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< गीता दर्शन भाग-3 -
कि खोलकर देख लें कि उस तरफ क्या है! कीड़ा चला जा रहा है, स्वभावतः, चूंकि उसने कभी कुछ नहीं मांगा था, इसलिए उसकी तो टांग तोड़कर भीतर देख लें कि कौन-सी चीज चला रही है! प्रार्थना में बड़ा बल था। और स्वभावतः, क्योंकि उसने अपने लिए बच्चों जैसा कुतूहल, तो जिज्ञासु है।
प्रार्थना नहीं की थी, इसलिए भी बड़ा बल था। लेकिन जानी का अर्थ है. जो सिर्फ मात्र कतहल से नहीं, बल्कि कहानी कहती है कि परमात्मा ने उसकी प्रार्थना सुन ली। और जीवन को आमूल रूपांतरित करने की प्रेरणा से भरा है। जिसके सबह जब नगर के लोग उठे. तो चमत्कत रह गए। जहां झोपडे थे. लिए जानना कुतूहल नहीं है, जीवन-मरण का सवाल है। न तो धन | वहां महल हो गए। जहां बीमारियां थीं, वहां स्वास्थ्य आ गया। वृक्ष के लिए, न किसी दुख के कारण, न किसी कुतूहल से, बल्कि | फलों से लद गए। फसलें खड़ी हो गईं। सारा गांव धनधान्य से जीवन के सत्य को जानने की जिसके प्राणों की आंतरिक पुकार है, परिपूर्ण हो गया। प्यास है। जिसके बिना नहीं जी सकेगा। जान लेगा, तो ही जी . यह तो चमत्कार हुआ; पूरे गांव ने देखा। इससे भी बड़ा सकेगा। ऐसे चार भक्त कृष्ण ने कहे।
चमत्कार पादरी ने देखा, कि चर्च में सदा भीड़ होती थी, वह मन में सवाल उठ सकता है कि पहले दो तरह के या पहले तीन | बिलकुल बंद हो गई; कोई चर्च में नहीं आता। पादरी दिनभर बैठा . तरह के लोगों को क्यों भक्त कहा! भक्त तो आखिरी ही होना रहता है बाहर, कोई चर्च में नहीं आता। कभी कोई नमस्कार नहीं चाहिए, चौथा ही।
करता। कभी कोई निमंत्रण नहीं भेजता। प्रार्थना के लिए कोई आता नहीं; तीनों को भी भक्त सिर्फ शब्द के कारण कहा। वे भी भक्ति | | नहीं। चर्च गिरने लगा। ईंटें खिसकने लगीं। पलस्तर टूटने लगा। करते हैं। भक्त नहीं हैं, यह तो कृष्ण जाहिर करते हैं, लेकिन वे भी | | एक साल, दो साल; लोग गांव के भूल गए कि चर्च भी है। भक्ति करते हैं।
दो साल बाद उस बूढ़े फकीर ने एक रात फिर परमात्मा से प्रार्थना महावीर ने भी इसी तरह ध्यान करने वालों के चार वर्ग किए। की कि हे प्रभु, एक प्रार्थना और पूरी कर दे। परमात्मा ने कहा कि उनमें जो आदमी आर्त ध्यान कर रहा है...। जब आप क्रोध में होते | | अब तेरी क्या कमी रह गई! और तूने जो चाहा था, सब कर दिया। हैं, तब आपका ध्यान एकाग्र हो जाता है। उसको भी कहा, वह भी | | उसने कहा, अब एक ही प्रार्थना और है कि मेरे गांव के लोगों को ध्यानी है, आर्तध्यानी। क्योंकि क्रोध में मन एकाग्र हो जाता है। | वैसा ही बना दे, जैसे वे पहले थे। उन्होंने कहा, तू यह क्या कह लोभ में मन एकाग्र हो जाता है। कामवासना में मन एकाग्र हो जाता रहा है! है। तो उसको कहा, वह भी ध्यानी है; कामवासना का ध्यान कर ___ उसने कहा कि मैं तो सोचता था कि वे चर्च में परमात्मा की रहा है। लेकिन अंतिम ध्यान, शुक्ल ध्यान ही असली ध्यान है; जब प्रार्थना के लिए आते हैं, वह मेरा गलत खयाल सिद्ध हुआ। कोई कि बिना प्रयोजन के, बिना कारण के, बिना कुछ पाने की आकांक्षा अर्थ के कारण आता था। कोई दुख के कारण आता था। कोई लोभ के, कोई ध्यान करता है।
के कारण, कोई भय के कारण। अब उनका लोभ भी पूरा हो गया; इसलिए कृष्ण ने चार भक्तों की बात कही।
उनके भय भी दूर हो गए; उनके दुख भी दूर हो गए। तब मैंने यह याद मुझे आता है, एक गांव में बड़ी तकलीफ है। भूख है, न सोचा था कि परमात्मा को वे इतनी सरलता से भूल जाएंगे। बीमारी है, परेशानी है। लोगों के पास दवा नहीं, खाना नहीं, कपड़े | तो तीन तरह के लोग हैं। अर्थार्थी को अर्थ मिल जाए, धन मिल नहीं। गांव के चर्च का जो पादरी है, उसने कभी परमात्मा से कोई जाए, भूल जाएगा। दुखी को, कातर को, आर्त को, दुख दूर हो ऐसी प्रार्थना नहीं की, जिसमें कुछ मांगा हो। वह सत्तर साल का जाए, भूल जाएगा। जिज्ञासु को उसके प्रश्न का उत्तर मिल जाए, बूढ़ा है। गांवभर की तकलीफ; और चर्च में बड़ी भीड़ होती है। समाप्त हो जाएगा। असली भक्त तो चौथा ही है। कुछ भी मिल फटे-चीथड़े पहनकर, भूखे बच्चे और भूखे बूढ़े इकट्ठे होते हैं। | जाए, वह तृप्त नहीं होगा। जब तक कि वह स्वयं परमात्मा ही न हो
और वे रोते हैं। उनके आंसू देखकर एक रात वह रातभर नहीं | जाए, इसके पहले कोई तृप्ति नहीं है। सोया। और उसने परमात्मा से प्रार्थना की, मैंने कभी तुझसे कुछ | लेकिन उन तीन को भक्त केवल शब्द की वजह से कहा। और मांगा नहीं। एक बात मांगता हूं, वह भी अपने लिए नहीं; मेरे गांव | | उनकी गिनती करा देनी उचित है, क्योंकि वही तीन तरह के भक्त के लोगों की हालत सुधार दे।
| हैं जमीन पर; चौथी तरह का तो कभी-कभी, शायद ही कभी,
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