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________________ आसक्ति का सम्मोहन - लगेगा, बाडीलेसनेस हो गई है। शरीर में कोई भार न रहा। शरीर प्रति आप भी सचेतन नहीं हैं। आप तो थोड़ी देर बाद सचेतन होंगे; जैसे निर्भार हो गया। ऐसा लगेगा. जैसे आकाश में चाहें तो उड | देर लगेगी। इस आदमी से बातचीत होगी। और आपके मन ने जो सकते हैं! उड़ नहीं सकेंगे; लेकिन लगेगा ऐसा कि चाहें तो उड़ निर्णय ले लिया, उस निर्णय के अनुसार मन इस आदमी में वे-वे सकते हैं। ग्रेविटेशन नहीं मालूम होता। ग्रेविटेशन तो है, जमीन तो बातें खोज लेगा, जो आपने निर्णय लिया है। अभी भी खींच रही है। लेकिन जमीन का जो भार है, वह असली आमतौर से आप सोचते हैं कि आप सोच-समझकर निर्णय लेते भार नहीं है। असली भार तो मन का है, जो निरंतर द्वंद्व, हर छोटी हैं। लेकिन जो मन को समझते हैं, वे कहते हैं, निर्णय आप पहले चीज में द्वंद्व को खड़ा करता है। लेते हैं, सोच-समझ सब पीछे का बहाना है। इस छोटे-से प्रयोग को भी अगर रोज पंद्रह मिनट कर पाएं, तो | एक आदमी के प्रेम में आप पड़ जाते हैं। आपसे कोई पूछे, क्यों तीन महीने में आप उस स्थिति में आ जाएंगे, जब दोनों पैर के बीच पड़ गए? तो आप कहते हैं, उसकी शकल बहुत सुंदर है, कि में आपको खड़े होने का अनुभव शुरू हो जाएगा। तो इस छोटे-से | उसकी वाणी बहुत मधुर है। लेकिन मनोवैज्ञानिक कहते हैं, प्रेम में सूत्र से आपको मन को समत्वबुद्धि में ले जाने का आधार मिल | आप पहले पड़ जाते हैं, ये तो सिर्फ बाद के रेशनलाइजेशंस हैं। जाएगा। तब जब भी मन और कहीं भी बायां-दायां चुनना चाहे, । | अगर कोई पूछे कि क्यों प्रेम में पड़ गए? तो आप इतने समझदार तब आप वहां भी बीच में ठहर पाएंगे। लेकिन बीच में ठहरने का | | नहीं हैं कि आप यह कह सकें कि मुझे पता नहीं क्यों प्रेम में पड़ अनुभव कहीं से तो शुरू करना पड़े। कठिन बात मैंने नहीं कही है, | | गया! बस, पड़ गया हूं! समझदारी दिखाने के लिए आप कहेंगे कि बहुत सरल कही है। क्योंकि और चीजें बहुत कठिन हैं। | इसकी शकल देखते हैं, कितनी सुंदर है! लेकिन इसी की शकल . और चीजें बहुत कठिन हैं। मित्र न बनाएं, शत्रु न बनाएं-बड़ा | को देखकर कोई घृणा में पड़ जाता है। इसी की शकल को देखकर कठिन मालूम पड़ेगा। मन ने किसी को देखा नहीं कि बनाना शुरू | कोई दुश्मन हो जाता है। कहते हैं, देखते हैं, इसकी आवाज कितनी कर देता है। आपको थोड़ी देर बाद पता चलता है; मन उसके पहले | | मधुर है! इसी की आवाज सुनकर किसी को रातभर नींद नहीं बना चुका होता है। अजनबी आदमी भी आपके कमरे में प्रवेश आती। और आपको भी कितने दिन आएगी, कहना पक्का नहीं है। करता है. आपका मन चौंककर निर्णय ले चका होता है। निर्णय महीने. दो महीने. तीन महीने. चार महीने बाद हो सकता है. आपको भी बाद में जाहिर होते हैं। मन कह देता है, पसंद नहीं है डायवोर्स की दरख्वास्त लेकर खड़े हों। यही आवाज बहुत कर्णकटु यह आदमी। अभी मिले भी नहीं, बात भी नहीं हुई, चीत भी नहीं हो जाए, जो बहुत मधुर मालूम पड़ी थी। हुई; अभी पहचाना भी नहीं, लेकिन मन ने कह दिया कि पसंद नहीं | क्या हो गया? आवाज वही है, आप वही हैं, चेहरा वही है। है। पुराने अनुभव होंगे। | इससे बड़ी सुगंध आती थी, अब दुर्गंध आने लगी। नाक-नक्श मन के पास अपने अनुभव हैं। कभी इस शकल के आदमी ने | वही है, लेकिन पहले बिलकुल संगमरमर मालूम होता था, अब कुछ गाली दे दी होगी। कि इस आदमी के शरीर से जैसी गंध आ| | बिलकुल मिट्टी मालूम होने लगा। हो क्या गया? रही है, वैसे आदमी ने कभी अपमान कर दिया होगा। कि इस | | कुछ हो नहीं गया। मन भीतर पहले निर्णय ले लेता है; पीछे आदमी की आंखों में जैसा रंग है, वैसी आंखों ने कभी क्रोध किया आपकी बुद्धि उसका अनुसरण करती रहती है। होगा। कोई एसोसिएशन इस आदमी से तालमेल खाता होगा। मन | | फ्रायड का कहना है-और फ्रायड मन को जितना जानता है, ने कह दिया कि सावधान! यह आदमी तुर्की टोपी लगाए हुए है, कम लोग जानते हैं—कहना है कि मनुष्य अपने सब निर्णय अंधेरे मुसलमान है। यह आदमी तिलक लगाए हुए है, हिंदू है। जरा | | में और अचेतन में लेता है। और उसकी सब बुद्धिमत्ता झूठी और सावधान! यही आदमी मस्जिद में आग लगा गया था; कि यही बेईमानी है। सब बातें वह जो कहता है कि मैंने बड़ी सोच-समझकर आदमी मंदिर को तोड़ गया था। सावधान! की हैं, कोई सोच-समझकर नहीं करता। बातें पहले कर लेता है, यह बहुत अचेतन है, यह आपके होश में नहीं घटता है। होश | | पीछे सोच-समझ का जाल खड़ा करता है। में घटने लगे, तब तो घट ही न पाए। यह आपकी बेहोशी में घटता। हम ऐसे मकान बनाने वाले हैं—मकान बनाने के लिए स्ट्रक्चर है। आपके भीतर उन अंधेरे कोनों में घट जाता है यह निर्णय, जिनके | खड़ा करना पड़ता है न बाहर! चारों तरफ बांस-लकड़ियां बांधनी
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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