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< आसक्ति का सम्मोहन -
वासनाएं पत्थर की तरह हैं, नान-ट्रांसपैरेंट हैं, उनके आर-पार कुछ | उससे भी कहते हैं कि नाव छोड़ो, तो हम एक ही गंगा में पहुंच नहीं दिखाई पड़ता। वृत्तियां बहुत ठोस हैं। भाव बहुत तरल, भाव जाएंगे। तुम जो ठीक अपोजिट, विपरीत खड़े हो। उस तरफ घाट बहुत झीने हैं, उनके आर-पार दिखाई पड़ सकता है। वृत्तियों के बनाया तुमने। ठीक है। उस तरफ के उतरने वालों के लिए वही आर-पार कुछ दिखाई नहीं पड़ता। वृत्तियों के तो, दो वृत्तियों के | उपयोगी होगा। इस तरफ वाले उस तरफ के घाट से कैसे उतरेंगे? बीच में आप खड़े हों, तो द्वार मिलेगा। दो पत्थर हैं वे। लेकिन भाव | और उस तरफ के लोग इस तरफ के घाट से कैसे उतरेंगे? में अगर आप सजग हो जाएं, तो भाव में से ही आप को पार दिखाई तो महावीर कहते हैं, कहीं से भी घाट हो, गंगा में, सत्य की गंगा पड़ने लगेगा। भाव कांच की तरह झीने हैं, दिखाई पड़ सकता है में, अस्तित्व की गंगा में उतर जाएं। तो कहते हैं, सभी ठीक हैं। उनके पार; पारदर्शी हैं।
एक ही बात को महावीर गलत कहते हैं। वे कहते हैं, जब भी कोई विचार के प्रति सजगता, भाव के प्रति स्मृति, वासना के प्रति घाट वाला कहता है कि बस, यही घाट है, तब गलत कहता है। समत्व। परिणाम एक होगा। ये भेद, तीन तरह के लोग हैं पृथ्वी बस, एक बात गलत है। जब कोई कहता है, यही घाट ठीक है, पर, इसलिए हैं। परिणाम एक होगा।
और सब घाटों को गलत कहता है, तभी गलत कहता है। बाकी निर्विचार हो जाएं, कि निर्भाव, कि निःसंकल्प। जो बचेगा, वह | कोई गलती नहीं है। घाट बिलकुल ठीक है, दावा गलत है। उस निराकार है। आप एक ही गंगा में कूदेंगे, लेकिन घाट अलग-अलग घाट से भी उतर सकते हैं। लेकिन बस दावा यह गलत है कि इसी होंगे। घाट आपका अपना होगा। जब तक घाट पर खड़े हैं, तब घाट से उतर सकते हैं। महावीर कहते हैं, इतना ही कहो, इससे भी तक फर्क होगा। गंगा में कूद गए, फिर कोई फर्क नहीं होगा। फिर उतर सकते हैं। यह मत कहो, इसी से उतर सकते हैं। बस इसी में आप क्या फर्क करेंगे कि मैं अलग घाट से कदा था, इसलिए मेरी हिंसा आ जाएगी। दूसरे घाटों को इनकार हो जाएगा। गंगा अलग है! कि तुम अलग घाट से कूदे थे, इसलिए तुम्हारी गंगा | और सब घाट बड़े छोटे हैं, गंगा बहुत बड़ी है। पूरी गंगा पर अलग है! घाट तो उसी क्षण छूट गया, जब आप गंगा में कूदे। घाट बनाना भी मुश्किल है। हालांकि सभी धर्म कोशिश करते हैं लेकिन घाट के फर्क हैं। अगर हम ठीक से समझें, तो सारी दुनिया कि पूरी गंगा पर मेरा ही घाट बन जाए! बन नहीं पाता। जब तक के धर्म, घाट के फर्क हैं।
घाट बनता है, तब तक अक्सर गंगा अपनी धारा बदल देती है। जैन बहुत ठीक शब्द उपयोग करते हैं अपने उपदेष्टाओं के कभी बन नहीं पाता है। लिए, जिन्होंने ज्ञान दिया। उनको वे कहते हैं, तीर्थंकर। तीर्थंकर का ___ गंगा बड़ी है। अस्तित्व की गंगा विराट है। हम एक छोटे-से अर्थ होता है, घाट बनाने वाला, तीर्थ बनाने वाला। उसका इतना कोने में घाट बनाने में सफल हो जाएं, वह भी बहुत है। उससे भी ही मतलब होता है कि इस आदमी ने एक घाट और बनाया, जिससे | | हम छलांग लगा सकें, वह भी बहुत है। लोग कूद सकते हैं। दावा गंगा का नहीं है, दावा सिर्फ घाट का है। | तीन प्रकार के घाट मल रूप से भिन्न हैं—भाव वाला. विचार इसलिए दावा बिलकल ठीक है। दावा यह नहीं है कि इस आदमी वाला, वासना वाला। कष्ण ने जो यह सत्र कहा है. यह वासना ने गंगा बनाई। दावा इतना ही है कि इस आदमी ने एक घाट और वाले के लिए है। समत्व के घाट से वह योगारूढ़ हो सकता है। बनाया, जहां से नाव छोड़ी जा सकती है। और भी घाट हैं, उनका कोई इनकार नहीं है। इसलिए महावीर ने किसी घाट का इनकार नहीं किया। कहा,
यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते । और भी घाट हैं। उनसे भी कोई जा सकता है। इसलिए महावीर को सर्वसंकल्प संन्यासी योगारूढस्तदोच्यते ।। ४ ।। बहुत कम समझ सके लोग, क्योंकि महावीर किसी को गलत ही न और जिस काल में न तो इंद्रियों के भोगों में आसक्त होता कहेंगे। वे कहेंगे कि वह भी ठीक है; वह भी एक घाट है। है तथा न कमों में ही आसक्त होता है, उस काल में
ठीक विपरीत कहने वाले को, जो कहता है कि मैं तुम्हारे तो सर्वसंकल्पों का त्यागी पुरुष योगारूढ़ कहा जाता है। बिलकुल विपरीत खड़ा हूं; तुम इस तरफ घाट बनाए हो, मैंने उस तरफ घाट बनाया है, हम दोनों एक कैसे हो सकते हैं? महावीर
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