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गीता दर्शन भाग-3
नहीं है कहने की कि आइंस्टीन जैसे व्यक्ति को कहे कि अब आप हैं। जिनके लिए न तो बहुत किसी प्रयोगशाला से अर्थ है, न किसी जाइए; अब मैं सोऊ! फिर दो बज गए। और हैरानी इससे और बढ़ गणित की खोज करनी है, न कोई दर्शनशास्त्र की पहेली हल करनी जाती है कि आइंस्टीन कई दफा अपनी घड़ी देखता है। फिर घड़ी है। सिद्धांतों से जिन्हें लेना-देना नहीं। न जिन्हें कोई बड़ा राज्य देखकर सिर खुजलाकर फिर बैठा रह जाता है। वह मित्र बड़ा परेशान बनाना है, न कोई बड़े भवन बनाने हैं। लेकिन जो भाव में जीते हैं, है कि घड़ी भी देख लेते हैं। उनको पता भी है कि दो बज गए। प्रेम में, क्रोध में, जो भाव में जीते हैं।
फिर आखिर में मित्र ने कहा कि क्या आज सोइएगा नहीं? जैसे कि उमर खय्याम ने अपनी रुबाइयात में कहा है कि वृक्ष हो आइंस्टीन ने कहा, यही तो मैं सोच रहा हूं बार-बार घड़ी देखकर छायादार, साथ में सुराही हो सुरा की, और प्रिय तुम निकट हो, कि आप जाएंगे कब! उसने कहा कि आप हद कर रहे हैं! यह घर काव्य की कोई पुस्तक पास हो, तो मैंने सब जगत जीत लिया है; मेरा है। आइंस्टीन ने कहा, माफ करो; मुझे बहुत पक्का नहीं रह फिर कुछ और चाहिए नहीं। गीत को कभी हम काव्य की पुस्तक से जाता कि घर किसका
र-बार घड़ी इसीलिए | पढ़ लेंगे: सुरा को कभी हम पी लेंगे: और फिर तारों से भरे आकाश देख रहा हूं कि अब जाओ! आप जाएंगे कब?
के नीचे आलिंगन में निमग्न होकर सो जाएंगे। छायादार वृक्ष हो, अब जिस आदमी को यह खयाल न रह जाता हो कि कौन-सा इतना काफी है। किसी बड़े मकान की कोई आकांक्षा नहीं है। घर मेरा है, वह घर बनाने की वासनाओं में नहीं पड़ सकता। वह अब यह उमर खय्याम जिस टाइप की बात कर रहा है, वह कोई सवाल नहीं है; वह प्रश्न नहीं है; वह उसके चित्त का हिस्सा भावनाशील। जिंदगी में प्रेम हो, गीत हो, छायादार वृक्ष हो, तो नहीं है।
पर्याप्त। न बहुत विचार का सवाल है, न वह इस विचार में पड़ेगा मोटे दो विभाजन हम कर सकते हैं। एक वे, जो विचार में जीते कि शराब पीना चाहिए कि नहीं पीना चाहिए; न वह इस वृत्ति और हैं, बुद्धि में। एक वे, जो वृत्ति में जीते हैं, वासना में। उन दोनों के वासना में पड़ेगा कि वृक्ष के नीचे कहीं कोई प्रेम हो सकता है, महल बीच भी एक पतला विभाजन है; वे, जो भाव में जीते हैं, भावना | होना चाहिए। नहीं; प्रेम है, तो वृक्ष महल हो गया। और ऐसे व्यक्ति में। ये तीन मोटे विभाजन हैं। इन तीनों के लिए अलग-अलग को अगर प्रेम नहीं मिला, तो बड़ा महल भी वीरान हो जाएगा। यह. प्रक्रियाएं हैं।
भाव के तल पर जीने वाला व्यक्ति है। यह भी बहुत कम है। यह भी वृत्ति में जो जीता है, वासना में और अधिकतम लोग वृत्ति में | बहुत कम है! एक काव्य की पुस्तक पास में हो, उमर खय्याम कहता जीते हैं, सौ में से निन्यानबे लोग; इससे कम नहीं। अधिकतम लोग | है, तो बस काफी है। कभी गीत गा लेंगे उससे निकालकर। वृत्ति में जीते हैं। उनके लिए सूत्र है कि वे दो वृत्तियों, दो वासनाओं __ ऐसे व्यक्ति को जो प्रक्रिया है, बुद्ध ने उस प्रक्रिया को नाम दिया के बीच में सम हों।
है, राइट माइंडफुलनेस, सम्यक स्मृति। इस बात का होश, इस बात बहुत थोड़े-से लोग, आधा परसेंट सौ में से, विचार में जीते हैं। की स्मृति कि यह प्रेम है, यह धृणा है, यह क्रोध है, यह राग है। उनके लिए सूत्र है कि वे विचार के प्रति सजग हों। और आधा इस बात की पूरी स्मृति, इसका पूरा एकाग्र बोध। यह क्या है? यह प्रतिशत लोग, बहुत कम लोग, भावना में जीते हैं। उनके लिए भी जो मैं कर रहा है, यह क्या है? सूत्र है कि वे भाव के प्रति स्मरण से भरें। इन तीनों में थोड़े-थोड़े अगर भाव के प्रति कोई एकाग्र स्मृति को उपलब्ध हो जाए और फर्क हैं।
जान पाए कि यह प्रेम है, तो वह बहुत चकित हो जाएगा। क्योंकि विचार से जिसको निर्विचार की तरफ जाना है, उसे अवेयरनेस, वह पाएगा कि जैसे ही वह होश से भरा कि यह प्रेम है, वैसे ही उसे विचार के प्रति जागरूकता। भाव से जिसे निर्भाव में जाना है, उसे दिखाई पड़ा कि यही घृणा भी है। ट्रांसपैरेंट हो जाएगा, पारदर्शी हो भाव के प्रति माइंडफुलनेस, स्मृति, होश। थोड़ा फर्क है। जाएगा प्रेम, और उसके पार घृणा खड़ी दिखाई पड़ेगी। जैसे ही उसे जागरूकता में और स्मृति में थोड़ा फर्क है। और जिन्हें वृत्तियों से दिखाई पड़ा, यह क्रोध है, अगर उसने गौर से देखा, तो फौरन पीछे जाना है, उन्हें समत्व, समबुद्धि, दो के द्वंद्व के बीच ठहर जाना। पश्चात्ताप, क्षमा भी खड़ी हुई दिखाई पड़ जाएगी। ट्रांसपैरेंट हो
एक दो शब्द बीच के सूत्र के लिए और कह दूं। वे जो भावना | जाएंगे भाव। में जीते हैं; न तो वासना में जीते, न विचार में जीते, भावना में जीते । भाव बहुत ट्रांसपैरेंट हैं, बहुत पारदर्शी हैं, कांच की तरह हैं।
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