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7 आसक्ति का सम्मोहन -
सारी ऊर्जा नियोजित होनी चाहिए। हाथ तीर पर पहुंच जाना लेना चाहिए कि चुनाव से पैदा हो रहे हैं। और दाएं और बाएं के बीच चाहिए। तीर पक्षी पर लग जाना चाहिए। सारी एकाग्रता, सारी मन में खड़ा हो जाना चाहिए। और कहना चाहिए, मैं चुनूंगा नहीं। मैं एक की शक्ति, सारे शरीर की शक्ति तीर में समाहित हो जानी चाहिए। ही चुनाव करता हूं कि मैं चुनूंगा नहीं। टु बी च्वाइसलेस इज़ दि जब तीर चढ़ गया प्रत्यंचा पर, पक्षी पर ध्यान आ गया, तो इच्छा ओनली च्वाइस। एक ही चुनाव है मेरा कि अब मैं चुनाव नहीं करता। न रही, संकल्प हो गया। हां, अभी भी लौट सकते हैं। अभी भी इच्छाओं के बादल थोड़ी देर में ही बिखर जाएंगे और तिरोहित संकल्प छूट नहीं गया है। लेकिन अगर तीर छूट गया हाथ से, तो हो जाएंगे। और अगर आप बाएं और दाएं के बीच में खड़े हो गए, फिर लौट नहीं सकते। संकल्प अगर चल पड़ा यात्रा पर, प्रत्यंचा | तो समत्व का अनुभव होगा। और समत्व का अनुभव योगारूढ़ के बाहर हो गया, तो फिर लौट नहीं सकते।
होने का द्वार खोल देता है। वहां कोई संकल्प नहीं है; वहां कोई तो संकल्प की दो अवस्थाएं हैं। एक अवस्था, जहां से लौट | | विकल्प नहीं है। वहां परिपूर्ण मौन, परिपूर्ण शून्य है। उसी शून्य में सकते हैं; और एक अवस्था, जहां से लौट नहीं सकते। हमारे सौ | परम साक्षात्कार है। में से निन्यानबे संकल्प ऐसी ही अवस्था में होते हैं, जहां से लौट __ कृष्ण के सभी सूत्र परम साक्षात्कार के विभिन्न द्वारों पर चोट सकते हैं। जिन-जिन संकल्पों से लौट सकते हैं, लौट जाएं। करते हैं। वे अर्जुन को कहते हैं कि तू समत्वबुद्धि को उपलब्ध हो संकल्प से लौटेंगे तो इच्छा रह जाएगी। हमारी सौ प्रतिशत इच्छाएं जा. फिर त योगारूढ हो जाएगा। और फिर यो तेरे सारे ऐसी हैं, जिनसे हम लौट सकते हैं। निन्यानबे प्रतिशत संकल्प ऐसे संकल्प गिर जाएंगे, सब विकल्प गिर जाएंगे; तेरे चित्त की सारी हैं, जिनसे हम लौट सकते हैं। केवल उन्हीं संकल्पों से लौटना | | चिंताएं गिर जाएंगी। तू निश्चित हो जाएगा। सच तो यह है कि तू मुश्किल है, जिनके तीर हमारी प्रत्यंचा के बाहर हो गए। चित्तातीत हो जाएगा। चित्त ही तेरा न रह जाएगा, मन ही तेरा न रह ___ मैं उस क्रोध से भी वापस लौट सकता हूं, जो अभी मेरी वाणी | जाएगा। अगर ऐसा कहें, तो कह सकते हैं कि फिर तू अर्जुन न रह नहीं बना। मैं उस क्रोध से भी वापस लौट सकता हूं, जो अभी जाएगा, आत्मा ही रह जाएगा। मुखर नहीं हुआ। लेकिन जो क्रोध गाली बन गया और मेरे होठों | और जिस दिन कोई सिर्फ आत्मा रह जाता है, उसी दिन जान से बाहर हो गया, उससे वापस लौटने का कोई उपाय न रहा; तीर | पाता है अस्तित्व के आनंद को, वह जो समाधि है अस्तित्व की, छूट गया है।
वह जो एक्सटैसी है, वह जो मंगल है, वह जो सौंदर्य है लेकिन जिन संकल्पों के तीर छूट गए हैं, तीर छूट गया, अब गहन–सत्य, स्वयं में छिपा-उसके उदघाटन को। परम है पक्षी को लगेगा और पक्षी गिरेगा मरकर, तो भी मैं इतना तो कर ही | | संगीत उसका, परम है काव्य उसका। सकता हूं, संकल्प को व्यर्थ कर सकता हूं। लौट तो नहीं सकता, लेकिन जानने के पहले एक तैयारी से गुजरना जरूरी है। उसी लेकिन व्यर्थ कर सकता हूं। व्यर्थ करने का मतलब यह है कि पक्षी | | तैयारी का नाम योग है। उस तैयारी की सिद्धि को पा लेना योगारूढ़ पर मालकियत न करूं। जिस इच्छा को लेकर संकल्प निर्मित हुआ | हो जाना है। उस तैयारी की प्रक्रिया समत्वबुद्धि है। था, उस इच्छा को पूरा न करूं। अभी भी तीर खींचा जा सकता है पक्षी से। अभी भी पक्षी के घाव ठीक किए जा सकते हैं। अभी भी पक्षी को पिंजड़े में न डाला जाए, इसका आयोजन किया जा सकता प्रश्नः भगवान श्री, इस श्लोक में कहे गए शमः है। अभी भी पक्षी जिंदा हो, तो उसे मुक्त आकाश में छोड़ा जा अर्थात सर्वसंकल्पों के अभाव में और निर्विचार सकता है।
अवस्था में क्या कोई भेद है अथवा दोनों एक ही हैं? तो जो संकल्प तीर की तरह निकल गए हों, उन संकल्पों को कृपया इस पर प्रकाश डालें। अनडन करने के लिए जो भी किया जा सके, वह साधक को करना चाहिए, उनको व्यर्थ करने के लिए। जो संकल्प अभी प्रत्यंचा पर चढ़े हैं, प्रत्यंचा ढीली छोड़कर तीरों को वापस तरकस में पहुंचा देना +- विचार और निःसंकल्प क्या इन दोनों में कोई भेद है चाहिए। जो संकल्प इच्छा रह जाएं, उन इच्छाओं के द्वंद्व को समझ OI या दोनों एक हैं?