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< गीता दर्शन भाग-3>
चीज, अभी दरार बाकी रह जाएगी, जो पूरी नहीं हो पाती। अंडरस्टैंडिंग ही सिर्फ सेतु बनेगी। उतनी समझ हममें नहीं है।
मित्रता बड़ी साधना है, शत्रुता बच्चों का खेल है। इसलिए हम हम सब नासमझी में जीते हैं। लेकिन नासमझी में इतनी अकड़ शत्रुता में आसानी से उतर जाते हैं। और खुद के साथ मित्रता तो से जीते हैं कि समझ को आने का दरवाजा भी खुला नहीं छोड़ते। बहुत ही कठिन है। दूसरे के साथ इतनी कठिन है, खुद के साथ तो | | असल में नासमझ लोगों से ज्यादा स्वयं को समझदार समझने वाले और भी कठिन है।
लोग नहीं होते। और जिसने अपने को समझा कि बहुत समझदार आप कहेंगे, क्यों? दूसरे के साथ इतनी कठिन है, तो खुद के | हैं, समझना कि उसने द्वार बंद कर लिए। अगर समझदारी उसके साथ और भी कठिन क्यों होगी? खुद के साथ तो आसान होनी | दरवाजे पर दस्तक भी दे, तो वह दरवाजा खोलने वाला नहीं है। चाहिए। हम तो सब समझते हैं कि हम सब अपने को प्रेम करते | वह खुद ही समझदार है! ही हैं।
___ हमारी समझदारी का सबसे गलत जो आधार है, वह यह है कि भ्रांति है वह बात, फैलेसी है, झूठ है। हममें से ऐसा आदमी हम अपने को प्रेम करते ही हैं। यह बिलकुल झूठ है। अगर हम बहुत मुश्किल है, जो अपने को प्रेम करता हो। क्योंकि जो अपने | अपने को प्रेम करते होते, तो दुनिया की यह हालत नहीं हो सकती को प्रेम कर ले, उसकी जिंदगी में बुराई टिक नहीं सकती; असंभव | थी, जैसी हालत है। अगर हम अपने को प्रेम करते होते, तो आदमी है। अपने को प्रेम करने वाला शराब पी सकता है? अपने को प्रेम | पागल न होते, आत्महत्याएं न करते। अगर हम अपने को प्रेम करते करने वाला क्रोध कर सकता है?
होते, तो दुनिया में इतना मानसिक रोग न होता। बुद्ध निकलते हैं एक रास्ते से और एक आदमी बुद्ध को गालियां चिकित्सक कहते हैं कि इस समय कोई सत्तर प्रतिशत रोग देता है। तो बुद्ध के साथ एक भिक्षु है आनंद, वह कहता है कि आप मानसिक हैं। वे अपने को घृणा करने से पैदा हुए रोग हैं। हम सब मुझे आज्ञा दें, तो मैं इस आदमी को ठीक कर दूं। तो बुद्ध बहुत | अपने को घृणा करते हैं। हजार तरह से अपने को सताते हैं। सताने हंसते हैं। तो आनंद पूछता है, आप हंसते क्यों हैं? वह आदमी भी | | के नए-नए ढंग ईजाद करते हैं। अपने को दुख और पीड़ा देने की पूछता है, आप हंसते क्यों हैं? तो बुद्ध कहते हैं, मैं आनंद की बात | | भी नई-नई व्यवस्थाएं खोजते हैं। यद्यपि हम सबके पीछे बहुत तर्क सुनकर हंसता हूं। यह भी बड़ा पागल है। दूसरे की गलती के लिए | | इंतजाम कर लेते हैं। खुद को सजा देना चाहता है। बुद्ध कहते हैं, दूसरे की गलती के यह तो चिकित्सक कहते हैं कि सत्तर प्रतिशत बीमारियां आदमी लिए खुद को सजा देना चाहता है। आनंद ने कहा, मैं समझा नहीं! अपने को सजा देने के लिए विकसित कर रहा है। लेकिन बद्ध ने कहा. गाली उसने दी, क्रोध त करना चाहता है। सजा त मनस-चिकित्सक कहते हैं कि यह आंकड़ा छोटा है अभी; भोगेगा। क्रोध तो अपने में आग लगाना है।
अंडरएस्टिमेशन है। असली आंकड़ा और बड़ा है। और अगर हम सब क्रोध को भलीभांति जानते हैं। क्रोध से बड़ी सजा क्या आंकड़ा किसी दिन ठीक गया, तो निन्यानबे प्रतिशत बीमारियां हो सकती है? लेकिन दूसरा गाली देता है, हम क्रोध करते हैं। बुद्ध मनुष्य अपने को सजा देने के लिए ईजाद करता है। कहते हैं, दूसरे की गलती के लिए खुद को सजा! ___ इतनी घृणा है खुद के साथ! वह हमारे हर कृत्य में प्रकट होती
हम सब वही कर रहे हैं। मित्रता अपने साथ कोई भी नहीं है। है। हर कृत्य में! जो भी हम करते हैं-एक बात ध्यान में रख लेना, और अपने साथ मित्रता इसलिए भी कठिन है कि दूसरा तो तो कसौटी आपके पास हो जाएगी-जो भी आप करते हैं, करते विजिबल है, दूसरा तो दिखाई पड़ता है; हाथ फैलाया जा सकता है | | वक्त सोच लेना, इससे मुझे सुख मिलेगा या दुख? अगर आपको दोस्ती का। लेकिन खुद तो बहुत इनविजिबल, अदृश्य सत्ता है; | | दिखता हो, दुख मिलेगा और फिर भी आप करने को तैयार हैं, तो वहां तो हाथ फैलाने का भी उपाय नहीं है। दूसरे मित्र को तो कुछ | फिर आप समझ लेना कि अपने को घृणा करते हैं। और क्या भेंट दी जा सकती है, कुछ प्रशंसा की जा सकती है, कुछ दोस्ती के कसौटी हो सकती है? रास्ते बनाए जा सकते हैं, कुछ सेवा की जा सकती है। खुद के साथ मुंह से गाली निकलने के लिए तैयार हो गई है; पंख फड़फड़ाकर तो कोई भी रास्ते नहीं हैं। खुद के साथ तो शुद्ध मैत्री का भाव ही! | खड़ी हो गई है जबान पर; उड़ने की तैयारी है। सोच लेना एक क्षण और कोई रास्ता नहीं है, और कोई सेतु नहीं है। अगर हो समझ, कि इससे अपने को दुख मिलेगा या सुख! दूसरे की मत सोचना,