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________________ 4 गीता दर्शन भाग-3 मालिक बाहर गया है। और जिसमें बहुत बड़ा महल है और बहुत करा लेती हैं। कई बार आपको अनुभव हुआ होगा। कई बार आप नौकर-चाकर हैं। और जब भी रास्ते से कोई गुजरता है और बड़े लोगों से कहते हैं कि मेरे बावजूद, इंस्पाइट आफ मी, यह मैंने कर महल को देखता है, सीढ़ियों पर कोई मिल जाता है घर का नौकर, दिया! मैं नहीं करना चाहता था, फिर कर दिया। जब आप नहीं तो उससे पूछता है, किसका है मकान? तो वह कहता है, मेरा। करना चाहते थे, तो कैसे कर दिया? आप कहते हैं, मेरी बिलकुल मकान का मालिक बाहर गया है। कभी वह राहगीर वहां से गुजरता इच्छा नहीं थी कि चांटा मार दूं आपको; लेकिन क्या करूं! सोचा है, दूसरा नौकर सीढ़ियों पर मिल जाता है, वह पूछता है, किसका भी नहीं था, मारने का इरादा भी नहीं था, भाव भी नहीं था ऐसा। है यह मकान? वह कहता है, मेरा। लेकिन मारा है, यह तो पक्का है। फिर यह किसने मारा? अब यह ___ हर नौकर मालिक है। मालिक घर में मौजूद नहीं है। बड़ी कलह जो पीछे कह रहा है कि नहीं कोई इच्छा थी, नहीं कोई भाव था, नहीं होती है उस मकान में। मकान जीर्ण-जर्जर हुआ जाता है। क्योंकि | कोई खयाल था, बात क्या है? मालिक कोई भी नहीं है, इसलिए मकान को कोई सुधारने की फिक्र | नहीं, भीतर कोई मालिक तो है नहीं। एक नौकर दरवाजे पर था, नहीं करता है, न कोई रंग-रोगन करता है, न कोई साफ करता है। | तो उसने एक चांटा मार दिया। अब दूसरा नौकर क्षमा मांग रहा है। सब नौकर हैं; सब एक-दूसरे से चाहते हैं कि तुम नौकर का यह भी मालिक नहीं है। इसलिए आप यह मत सोचना कि अब यह व्यवहार करो, मैं मालिक का व्यवहार करूं! लेकिन सब जानते हैं आदमी कल चांटा नहीं मारेगा। कल फिर मार सकता है। कि तुम भी नौकर हो, तुम कोई मालिक नहीं हो; तुम मुझ पर हुक्मयह जो हमारी इंद्रियों की स्थिति है, खंड-खंड, डिसइंटिग्रेटेड। नहीं चला सकते। वह घर गिरता जाता है, उसकी दीवालें गिरती और एक-एक इंद्रिय इस तरह करवाए चली जाती है जिसका कोई जाती हैं, उसकी ईंटें गिरती जाती हैं। कोई जोड़ने वाला नहीं। कोई हिसाब नहीं है। और कभी-कभी ऐसे काम करवा लेती है कि कचरा साफ करता नहीं। सब कचरा इकट्ठा करते हैं। सब मालिक | जिनका दांव भारी है। बहुत भारी दांव लगवा देती है। इतना बड़ा होने के दावेदार हैं। दांव लगवा देती है कि इतनी-सी, छोटी-सी चीज के लिए इतना भीतर करीब-करीब हमारी आत्मा ऐसी ही सोई रहती है, जैसे | बड़ा दांव आप लगाते न। कभी-कभी ऐसा हो जाता है कि दो पैसे मौजूद ही न हो। आपने कभी अपनी आत्मा की आवाज भी सुनी है? | की चीज के लिए लोग एक-दूसरे की जान ले लेते हैं। दो पैसे की हां, अगर राजनीतिज्ञ होंगे, तो सुनी होगी! अभी पिछले | भी नहीं होती कई बार तो चीज। कई बार कुछ होता ही नहीं बीच इलेक्शन में बहुत-से राजनीतिज्ञ एकदम आत्मा की आवाज सुनते में, सिर्फ एक शब्द होता है कोरा और जान चली जाती है। पीछे थे। और जिस दिन राजनीतिज्ञ की आत्मा में आवाज आने लगेगी. अगर कोई बैठकर सोचे...। उस दिन इस दुनिया में कोई पापी नहीं रह जाएगा। जिनके पास | मैंने सुना है कि एक स्कूल में इतिहास का एक शिक्षक अपने आत्मा नाम-मात्र को नहीं होती, उनको आवाजें आ रही हैं! और बच्चों से पूछ रहा है, तुम कोई बड़ी से बड़ी लड़ाई के संबंध में आवाजें भी बदल जाती हैं! सुबह आवाज कुछ आती है, सांझ कुछ बताओ। तो एक लड़का खड़े होकर कहता है कि मैं बता तो सकता आती है। आत्मा भी बड़ी पोलिटिकल स्टंट करती है! | हूं, लेकिन मेरे घर आप खबर मत करना। उसने कहा, कौन सी __ आपने कभी आत्मा की आवाज सुनी है? अगर राजनीतिज्ञ नहीं लड़ाई? तो उसने कहा कि लड़ाई तो बड़ी से बड़ी मैं एक ही जानता हैं, तो कभी नहीं सुनी होगी! इंद्रियों की आवाजें ही हम सुनते हैं। हूं, मेरी मां और मेरे बाप की! उस शिक्षक ने कहा कि नासमझ, तुझे कभी एक इंद्रिय कहती है, यह चाहिए; कभी दूसरी इंद्रिय कहती इतनी भी अक्ल नहीं है कि यह भी कोई लड़ाई है! वह लड़का घर है, यह चाहिए। कभी तीसरी इंद्रिय कहती है, यह नहीं मिला, तो वापस आया, उसने अपने पिता से कहा कि आपकी बड़ी से बड़ी जीवन व्यर्थ है। कभी चौथी इंद्रिय कहती है, लगा दो सब दांव पर; लड़ाई की मैंने चर्चा की, तो मेरे इतिहास के शिक्षक ने कहा, यह भी यही है सब कुछ। लेकिन कभी उसकी भी आवाज सुनी है, जो | | कोई लड़ाई है! उसके बाप ने एक चिट्ठी लिखकर शिक्षक को पूछा भीतर छिपा जीवन है? उसकी कोई आवाज नहीं है। कि तुम मुझे कोई ऐसी लड़ाई बताओ, जो इससे बड़ी रही हो! कृष्ण कहते हैं, ऐसी दशा अपनी ही शत्रुता की दशा है। बड़ी से बड़ी लड़ाइयों के पीछे भी कारण तो सब छोटे ही छोटे और गुलामी भयंकर है, जो नहीं करना चाहती इंद्रियां, वह भी होते हैं। बड़े छोटे-छोटे कारण होते हैं। चाहे वह राम और रावण
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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