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________________ गीता दर्शन भाग-3 समाप्त हो जाए। हां, द्वंद्व बदल जाएगा। अमीर-गरीब का न रहेगा, | उपलब्ध न हो-और एक व्यक्ति के चित्त के समता को उपलब्ध तो सत्ताधारी कमीसार और गैर-सत्ताधारी का हो जाएगा। पद वाले होने से कुछ भी नहीं होता। क्योंकि कुछ कृष्ण और महावीर और का और गैर-पद वाले का हो जाएगा। धन का न रहेगा, सौंदर्य का कुछ बुद्ध सदा समता को उपलब्ध होते रहे हैं। लेकिन इसके हो जाएगा, बुद्धि का हो जाएगा। अतिरिक्त कोई भी मार्ग नहीं है। और बड़े मजे की बात है! पुराने जमाने में लोग कहते थे कि धन __ मन दुख लाएगा ही, क्योंकि मन द्वंद्व लाएगा। जहां होगा द्वंद्व, तो भाग्य से मिलता है। कल अगर समाजवाद दुनिया में आ जाए, | वहां होगा संघर्ष, वहां होगी कलह, वहां होगा द्वेष, वहां होगी तो कोई सुंदर होगा, कोई असुंदर होगा। किसी के सुंदर होने से | उत्तेजना, वहां होगा तनाव; वहां पीड़ा सघन होगी, वहां संताप घना उतनी ही ईर्ष्या जगेगी, जितनी किसी के धनी होने से जगती रही है। होगा, वहां जीवन नर्क होगा। फिर साम्यवाद क्या कहेगा कि संदर होना कैसे हो जाता है? | मन नर्क का निर्माता है। मन के रहते कोई स्वर्ग में प्रवेश नहीं कहेगा, भाग्य से हो जाता है। कहेगा, प्रकृति से हो जाता है। कर सकता। क्योंकि मन ही नर्क है। लेकिन अगर कोई सम हो फिर एक आदमी बुद्धिमान होगा और एक आदमी बुद्धिहीन जाए...। होगा। और बुद्धिहीन सत्ता में तो नहीं पहुंच पाएंगे; बुद्धिमान सत्ता तो कभी छोटे-छोटे प्रयोग करके देखें सम होने के। बहुत में पहुंच जाएंगे। फिर समाजवाद क्या कहेगा? कि ये बुद्धिमान | छोटे-छोटे प्रयोग करके देखें; उनसे ही रास्ता धीरे-धीरे साफ हो सत्ता में पहुंच गए। आखिर बुद्धिमान और बुद्धिहीन को समान हक सकता है। होना चाहिए। पर यह बुद्धिमान सत्ता में पहुंच जाता है। तब एक ही कभी स्नान करके खड़े हैं। खयाल करें, तो आप हैरान होंगे कि उत्तर रह जाएगा कि बद्धिमान के लिए हम कैसे बंटवारा करें। वह या तो आपका वजन बाएं पैर पर है या दाएं पैर पर है। थोडा-सा शायद भाग्य से ही है। वह बुद्धिमान है पैदाइश से, और तुम खयाल करें आंख बंद करके, तो आप पाएंगे, वजन बाएं पैर पर है बुद्धिमान नहीं हो पैदाइश से। या दाएं पैर पर है। अगर पता चले कि आपके शरीर का वजन बाएं द्वंद्व बदल जाएंगे। द्वंद्व नहीं बदलेगा; द्वंद्व जारी रहेगा। क्योंकि पैर पर है, तो थोड़ी देर रुके हुए देखते रहें। आप थोड़ी देर में पाएंगे मन द्वंद्वात्मक है। लेकिन मार्क्स को खयाल भी नहीं था मन का, कि वजन दाएं पैर पर हट गया। अगर दाएं पैर पर वजन मालूम उसे तो खयाल था समाज की व्यवस्था का। पड़े, तो वैसे ही खड़े रहें और पीछे अंदर देखते रहें कि वजन दाएं बुद्ध या कृष्ण या महावीर या क्राइस्ट को हम पूछे, तो वे कहेंगे, पैर पर है। क्षण में ही आप पाएंगे कि वजन बाएं पैर पर हट गया। समाज की व्यवस्था तो मन का फैलाव है। हां, उस दिन समाज | मन इतने जोर से बदल रहा है भीतर। वह एक पैर पर भी एक क्षण समतुल हो सकता है, जिस दिन व्यक्ति योगारूढ़ हो जाएं, बड़े खड़ा नहीं रहता। बाएं से दाएं पर चला जाता है; दाएं से बाएं पर पैमाने पर। इतने बड़े पैमाने पर व्यक्ति योगारूढ़ हो जाएं कि जो चला जाता है। योगारूढ़ नहीं हैं, वे अर्थहीन हो जाएं; उनका होना, न होना व्यर्थ अब अगर इस छोटे-से अनुभव में आप एक प्रयोग करें, उस हो जाए। पर अभी तो एकाध आदमी कभी करोड़ में योगारूढ़ हो स्थिति में अपने को ऐसा समतुल करके खड़ा करें कि न वजन बाएं जाए, तो बहुत है। इसलिए जो सिर्फ सपने देखते हैं, वे कह सकते पैर पर हो, न दाएं पैर पर; दोनों पैरों के बीच में आ जाए। यह बहुत हैं कि कभी ऐसा हो जाएगा कि सब लोग योगारूढ़ हो जाएं। यह छोटा-सा प्रयोग आपसे कह रहा हूं। वजन दोनों के बीच आ जाए। दिखाई नहीं पड़ता। यह संभावना बड़ी असंभव मालूम पड़ती है। एक क्षण को भी उसकी झलक आपको मिलेगी, तो आप हैरान यह आशा बड़ी निराशा से भरी मालूम पड़ती है कि समाज किसी। | हो जाएंगे। और मिलेगी झलक। क्योंकि जब बाएं पर जा सकता है दिन समतुल हो जाए। क्योंकि अभी तो हम व्यक्ति को भी समबुद्धि और दाएं पर जा सकता है, तो बीच में क्यों नहीं रह सकता! कोई का नहीं बना पाते हैं। समाज तो बड़ी घटना है। और समाज तो कारण नहीं है, कोई बाधा नहीं है, सिर्फ पुरानी आदत के अतिरिक्त। बदलती हुई घटना है। एक व्यक्ति भी हम निर्मित नहीं कर पाते हैं, एक क्षण को आप ऐसे अपने को समतुल करें कि बीच में रह गए, जो कि सम हो जाए। इसलिए साम्य कभी समाज में हो जाए, यह न बाएं पर वजन है, न दाएं पर। और जिस क्षण आपको पता चलेगा असंभव मालूम पड़ता है। जब तक व्यक्ति का चित्त पूरी समता को कि बीच में है, उसी क्षण आपको लगेगा कि शरीर नहीं है। एकदम 261
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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