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< गीता दर्शन भाग-3 -
दिखाई पड़ता है। झूठा फासला है। हमारा बनाया हुआ फासला है। जाऊंगा। और सागर में गिरते ही गंदगी कहां खो जाती, नदी कहां कृष्ण कहते हैं, वह वासुदेव ही हो जाता है।
खो जाती, कुछ पता नहीं चलता। विराट ऊर्जा में जब भी हमारे क्षुद्र बड़े हिम्मत के लोग थे। आदमी को भगवान बनाने की इतनी | मन की बीमारियां गिरती हैं, तो ऐसे ही खो जाती हैं, जैसे सागर में सहज बात! आदमी प्रभु को भजे और प्रभु ही हो जाए! जो जानते | नदियां खो जाती हैं। थे, वही कह सकते हैं ऐसा। हमारा मन मानने को राजी नहीं होता। बड़ी शक्ति छोटी शक्ति को पवित्र करने की सामर्थ्य रखती है। नहीं होता इसीलिए कि हमने सिवाय अपनी क्षुद्रता के और कुछ भी लेकिन हमें बड़े का कोई पता ही नहीं है। हम तो छोटे में ही जीते नहीं देखा है। हमारे भीतर वह जो विराट का बीज छिपा है, वह हैं। हम बड़ी छोटी पूंजी से काम चलाते हैं। सच बात यह है कि छिपा ही पड़ा है। तो जब भी हम सोचते हैं कि आदमी, और जितनी जीवन ऊर्जा से शरीर चलता है, हम उतने को ही अपनी भगवान हो जाएगा. तो हमें भरोसा नहीं आता। क्योंकि हम अपने आत्मा समझते हैं। और शरीर को चलाने के लिए तो जीवन ऊजा भीतर जिस आदमी को जानते हैं, वह शैतान तो हो सकता है, का अत्यल्प, छोटा-सा अंश काफी है। शरीर को चलाने के लिए भगवान नहीं हो सकता।
तो सुई काफी है, तलवार की कोई जरूरत नहीं पड़ती। और शरीर हम अपने को अच्छी तरह जानते हैं। हमें पक्की तरह पता है कि जितनी जीवन ऊर्जा से चलता है, उसके साथ ही हम तादात्म्य कर अगर कोई कहे कि आदमी शैतान है, तो हमारी समझ में आता है। लेते हैं कि यह मेरी आत्मा है। फिर शैतान पैदा हो जाता है। लेकिन कोई कहे, आदमी भगवान है, तो समझ में बिलकुल नहीं क्षुद्र के साथ संबंध शैतान को पैदा कर देता है; विराट के साथ आता। क्योंकि हमारे पास जो नापने का आयोजन है, वह अपने से | संबंध भगवान को पैदा कर देता है। संबंध पर निर्भर करता है कि ही तो नापने का आयोजन है। हम अपने से ही तो नाप सकते हैं। आप कौन हैं। अगर आपने क्षुद्र से संबंध बांधा, तो शैतान। अगर
और हम जब अपनी तरफ देखते हैं, तो सिवाय शैतान के कुछ भी | | विराट से संबंध बांधा, तो भगवान। आप वही हो जाते हैं, जिससे नहीं पाते।
आप संबंध बांधते हैं; वही हो जाते हैं, जिसके साथ जुड़ जाते हैं। लेकिन मैं आपसे कहता हूं और सारे धर्मों का यही कहना कृष्ण कहते हैं, जो मुझे जान लेता है, वह वासुदेव ही हो जाता है कि वह जो आपको अपने भीतर शैतानियत दिखाई पड़ती है, है। वह मैं ही बन जाता है। जो ब्रह्म को जान लेता है, वह ब्रह्म ही वह आप नहीं हैं। वह शैतानियत केवल इसीलिए है कि जो आप हो जाता है। हैं, उसका आपको पता नहीं है। जिस क्षण आपको अपने असली | यह जानना भी बहुत अदभुत है, जिसमें जानने से आदमी एक होने का पता चलेगा, उसी दिन आप पाएंगे कि शैतानियत कहां खो हो जाता है उससे, जो ज्ञेय है। गई! कभी थी भी या नहीं, या कि मैंने कोई सपना देखा था! ___ हमने बहुत चीजें जानी हैं। आपने गणित जाना है, लेकिन आप
बुद्ध को जब ज्ञान हुआ है, और कोई उनसे पूछता है कि अब | गणित नहीं हो गए।आपने भूगोल पढ़ी है, लेकिन आप भूगोल नहीं आप क्या कहते हैं कि इतने दिनों तक आप अज्ञान में कैसे भटके? | हो गए। आप हिमालय को देखकर जान आएंगे, लेकिन हिमालय तो बुद्ध कहते हैं, आज तय करना मुझे मुश्किल है कि वह जो अनंत नहीं हो जाएंगे। अगर कोई आकर कहे कि मैंने हिमालय को देखा जन्मों का भटकाव था, वह असली में घटा या मैंने कोई लंबा सपना | और मैं हिमालय हो गया, तो आप उसे पागलखाने में बंद कर देंगे। देखा! कोई लंबा सपना! क्योंकि आज मैं तय ही नहीं कर पाता कि हम जिंदगी में जो भी जानते हैं, उसमें जानना दूर रहता है; हम वह घट सकता है। वह असलियत में घट कैसे सकता है? क्योंकि कभी जानने वाली चीज के साथ एक नहीं हो पाते। इसलिए हमें आज मैंने जिसे अपने भीतर जाना है. उसे देखकर अब मैं मान नहीं कृष्ण के इस वचन को समझने में बड़ी कठिनाई पड़ेगी। क्योंकि सकता कि वह कभी भी घट सकता है।
| हमारे अनभव में यह कहीं भी नहीं आता कि जो भी हम जानें. उसके जैसे ही हम उस भीतर के विराट को जानते हैं, वैसे ही सब | साथ एक हो जाएं। हमारा सब जानना, द्वैत का जानना है। हम दूर क्षुद्रताएं उसमें खोकर ऐसे ही शुद्ध हो जाती हैं, जैसे कितनी ही गंदी ही खड़े रहते हैं। नदी सागर में आकर गिर जाए और शुद्ध हो जाए। सागर । इसलिए अगर कृष्ण से पूछे, तो कृष्ण कहेंगे, जिसे तुम जानना चीख-पुकार नहीं करता कि गंदी नदी मुझमें मत डालो, गंदा हो कह रहे हो, वह जानना नहीं है, केवल परिचय है। वह नोइंग नहीं
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