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________________ मालकियत की घोषणा होगा ? तो जीसस को कठिनाई खड़ी हो जाएगी। और अगर जीसस कहें कि नहीं, पत्थर मार नहीं सकते इसे । माफ कर दो, क्षमा कर दो। तो हम कहेंगे, तुम हमारी धर्म- पुस्तक के विपरीत बात कहते हो तो तुम धर्म के दुश्मन हो । लेकिन उन्हें पता नहीं था कि जीसस जैसे आदमी को मुट्ठियों में बांधना आसान नहीं होता । की तरह होते हैं ऐसे लोग। मुट्ठी बांधी कि बाहर निकल जाते हैं। जीसस ने कहा कि बिलकुल ठीक कहती है पुरानी किताब ! पत्थर हाथ में उठा लो और इस स्त्री को पत्थरों से मार डालो। वे तो बड़े हैरान हुए। उन्होंने तो सोचा भी न था कि यह होगा । पर जीसस ने कहा, खयाल रखें, पहला आदमी वह हो पत्थर मारने वाला, जिसने व्यभिचार न किया हो और व्यभिचार का विचार न किया हो । कोई आदमी नहीं था उस गांव में, जिसने व्यभिचार का विचार न किया हो। किस गांव में ऐसा आदमी है ! जो लोग आगे खड़े थे साफे-पगड़ियां बगैरह बांधकर, पत्थर हाथ में लिए, वे धीरे-धीरे भीड़ में पीछे सरकने लगे। यह तो उपद्रव की बात है। जो पीछे खड़े थे, वे तो भाग खड़े हुए। उन्होंने कहा कि यहां ठहरना ठीक नहीं है। थोड़ी देर में वह नदी का तट खाली हो गया था। वह स्त्री थी और जीसस थे। जब सारे लोग जा चुके, तो उस स्त्री ने जीसस से पूछा कि आप मुझे जो सजा दें, मैं लेने को तैयार हूं; मैं व्यभिचारी हूं। मुझ पर कृपा करें और मुझे सजा दें। जीसस ने कहा, मुझे माफ कर । परमात्मा न करे कि मैं किसी का निर्णायक बनूं, क्योंकि मैं किसी को अपना निर्णायक नहीं बनाना चाहता हूं। जीसस ने कहा, परमात्मा न करे कि मैं किसी का निर्णायक बनूं। क्योंकि मैं किसी को अपना निर्णायक नहीं बनाना चाहता हूं। जीसस का वचन है, जज यी नाट, दैट यी शुड नाट बी जज्ड । तुम किसी के निर्णायक मत बनो, ताकि कोई तुम्हारा कभी निर्णायक न बने। मैं कौन हूं। मैं इतना अहंकार कैसे करूं कि तेरा निर्णय करूं ! मैं हूं कौन! तू जान तेरा परमात्मा जाने। मैं कौन हूं। मैं तेरे बीच में खड़ा होने वाला कौन हूं। मैं अगर तुझे जरा ऊंची जगह पर खड़े होकर भी देखूं, तो पापी हो गया। मैं कौन हूं। मैं कोई भी नहीं हूं। और फिर तूने खुद स्वीकार किया कि तू व्यभिचारिणी है, तो तू पाप से मुक्त हो गई, बात समाप्त हो गई। स्वीकृति मुक्ति है । अस्वीकृति में पाप छिपता है, स्वीकृति में विसर्जित हो जाता है। जीसस ने कहा कि मुझे मत उलझा । मैं तेरा निर्णायक नहीं बनूंगा, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि कोई मेरा निर्णय करे । आप नहीं चाहते कि दूसरे आपके साथ करें, कृपा करके वह आप दूसरों के साथ न करें। जीसस की पूरी नई बाइबिल का सार एक ही वचन है, दूसरों के साथ वह मत करें, जो आप नहीं चाहते कि दूसरे आपके साथ करें। और अगर इस वाक्य को ठीक से समझ लें, तो कृष्ण का सूत्र समझ में आ जाए। और कई बार ऐसा मजेदार होता है कि कृष्ण के किसी वाक्य की व्याख्या बाइबिल में होती है। और बाइबिल के किसी वाक्य की व्याख्या गीता में होती है। कभी कुरान के किसी सूत्र की व्याख्या वेद में होती है। कभी वेद के किसी सूत्र की व्याख्या कोई यहूदी फकीर करता । कभी बुद्ध का वचन चीन में समझा जाता है। और कभी चीन में लाओत्से का कहा गया वचन हिंदुस्तान का कोई समझता है। लेकिन धर्मों ने इतनी दीवालें खड़ी कर दी हैं इन सबके बीच कि इनके बीच जो बहुत आंतरिक संबंध के सूत्र दौड़ते हैं, उनका हमें कोई स्मरण नहीं रहा। नहीं तो हर मंदिर और मस्जिद के नीचे सुरंग होनी चाहिए, जिसमें से कोई भी मंदिर से मस्जिद में जा सके। और हर गुरुद्वारे के नीचे से मंदिर को जोड़ने वाली सुरंग होनी चाहिए, कि कभी भी किसी की मौज आ जाए, तो तत्काल गुरुद्वारे से मंदिर या मस्जिद या चर्च में जा सके। लेकिन सुरंगों की तो बात दूर, ऊपर के रास्ते भी बंद हैं, सब रास्ते बंद हैं। अपना मित्र दूसरों के साथ वही करेगा, जो वह चाहता है कि दूसरे उसके साथ करें। अपना शत्रु दूसरों के साथ वही करेगा, जो वह चाहता है कि दूसरे कभी उसके साथ न करें। और जो अपना मित्र हो गया, वह योग की यात्रा पर निकल पड़ा है। और आत्मा अपनी मित्र भी हो सकती है, शत्रु भी हो सकती है। ध्यान रखना, शत्रु होना सदा आसान है। शत्रु होने के लिए क्या | करना पड़ता है, कभी आपने खयाल किया है! अगर आपको किसी का शत्रु होना है, तो एक सेकेंड में हो सकते हैं। और अगर मित्र होना है, तो पूरा जन्म भी ना काफी है। अगर आपको किसी का शत्रु होना है, तो क्षण की भी तो जरूरत नहीं है, क्षण भी काफी है। एक | जरा-सा शब्द और शत्रुता की पूरी की पूरी व्यवस्था हो जाएगी। | लेकिन अगर आपको किसी का मित्र होना है, तो पूरा जीवन भी ना काफी है, नाट इनफ । पूरी जिंदगी श्रम करने के बाद भी कहीं कोई 45
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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