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________________ < मुखौटों से मुक्ति - चौथी तरह का आदमी पैदा होता है। अगर चौथे की ही बात करनी | बड़ी भीड़ उन्हीं की है। वह एक तो अपवाद है; उसे पीछे से गिना हो, तो बिलकुल बेकार हो जाए, क्योंकि असली भीड़ तो इन तीन | दिया है। की है। ये नियम हैं; वह चौथा तो अपवाद है। इसलिए गिनती कर लेनी उचित समझी कि इनकी गिनती कर ली जाए। यद्यपि पीछे कह दिया जाएगा कि ये तीनों सिर्फ धोखे के भक्त हैं; दिखाई ही कामैस्तैस्तैर्हतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः । पड़ते हैं, हैं नहीं। तं तं नियमास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया ।। २० ।। और कई बार बिलकुल उलटी घटना घटती है। वह चौथा जो है, और हे अर्जुन, जो विषयासक्त पुरुष हैं, वे तो अपने स्वभाव शायद दिखाई न पड़े, और हो। और ये तीन दिखाई पड़ें, और हों से प्रेरे हुए तथा उन-उन भोगों की कामना द्वारा ज्ञान से न। क्योंकि वह चौथा क्यों दिखाई पड़ेगा! वह कोई सड़क पर खड़े | भ्रष्ट हुए, उस-उस नियम को धारण करके अन्य देवताओं होकर चिल्ला नहीं देगा। वह किसी मंदिर में हाथ जोडकर खडा को भजते हैं अर्थात पूजते हैं। होगा, जरूरी नहीं है। हो भी सकता है, न भी खड़ा हो। क्योंकि उसके तो प्राणों में रम जाएगी बात; उसके श्वास-श्वास में समा जाएगी बात। गह भी कहा कृष्ण ने कि वे जो कामासक्त हैं, एक मुसलमान फकीर हुआ है। सत्तर साल तक मस्जिद जाता प विषयासक्त हैं, भोगों की आकांक्षाओं से भरे हैं, भोग रहा। एक दिन न चूका। बीमार हो, परेशान हो, बरसा होती हो, | से सम्मोहित हैं, वे ज्ञान से च्युत होकर मेरा स्मरण नहीं धूप जलती हो, पांच नमाज पूरी मस्जिद में करता रहा। एक दिन | करते, अन्य-अन्य देवताओं का स्मरण करते हैं। अचानक सबह की नमाज में नहीं आया: मस्जिद के लोगों ने समझा। इसमें दो बातें हैं। कि शायद मर गया। इसके सिवाय कोई सोचने का कारण ही न था। ___ एक तो यह कि जो व्यक्ति भी कामासक्त हुआ, विषयासक्त क्योंकि किसी भी हालत में वह आया था। इन पचास वर्षों में जितने हुआ, वह ज्ञान से च्युत होता है। वह जो भीतर ज्ञान की धारा है, लोग उसे जानते थे, वह नियमित आया था। गांव में कुछ भी हुआ | जैसे ही जरा-सा भी विषय की तरफ मन दौड़ा कि वह धारा पतित हो, वह पांच बार मस्जिद में आया था; आज नहीं आया। होती है, स्खलित होती है। एक क्षण को भी मन किसी विषय के सारी मस्जिद नमाज के बाद भागी हुई फकीर के घर पहुंची। वह प्रति प्रेरित हुआ, कि इसे पा लं, यह मेरा हो जाए, इसे भोग लं: अपने दरवाजे पर बैठकर खंजड़ी बजा रहा था। उन्होंने कहा कि जैसे ही भोग का कोई खयाल आया कि वह भीतर की जो क्या दिमाग खराब हो गया या मरते वक्त नास्तिक हो गए! क्या चेतन-धारा है, वह जो करंट है चेतना की, वह तत्काल डांवाडोल कर रहे हो यह? नमाज चूक गए! सत्तर साल का बंधा हुआ क्रम होकर अधोगति की यात्रा करने लगती है। हर विषयासक्ति चेतना तोड़ दिया? आज मस्जिद क्यों न आए? की धारा को पतित करती है। उस फकीर ने कहा कि जब तक नमाज करनी न आती थी, तब | ___ एक बात तो यह इसमें खयाल ले लेने जैसी है। तक मस्जिद में आता था। अब नमाज करनी आ गई। अब यहीं बैठे जरा-सा, जरा-सा भी खयाल! रास्ते पर गुजरते हैं, और दुकान हो गई। अब कहीं जाने की कोई जरूरत नहीं। सच तो यह है, उस पर दिख गई कोई चीज, और खयाल आया-मिल जाए, मेरी हो फकीर ने कहा कि अब करने की भी कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि जाए, मैं मालिक हो जाऊं। जरा-सी झलक, एक जरा-सी किरण अब करने वाला भी कहां बचा; नमाज ही बची। भीतर प्रार्थना ही वासना की, और आप जरा रुककर खड़े होकर वहीं देखना कि रह गई है; अब प्रार्थना करने वाला भी नहीं है। आपके भीतर अज्ञान घना हो गया और ज्ञान फीका हो गया। इसे तो बहुत संभावना तो यह है कि वे तीन ही तरह के भक्त आपको आप अनुभव करेंगे, तो खयाल में आएगा। जरा-सी वासना, और दिखाई पड़ेंगे; चौथा तो शायद दिखाई नहीं पड़ेगा। लेकिन वह आप अचानक पाएंगे कि मूर्छा घिर गई, बेहोशी आ गई, अज्ञान चौथा ही है। वे तीन तो सिर्फ नाम मात्र को. फार नेम्स सेक. भक्त भर गया. और क्षणभर को जैसे बि हैं। कृष्ण ने उनको गिना दिया कि कहीं वे नाराज न हो जाएं! क्योंकि लेकिन हम तो चौबीस घंटे विषय की कामना से भरे हुए हैं।
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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