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गीता दर्शन भाग-3
जहां तक अंत का संबंध है, दोनों एक हैं। जहां तक सिद्धि का | आइंस्टीन का जीवन तो एक तपस्वी का जीवन है। भोजन करते संबंध है, दोनों एक हैं। जहां तक उपलब्धि का संबंध है, दोनों एक | वक्त भी उसकी पत्नी को ही खयाल रखना पड़ता है कि नमक हैं। जहां पूर्ण होता है निःसंकल्प होना या निर्विचार होना, वहां एक | ज्यादा तो नहीं है, शक्कर ज्यादा तो नहीं है, क्योंकि वह तो खा ही अनुभूति रह जाती है-शून्य की, निराकार की, परम की। लेगा। वह जीता है विचार की दुनिया में, वहीं दौड़ता रहता है। लेकिन जहां तक मार्ग का संबंध है, दोनों में भेद है। जहां तक मार्ग डाक्टर राममनोहर लोहिया एक दफा आइंस्टीन को मिलने गए का संबंध है, दोनों में भेद है। जहां तक मैथडॉलाजी का, विधि का | थे। ग्यारह बजे का वक्त उनकी पत्नी ने दिया था कि आप ठीक संबंध है, वहां दोनों में भेद है।
ग्यारह बजे आ जाएं; और जरा-सी भी देर की, तो कठिनाई होगी। निर्विचार की प्रक्रिया भिन्न है निःसंकल्प होने की प्रक्रिया से। तो लोहिया ने सोचा कि शायद कोई बहुत जरूरी काम होगा ग्यारह निःसंकल्प होने की प्रक्रिया है, समत्वबुद्धि, द्वंद्व के बीच में ठहर के बाद आइंस्टीन को। वे भागे हुए ठीक ग्यारह बजे पहुंचे, लेकिन जाना। निःसंकल्प होने की, संकल्पातीत होने की, संकल्पशून्य सिर्फ एक मिनट की देरी हो गई। होने की विधि है-जो मैंने अभी आपसे कही-समबुद्धि को तो उनकी पत्नी ने कहा कि आप तो चूक गए। पर उन्होंने कहा, उपलब्ध हो जाना। निर्विचार होने की प्रक्रिया है, साक्षित्व को एक ही मिनट! मुझे दरवाजे पर भी वे दिखाई नहीं पड़े। वे गए उपलब्ध हो जाना।
कहां? उसकी पत्नी ने कहा कि वे बाथरूम में चले गए। उन्होंने परिणाम एक होंगे। निर्विचार होने की प्रक्रिया है, साक्षी हो जाना | | कहा, आप भी क्या बात करती हैं! मैं प्रतीक्षा कर सकता हूं। उसने विचार के। कैसा ही विचार हो, उस विचार के केवल विटनेस हो कहा, लेकिन कोई हिसाब नहीं कि वे कब निकलें। उन्होंने कहा, जाना, देखने वाले हो जाना, दर्शक बन जाना। खेल में होते हुए, बाथरूम में कितना नहाते हैं? उसने कहा, नहाने का तो सवाल खेल के दर्शक हो जाना। जैसे नाटक को देखते हैं, ऐसा अपने मन कहां है। कई दफा तो बिना नहाए निकल आते हैं। तो बाथरूम में को देखने लगना। विचारों की जो धारा बहती है, उसके किनारे, ।। करते क्या हैं? वे वही करते हैं, जो चौबीस घंटे करते हैं। टब में जैसे रास्ता चल रहा है, लोग चल रहे हैं, उसके किनारे बैठकर । लेट जाते हैं; सोचना शुरू कर देते हैं। नहाना तो भूल जाते हैं! रास्ते को देखने लगा कोई। ऐसे किनारे बैठकर, मन के विचारों की छः घंटे बाद वे निकले। बड़े आनंदित बाहर आए। कोई गणित धारा को देखने लगना।
की पहेली हल हो गई। डाक्टर लोहिया ने पूछा कि गणित की पहेली विचारों के प्रति जागरूकता विधि है। और जो विचारों के प्रति आप क्या बाथरूम में हल करते हैं? तो आइंस्टीन ने कहा कि जागरूक होगा, वह वहीं पहुंच जाएगा निर्विचार होकर, निराकार एक्सपैंडिंग यूनिवर्स का जो सिद्धांत मैंने विकसित किया कि जगत में। लेकिन उन दोनों के छलांग के स्थान अलग-अलग हैं। और निरंतर फैल रहा है. ठहरा हआ नहीं है, जैसे कि कोई गब्बारे में हवा व्यक्ति व्यक्ति के टाइप, प्रकार पर निर्भर करता है कि कौन-सा | भर रहा हो और गुब्बारा बड़ा होता जाए, ऐसा जगत बड़ा होता जा उचित होगा।
रहा है; ठहरा हुआ नहीं है। जगत रोज बड़ा हो रहा है। आइंस्टीन जैसे उदाहरण के लिए, कुछ लोग हैं, जो इच्छाओं जैसी चीज के सिद्धांत को समर्थन मिल पाया और सही सिद्ध हुआ। तो ज्यादा करते ही नहीं, विचार ही करते हैं। इंटलेक्चुअल्स, बुद्धि की आइंस्टीन ने कहा कि यह सिद्धांत मैंने अपने बाथरूम के टब में दुनिया में जीने वाले लोग इच्छाओं के जाल में बहुत नहीं पड़ते। बैठकर साबुन के बबूले उठाते वक्त, जब साबुन के बबूले बड़े अक्सर गहन बुद्धि में जीने वाला आदमी बहुत आस्टेरिटी में, होते, तब मुझे खयाल आया। यह साबुन के बबूले अपने टब में तपश्चर्या में जीता है।
बनाते हुए और बबूलों से खेलते वक्त मुझे खयाल आया कि यह आइंस्टीन! अब आइंस्टीन से अगर आप कहो कि चुनाव मत जगत एक्सपैंडिंग हो सकता है। करो, तो वह कहेगा, चुनाव हम करते ही कहां! अगर आइंस्टीन से हमारे पास तो जो शब्द है ब्रह्म, उसका मतलब ही होता है, आप कहो कि न काली कार चुनो, न नीली कार चुनो; वह कहता एक्सपैंशन। इस मुल्क के ऋषि तो सदा से यह कहते रहे हैं कि है कि हमने कभी खयाल ही नहीं किया कि कौन-सी कार काली है। जगत फैल रहा है, जगत ठहरा हुआ नहीं है। ब्रह्मांड का अर्थ ही और कौन-सी नीली है!
होता है, जो फैलता चला जाए। जो रुके ही नहीं, फैलता ही चला