरू हो जाएगा।
__ लेकिन शुरुआत करनी पड़ती है प्रज्ञा से, समझ से। समझ बनती नहीं; समझ की जरूरत है, शक्ति की जरूरत नहीं है। समझ की है शील बाहर की दुनिया में, और भीतर की दुनिया में समाधि। यहां . जरूरत है। जब सुख आए, तो समझने की कोशिश करिए; ताकत समझ बढ़ती है, तो बाहर की दुनिया में चरित्र पैदा होता है। और
लगाकर दुश्मन बनकर मत खड़े हो जाइए। क्योंकि जिसके | | चरित्र का अगर ठीक-ठीक अर्थ समझें, तो चरित्र केवल उसी के खिलाफ आप दुश्मन बनकर खड़े हुए, उसकी ताकत आपने मान | | पास होता है, जो अकंप है। जो जरा-जरा सी बात में कंप जाता है, ली। ताकत मत लगाइए, समझ।
| उसके पास कोई चरित्र नहीं होता। और ध्यान रखिए, जितनी समझ कम हो, लोग उतनी ज्यादा | सुना है मैंने कि इमेनुअल कांट, जर्मनी का एक बहुत प्रज्ञावान ताकत लगाते हैं। सोचते हैं, ताकत से समझ का काम पूरा कर | पुरुष, रात दस बजे सो जाता था, सुबह चार बजे उठता था। नौकर लेंगे। कभी नहीं पूरा होता। रत्तीभर समझ, पहाड़भर ताकत से | | से कह रखा था, जो उसकी सेवा करता था, कि दस और चार के ज्यादा ताकतवर है। समझ का काम कभी ताकत से पूरा नहीं होगा। | बीच कुछ भी हो जाए, भूकंप भी आ जाए, तो मुझे मत उठाना। समझ को ही विकसित करिए।
लेकिन फिर ऐसा हुआ कि इमेनुअल कांट जिस विश्वविद्यालय जब सुख आए, तो उसको देखिए गौर से, भोगिए, समझने की में शिक्षक था, अध्यापक था, उस विश्वविद्यालय ने तय किया कि कोशिश करिए। और देखिए कि रोज कैसे सुख दुख में बदलता जा | | उसे चांसलर. कलपति बना दिया जाए। रात बारह बजे तार आया: रहा है। और अंत तक यात्रा करिए और देखिए कि सुख से शुरू हुआ | | नौकर को तार मिला। इतनी खुशी की बात थी। गरीब इमेनुअल