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________________ << आसक्ति का सम्मोहन > जाए। स्वभाव ही जिसका फैलाव है। जाओगे। तलवार चलाओ, विचार मत करो। जब लड़ रहे हो, तो ___ पर आइंस्टीन को यह खयाल उसके बाथरूम में मिला। ऐसे लोग तलवार चलाओ, विचार मत करो। अगर जरा-सा विचार किया, इच्छाओं में नहीं जीते, विचारों में जीते हैं। थोड़ा फर्क है। ऐसे लोग | तो तलवार उतनी देर के लिए चूक जाएगी; उतनी देर में दुश्मन तो इच्छाओं में नहीं जीते, विचारों में जीते हैं। इनके लिए, दो इच्छाओं छाती में तलवार डाल देगा। के बीच ठहर जाओ, इस सूत्र का बहुत अर्थ नहीं होगा। इनके लिए, | तो अगर कभी दो समुराई योद्धा उतर जाते हैं तलवार के युद्ध में, विचारों के प्रति सजग हो जाओ, इसका ज्यादा अर्थ होगा। तो बड़ी मुश्किल हो जाती है जीत-हार तय करना। क्योंकि दोनों ही तो जो इंटलेक्चुअल टाइप है, जो बुद्धिवादी टाइप है, जिसका निर्विचार लड़ते हैं एक अर्थ में, विचार नहीं करते, सीधा लड़ते हैं। प्रकार बुद्धि में जीने का है, वासनाओं में जीने का नहीं—बुद्धि भी और लड़ना इंटयूटिव होता है, क्योंकि विचार तो होता नहीं कि कहां वासना है, पर बहुत विभिन्न प्रकार है उसके जीने का उसके लिए चोट करूं! जहां से पूरे प्राण कहते हैं चोट करो, वहीं चोट होती है। तो निर्विचार की साधना है। चोट होने में और विचार करने में फासला नहीं होता। चोट ही लेकिन अधिकतम लोग विचारों में नहीं जीते; अधिकतम लोग । विचार है। वासनाओं में जीते हैं। कभी कोई आइंस्टीन जीता है विचार में। ___ और बड़ी हैरानी की बात है कि समुराई योद्धाओं का अनुभव है अधिक लोग वासनाओं में जीते हैं। अगर आप विचार भी करते हैं, | | यह कि दूसरा व्यक्ति, दुश्मन जब हमला करता है, तो वह कहां तो किसी वासना के लिए। और आइंस्टीन जैसे आदमी अगर कभी | हमला करेगा, पूरे प्राण अपने आप वहां तलवार को उठा देते हैं वासना भी करते हैं, तो किसी विचार के लिए। बचाव के लिए। विचार में तो देर लग जाएगी। विचार में तो थोड़ी इस फर्क को खयाल में ले लें। देर लग जाएगी। विचार में टाइम गैप होगा ही। अगर आप विचार भी करते हैं, तो किसी वासना के लिए। आप अगर आप मुझ पर तलवार से हमला कर रहे हैं और मैंने सोचा चाहते हैं, एक बड़ा मकान हो जाए, तो विचार करते हैं कि कैसे हो कि पता नहीं, यह हमला कहां करेंगे—गर्दन पर, कि कमर में, कि जाए? क्या धंधा करूं? कैसे धन कमाऊं? अगर आइंस्टीन को छाती में! मैंने इतनी देर विचार किया, तलवार की गति तेज है, इतनी कभी बड़े मकान का भी विचार आता है, तो वह तभी आता है, जब देर में तलवार गर्दन काट गई होगी। विचार का मौका नहीं है। यहां उसको लगता है कि उसकी प्रयोगशाला छोटी पड़ गई है। अब | | तो मुझे बिना विचार के तलवार चलाने की सुविधा है, बस। तलवार इसमें विचार ठीक से नहीं हो पा रहा है। वह सोचता है, कोई बड़ी वहां पहुंच जानी चाहिए, जहां तलवार पहुंच रही है दुश्मन की। इसमें प्रयोगशाला मिल जाए। अगर आइंस्टीन जैसा आदमी बड़े मकान | | विचार की बाधा, इसमें विचार का व्यवधान नहीं होना चाहिए। की वासना भी करता है, तो किसी विचार के कारण। और हम अगर तो अर्जुन तो समुराई है। उसकी तो सारी प्रक्रिया पूरे प्राणों से कभी बैठकर थोड़ा विचार भी करते हैं, तो किसी वासना के कारण। लड़ने की है। वासनाएं उसके जीवन में हैं, विचार का बहुत सवाल यह भेद है। जिनकी वासना इंफेटिकली तेज है, उनके लिए कृष्ण नहीं है। इसलिए कृष्ण उससे कह रहे हैं कि तू दो वासनाओं के बीच जो कह रहे हैं, वह ठीक कह रहे हैं। में सम हो जा। दो वासनाओं के बीच में सम हो जाए अर्जुन, तो __ अर्जुन विचार वाला आदमी नहीं है, इच्छाओं वाला आदमी है, योगारूढ़ हो जाए। योद्धा है। विचार से बहुत लेन-देन नहीं है उसको। और आइंस्टीन | आइंस्टीन को योगारूढ़ होना हो, तो वासनाओं में सम होने का जैसा विचार में खो जाए, तो युद्ध न कर पाएगा। युद्ध का सूत्र ही कोई सवाल नहीं। आइंस्टीन कहेगा, वासनाएं हैं कहां? होश भी है कि विचार मत करना, लड़ना। विचार किया, तो लड़ाई कठिन | नहीं है उसे वासना का। हो जाएगी; हार सुनिश्चित हो जाएगी। युद्ध में तो वह आदमी ___ एक मित्र के घर एक रात भोजन के लिए गया था। ग्यारह बजे जीतता है, जो विचार नहीं करता, समग्र रूप से लड़ता है। विचार | भोजन समाप्त हो गया। फिर बाहर बरांडे में बैठकर मित्र के साथ करता ही नहीं। गपशप चलती रही। आइंस्टीन अनेक बार अपनी घड़ी देखता है, जापान में योद्धाओं का एक समूह है, समुराई। समुराई शिक्षक फिर वह सिर खुजलाकर फिर बातचीत में लग जाता है। मित्र बड़ा सिखाते हैं कि अगर तुमने एक क्षण भी विचार किया, तो तुम चूक परेशान है। बारह बज गए, एक बज गए। अब मित्र की हिम्मत भी
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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