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________________ < ज्ञान विजय है > और यह बड़े मजे की बात है कि सुख से कोई शुरू नहीं करता। | विज्ञान सुख से तोड़ने का विज्ञान है। यद्यपि जो सुख से टूट जाता यद्यपि सुख से कोई शुरू करे, तो बहुत सरल है। यह दूसरी बात | है, वह आनंद से जुड़ जाता है। वह बिलकुल दूसरी बात है। आपसे कहना चाहता हूं। सुख से कोई शुरू नहीं करता। सुख से । कभी भूलकर भी आप यह मत समझना कि जिसे आप सुख कोई शुरू करे, तो बहुत सरल है। दुख से लोग शुरू करते हैं। दुख | | कहते हैं, उससे आनंद का कोई भी संबंध है। इतना ही संबंध हो से शुरू किया नहीं जा सकता। दुख से शुरू करना असंभव है। । | सकता है-है-कि सुख के कारण आनंद कभी नहीं आ पाता। हमारे संबंध सुख से हैं, दुख तो सुख के पीछे आता है। बस इतना ही संबंध है। सुख के कारण ही अटकाव खड़ा रहता है इनडायरेक्ट हैं उससे हमारे संबंध, डायरेक्ट नहीं हैं; परोक्ष हैं, | और आनंद के द्वार तक आप नहीं पहुंच पाते। प्रत्यक्ष नहीं हैं। जिससे हमारे प्रत्यक्ष संबंध हैं, उससे ही संबंध तोड़े | फिर जैसा होता है, उनकी पत्नी चल बसी: दख आ गया। फिर जा सकते हैं। और सरलता से तोड़े जा सकते हैं। | उनके मित्र उन्हें ले आए। कहने लगे कि पत्नी चल बसी है; मैं बहुत लेकिन सुख से कोई शुरू नहीं करता, और वहीं सरलता से टूट | दुखी हो गया हूं। चित्त बहुत उद्विग्न है। कुछ रास्ता बताएं। तो मैंने सकते हैं। दुख से सभी लोग शुरू करते हैं, वहां कभी टूट नहीं | | उन्हें कहा कि अब ठीक से दुखी ही हो लो। ठीक से दुखी हो लो। सकते। इसलिए अक्सर ऐसा होता है कि दुखी लोग धर्म की तलाश | रोओ, छाती पीटो, सिर पटको। वे बहुत चौंके। उन्होंने कहा कि में निकल जाते हैं। सुखी आदमी धर्म की तलाश में कभी नहीं जाता। आपसे ऐसी आशा लेकर नहीं आया। कुछ कंसोलेशन, कुछ एक मित्र अपने किसी मित्र को मेरे पास लाए थे। कई बार मुझे सांत्वना चाहिए। तो मैंने कहा कि फिर तुम मेरे पास भी सुख की ही कहा था कि उन्हें आपके पास लाना है। लेकिन वे आने को राजी तलाश में आए, कि किसी तरह तुम्हारे दुख को हलका करूं और नहीं होते, वे कहते हैं, मैं सब भांति सुखी हूं। अभी उनके पास जाने तुम्हें थोड़ा सुख मिल जाए! इसके पहले कि तुम नई पत्नी खोजो, की क्या जरूरत! मैंने कहा, तो थोड़ा ठहरो। क्योंकि सब भांति थोड़ा मैं तुमको सुव्यवस्थित कर दूं। इस शक्ल को लेकर नई पत्नी सुखी रहना संदा नहीं हो सकता। थोड़ा रुको। थोड़ा ठहरो। थोड़ा | खोजने में बहुत मुश्किल होगी। धीरज रखो। जल्दी दुख आ जाएगा। और जो आदमी कहता है कि वे कहने लगे, आप कैसी बातें कर रहे हैं? मेरी पत्नी मर गई है! मैं सब भांति सुखी हूं, अभी मैं क्यों जाऊं; वह दुख में आने को मैंने उनसे कहा कि ईमान से पूछो अपने मन से, नई पत्नी की तलाश राजी हो जाएगा, हालांकि तब आना बेकार होगा। अभी आने में | शुरू नहीं हो गई है? वे कहने लगे, आपको कैसे पता चल गया? कुछ हो सकता है। क्योंकि सुख बीज है, दुख फल है। सुख के मैंने कहा, मुझे कुछ पता नहीं चल गया। आदमी के मन को मैं बीज को नष्ट करना बहुत आसान है; दुख के बड़े विराट वृक्ष को | जानता हूं; तुम्हारे बाबत मैं कुछ नहीं कह रहा हूं। जल्दी ही तुम नई नष्ट करना बहुत मुश्किल हो जाएगा। पत्नी खोज लोगे। फिर तुम कहोगे, मैं सब सुख में हूं; अब धर्म की . और जैसे एक बीज को बोने से वृक्ष एक और करोड़ बीज हो | | क्या जरूरत है! जाते हैं, ऐसे ही एक सुख की आकांक्षा करने से बड़े दुख का वृक्ष __धर्म तुम्हारा उपकरण नहीं बन सकता। धर्म कोई इमरजेंसी मेजर फलित होता है। लेकिन उस दुख के वृक्ष में करोड़ सुखों की नहीं है कि तुम तकलीफ में हो, तो जल्दी से इमरजेंसी दरवाजा खोल आकांक्षाएं फिर लग जाती हैं। लिया धर्म का और चले गए। धर्म तुम्हारे दुख से छुटकारे का उपाय __ मैंने कहा, लेकिन रुको। यही नियम है कि लोग दुख में धर्म की | | नहीं है। अगर ठीक से समझें, तो धर्म सुख से छुटकारे का उपाय तलाश करते हैं, जब कि तलाश नहीं की जा सकती। और लोग है। उसके लिए तो मन कभी तैयार नहीं होता है, इसलिए कभी धर्म सुख में कहते हैं कि हम तो सुखी हैं; तलाश की क्या जरूरत है? जीवन में आता नहीं। ऐसा क्यों होता है? ऐसा इसलिए होता है कि लोग धर्म को भी । और ध्यान रहे, जो सुख से छूट जाता है, वह दुख से तत्काल सुख के लिए तलाश करते हैं। धर्म को भी सुख के लिए तलाश छूट जाता है। और जो दुख से छूटना चाहता है और सुख पाना करते हैं। इसलिए दुख में कहते हैं कि ठीक है, अभी चित्त दुखी है, चाहता है, वह कभी दुख से छूट ही नहीं सकता, क्योंकि वह सुख तो हम धर्म की तलाश करें। से नहीं छूट सकता। और धर्म का सुख से कोई भी संबंध नहीं है। धर्म का तो पूरा दुख सुख का ही दूसरा पहलू है, अनिवार्य। और दुख को छोड़ने
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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