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मालकियत की घोषणा -
की लड़ाई हो, तो कारण बड़ा छोटा-सा होता है; बड़ा छोटा-सा | | हमें पशु कहते हैं। पशु का मतलब, पाश में बंधे हुए। पशु का कारण! चाहे वह महाभारत का इतना बड़ा युद्ध हो, जिसमें इस | | मतलब होता है, जिसके गले में रस्सी बंधी है। तंत्र के ग्रंथ कहते गीता को फलित होने का मौका आया, कारण बड़ा छोटा-सा था। हैं, दो तरह के लोग हैं, पशु और पशुपति। पशु वे, जिनकी इंद्रियां इस बड़े महाभारत के युद्ध में पता है आपको, कारण कितना छोटा उनको गले में बांधकर खींचती रहती हैं; और पशुपति वे, जो इंद्रियों था! बहुत छोटा-सा कारण, द्रौपदी की छोटी-सी हंसी इस पूरे युद्ध के मालिक हो गए, पति हो गए। का कारण।
कृष्ण भी वही कह रहे हैं! एक बड़े गहरे तांत्रिक सूत्र की व्याख्या कौरव निमंत्रित हुए हैं पांडवों के घर। और पांडवों ने एक घर | | है, इस शब्द में। कहते हैं, जो अपनी इंद्रियों और अपने शरीर का बनाया है आलीशान। और इस तरह की कलात्मक उसमें व्यवस्था | मालिक है, वही अपना मित्र है। वही भरोसा कर सकता है अपनी की है कि घर कई जगह धोखा दे देता है। जहां पानी नहीं है, वहां मित्रता का। लेकिन जिसे अपनी इंद्रियों पर कोई काबू नहीं है, और मालूम पड़ता है पानी है, इस तरह के दर्पण लगाए हैं। जहां दरवाजा | जिसकी इंद्रियां जिसे कहीं भी दौड़ा सकती हैं, और जिसका शरीर नहीं है, वहां मालूम पड़ता है दरवाजा है, इस तरह के दर्पण लगाए। जिसे किन्हीं भी अंधे रास्तों पर ले जा सकता है, वह अपनी मित्रता हैं। जहां दरवाजा है, वहां मालूम पड़ती है दीवाल है, इस तरह के का भरोसा न करे। अच्छा है कि वह जाने कि मैं अपना शत्रु हूं। कांच लगाए हैं।
रथ में बंधे हुए घोड़े मित्र हो सकते हैं, अगर लगाम हो और एक मजाक थी, इनोसेंट। किसी ने सोचा भी न होगा कि इतना | सारथी होशियार हो। नहीं तो रथ में घोड़े न बंधे हों, तो ही रथ की बड़ा युद्ध इसके पीछे फैलेगा! कौन सोचता है ? बहुत छोटी-सी | कुशलता है। घोड़े ही न हों, तो भी रथ सुरक्षित है। लेकिन घोड़े मजाक थी, जो क्ति देवर-भाभी में हो सकती है, इसमें कोई ऐसी | बंधे हों और लगाम न हो और सारथी कुशल न हो या सोया हो, झगड़े की बात नहीं थी बड़ी। और जब दुर्योधन टकराने लगा और तो रथ के दुश्मन हैं घोड़े, मित्र नहीं। घोड़ों का कोई कसूर नहीं है दीवाल से निकलने की कोशिश करने लगा, जहां दरवाजा न था; | लेकिन, ध्यान रखना, नहीं तो आप सोचें कि घोड़ों की गलती है।
और दरवाजे से निकलने लगा, और सिर टकरा गया दीवाल से। ___ अभी मैं पढ़ रहा था कहीं कि एक आदमी पर अमेरिका में तो द्रौपदी खिलखिलाकर हंसी। निश्चित ही...। और उसने मजाक मुकदमे चले बहुत-से। और आखिरी मुकदमा चल रहा था। और में पीछे से किसी से कहा कि अंधे के ही तो बेटे ठहरे! अंधे के बेटे मजिस्ट्रेट ने उससे कहा कि मैं तुमसे कहना चाहता हूं कि तुम्हारे हैं, कुछ भूल तो हो नहीं गई।
| सब अपराधों का एक ही कारण है, अल्कोहल, अल्कोहल, जब दुर्योधन को यह पता चला कि कहा गया है, अंधे के बेटे अल्कोहल; शराब, शराब, शराब! उस आदमी ने कहा कि कोई हैं! बस बीज बो गया। छोटी-सी मजाक, अंधे के बेटे, ऐसा फिक्र नहीं है। आप मुझे लंबी सजा दे रहे हैं, लेकिन मैं धन्यवाद छोटा-सा शब्द! इतना बड़ा युद्ध! सब निर्मित हआ, फैला! फिर देता हं आपको। आप अकेले आदमी हैं जिसने मुझे जिम्मेवार नहीं इसके बदले लिए जाने जरूरी हो गए। फिर द्रौपदी को नग्न किया ठहराया। नहीं तो हर कोई कहता है, तुम्ही जिम्मेवार हो। जो देखो जाना इस हंसी का, मजाक का उत्तर था।
वही कहता है, तुम्ही जिम्मेवार हो। आप एक समझदार आदमी __बड़े से बड़े युद्ध के पीछे भी बड़े छोटे-छोटे कारण रहे हैं। जिंदगी में मिले, जो कहता है, शराब जिम्मेवार है मेरे सब अपराधों लेकिन एक बार इंद्रियां पकड़ लें, तो फिर वे आपको अंत तक ले के लिए, मैं जिम्मेवार नहीं हूं। जाती हैं। उनका अपना लाजिकल कनक्लूजन है। वे फिर आपको बड़े मजे की बात है। आप भी किसी दिन पकड़े जाएंगे, तो यह छोड़ती नहीं बीच में कि आप कहें कि अब बस छोड़ो; अब तो | मत सोचना कि कह देंगे कि इंद्रियों ने करवा दिया, मैं क्या करूं! मजाक बहुत हो गई; बात बहुत आगे बढ़ गई। फिर रुक नहीं उस दिन आपकी हालत इसी आदमी जैसी हो जाएगी। इंद्रियां सकते, फिर वे धक्का देती हैं। कहती हैं, जब यहां तक बात खींची, आपसे कुछ नहीं करवा सकतीं। करवा सकती हैं, क्योंकि आपने तो अब डटे रहो। फिर आपको आगे बढ़ाए चली जाती हैं। | कभी मालकियत घोषित नहीं की। आपने कभी घोषणा नहीं की कि
इंद्रियां इस तरह आदमी को खींचती हैं जैसे कि जानवरों के गले | | मैं मालिक हूं। में रस्सी बांधकर कोई उनको खींचता हो। इसलिए तंत्र के शास्त्र तो। | और ध्यान रहे, मालकियत की घोषणा करनी पड़ती है। और