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________________ गीता दर्शन भाग-3> फिर भी, उस द्वारपाल ने कहा कि बेचारा इतनी मेहनत करके आ जाएगा। गया है, थोड़ा खोज लो, शायद कोई थोड़ी-बहुत जगह, इसने कुछ । लेकिन जो व्यक्ति अपना मित्र बन जाता है, वह ऊपर की न कुछ किया हो। बड़ा खोजकर पता चला कि इस आदमी ने एक ऊर्ध्व-यात्रा पर निकल जाता है। उसकी यात्रा दीए की ज्योति की नया पैसा किसी भिखारी को कभी दान दिया था। लेकिन कोष्ठक तरह आकाश की तरफ होने लगती है। वह फिर पानी की तरह गड्ढों में यह भी लिखा है कि भिखारी को नहीं दिया था, इसके साथ में नहीं उतरता, अग्नि की तरह आकाश की तरफ उठने लगता है। दो-तीन आदमी खड़े थे, वे क्या कहेंगे अगर एक पैसे के लिए भी | । यह जो ऊपर उठती हुई चेतना है, यही योग है। अपना मित्र होना इनकार करेगा, इसलिए दिया था। मगर दिया था। इसने एक पैसा | ही योग है। अपना शत्रु होना ही अयोग है। ऊपर की तरफ बढ़ते दिया था, वह स्थगित नहीं किया था। कारण दूसरा था, लेकिन | चले जाना ही आनंद है। भिखारी को एक पैसा इसने दिया था। कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं कि योग है मंगल अर्जुन; और सार उस करोड़पति के चेहरे पर थोड़ी रौनक आई। लगा कि कुछ सूत्र है कि आत्मा स्वतंत्र है। अपना अहित भी कर सकती है, हित आसार स्वर्ग में प्रवेश के बनते हैं। उस क्लर्क ने कहा, लेकिन इतने | भी। अहित करना आसान, क्योंकि गड्ढे में उतरना आसान। हित । से आधार पर! और वह भी धोखे का आधार, क्योंकि इसने | | करना कठिन, क्योंकि पर्वत शिखर की ऊंची चढ़ाई है। लेकिन जो भिखारी को दिया ही नहीं, इसने अपने मित्रों को दिया है। दिखाई | अपना मित्र बन जाए, वह जीवन में मुक्ति को अनुभव कर पाता पड़ा कि भिखारी को दिया है। है। और जो अपना शत्रु बन जाए, वह जीवन में रोज बंधनों, इसलिए तो भिखारी, आप अकेले हों, तो आपसे भीख नहीं कारागृहों में गिरता चला जाता है। मांगते। दो-चार मित्र हों, तो पकड़ लेते हैं। जानते हैं तरकीब, कि इस सूत्र को अपने जीवन में कहीं-कहीं रुककर उपयोग करके भिखारी को कौन देता है! वह दो-चार जो आदमी पास खड़े हैं, देखना, तो खयाल में आ सकेगा। कुछ चीजें हैं, जिन्हें समझ लेना उनकी शर्मिंदगी में, कि क्या कहेंगे कि यह आदमी एक पैसा नहीं | | काफी नहीं, जिन्हें प्रयोग करना जरूरी है। ये सब के सब लेबोरेटरी दे पा रहा है, आप भी दे देते हैं। और आप दे देते हैं, तो उनको भी | मेथड्स हैं, यह जो भी कृष्ण कह रहे हैं अर्जुन से। देना पड़ता है कि अब यह आदमी क्या कहेगा! मगर यह आपसी कृष्ण उन लोगों में से नहीं हैं, जो एक शब्द भी व्यर्थ कहें। वे लेन-देन है, इसका भिखारी से कोई भी संबंध नहीं है। उन लोगों में से नहीं हैं, जो शब्दों का आडंबर रचें। वे उन लोगों में फिर भी इसने दिया था, तो क्या करें? तो उस क्लर्क ने कहा, | से नहीं हैं, जिन्हें कुछ भी नहीं कहना है और फिर भी कहे चले जा एक ही उपाय है। वह एक पैसा इसे वापस कर दिया जाए और नर्क रहे हैं। वे कोई राजनीतिक नेता नहीं हैं। की तरफ वापस भेज दिया जाए। इस आदमी ने बड़ी टेक्निकल कृष्ण उतना ही कह रहे हैं, जितना अत्यंत आवश्यक है, और गड़बड़ खड़ी कर दी है। एक दफा और स्थगित कर देता, तो इसका जितने के बिना नहीं चल सकेगा। प्रयोगात्मक हैं उनके सारे क्या बिगड़ता था! टेक्निकल भूल हो गई है। वक्तव्य। एक-एक सूत्र एक-एक जीवन के लिए प्रयोग बन हम स्थगित किए चले जाते हैं, जो भी शुभ है उसे। शायद मौत | सकता है। के बाद हम करेंगे। और जो अशुभ है, उसे हम आज कर लेते हैं, और एक सूत्र पर भी प्रयोग कर लें, तो धीरे-धीरे पूरी गीता, कि पता नहीं, कल वक्त मिला कि न मिला। | बिना पढ़े, आपके सामने खुल जाएगी। और पूरी गीता पढ़ जाएं ___ मित्र वह है अपना, जो अशुभ को स्थगित कर दे और शुभ को और प्रयोग कभी न करें, तो गीता बंद किताब रहेगी। वह कभी खुल कर ले। और शत्रु वह है अपना, जो शुभ को स्थगित कर दे और नहीं सकती। उसे खोलने की चाबी कहीं से प्रयोग करना है। अशुभ को कर ले। एक क्षण रुककर देख लेना कि जिस चीज से | ___ इस सूत्र को समझें, जांचें, अपने मित्र हैं कि शत्रु! बस इस दुख आता हो, उसे आप कर रहे हैं? तो फिर अपने शत्रु हैं। | छोटे-से सूत्र को जांचते चलें और थोड़े ही दिन में आप पाएंगे कि और जो अपना शत्रु है, उसकी अधोयात्रा जारी है। वह नीचे | आपको अपनी शत्रुता इंच-इंच पर दिखाई पड़ने लगी है। गिरेगा, गिरता चला जाएगा-अंधकार और महा अंधकार, पीड़ा कदम-कदम पर आप अपने दुश्मन हैं। और अब तक की पूरी और पीड़ा। वह अपने ही हाथ से अपने को नर्क में धकाता चला जिंदगी आपने अपनी दुश्मनी में बिताई है। और फिर रोकर चिल्लाते 48
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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