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________________ < गीता दर्शन भाग-3 मुखौटा नहीं होता चेहरे पर। कभी मौके-बेमौके जिसके हम साथ | हैं, क्राइस्ट भी, मोहम्मद भी, सब कहते हैं कि उसे पा लेना परम रहते हैं, वह झांक ही लेता है कि पीछे कौन आदमी है! लेकिन फिर | आनंद है। आपके मन में लोभ जगा। भी कोशिश चलती है। लेकिन आपको पता नहीं कि वे सब कहते हैं कि लोभ जिसके बाप बेटे के सामने नहीं खुलता। पत्नी पति के सामने नहीं | मन में है, वह उसे न पा सकेगा। अब बड़ी कठिनाई हो गई। और खुलती। मित्र मित्र के सामने नहीं खुलता। सारी पृथ्वी एक बड़ा आप चले मंदिर की तरफ, मस्जिद की तरफ। आपने सोचा कि डिसेप्शन, एक बड़ा जाल है। और इसीलिए हम इतने परेशान, | चलो आनंद मिलता है, तो हम इसको भी पा लें। इतने चिंतित और बोझिल हैं, क्योंकि सारी दुनिया हमारे खिलाफ है| ___महावीर एक गांव में ठहरे हैं। उस गांव का सम्राटः श्रेणिक और हम अकेले लड रहे हैं। एक-एक आदमी इतनी बड़ी दनिया महावीर से मिलने आया। और उसने महावीर के चरणों पर सिर के खिलाफ लड़ रहा है। इतनी बड़ी दुनिया को धोखा देने में लगा | | रखा और उसने कहा कि आपकी कृपा से...। हुआ है, तो लड़ाई भारी है। झूठ बोल रहा था वह यह। महावीर के पास ऐसा झूठ नहीं परमात्मा के पास तो वही पहुंच सकेगा, जो अपने सब धोखे, बोलना चाहिए। क्योंकि वही मैं कह रहा हूं, एकीभाव नहीं है। वह अपने मुखौटे, अपनी शक्लें मंदिर के बाहर छोड़ जाए, भीतर | बोला, आपकी कृपा से! हालांकि उसकी आंखें, उसका सिर कह जाकर नग्न खड़ा हो जाए और कह दे कि मैं ऐसा हूं। रहा था कि मेरे सामर्थ्य से। लेकिन वह कह रहा था, आपकी कृपा एकीभाव बहुत वैज्ञानिक बात है। जब किसी से मैं कुछ भी नहीं | से। फार्मल। महावीर के पास फार्मेलिटी लेकर नहीं जाना चाहिए; छिपाता, तो एकीभाव उत्पन्न होता है। जब तक छिपाता हूं, तब तक औपचारिकता। दूजापन, दुई, द्वैत, दूसरापन मौजूद रहता है। एक। महावीर ने कहा, क्षमा करो। तुम क्या कहने जा रहे हो! मैंने तो दूसरा, कृष्ण कहते हैं कि ऐसा एकीभाव, अनन्य भाव और तत्व | तुम पर कभी कोई कृपा नहीं की! उसने कहा कि नहीं-नहीं, आपकी को समझकर, जो ज्ञानी मेरे पास आता है, मुझे प्रेम करता है, उसे | बिना कृपा के क्या हो सकता है! यह सब राज्य-वैभव सब आपकी मैं भी प्रेम करता हूं। तत्व को समझकर! क्योंकि बहुत बार ऐसा हो | कृपा से मिला है। महावीर ने कहा, मुझे मत घसीटो। क्योंकि तुमने जाता है कि कुछ लोग बिना तत्व को समझे...। | न मालूम कितने लोगों की हत्याएं की हैं, मेरा कोई इससे लेना-देना बिना तत्व को समझे! तत्व का अर्थ है, बिना जीवन के रहस्य नहीं है। तुम न मालूम कितने लोगों का लहू पी गए हो। इससे मेरा को समझे, बिना किसी गहरी अंडरस्टैंडिंग, बिना किसी समझ के, क्या संबंध है! धर्म की यात्रा पर निकल जाते हैं, तब बड़ी कठिनाई होती है। ऐसे नहीं, वह बोला, बिना आपकी कृपा के क्या हो सकता था। सब अप्रौढ़ चित्त, ऐसे जुवेनाइल, बचकाने चित्त, जिनमें अभी कोई | आपकी कृपा से हुआ है। लेकिन अभी-अभी मुझे पता चला कि यह प्रौढ़ता न थी और जो धर्म की यात्रा पर निकल जाते हैं, वे धर्म को | सब बेकार है, जब तक ध्यान का आनंद न मिल जाए। तो मैं आपसे तो उपलब्ध होते नहीं, सिर्फ धर्म को ही अप्रौढ़ बनाने में सफल हो | | पूछने आया हूं कि कितना खर्च पड़ेगा? मैं खरीद लूं। ध्यान का पाते हैं। आनंद खरीद लेंगे। ऐसी क्या चीज है, जो मैं नहीं खरीद सकता हूं? ऐसा हुआ है चारों तरफ। सारी दुनिया में ऐसा हुआ है। कई बार महावीर को कैसी मुसीबत हुई होगी, हम समझ सकते हैं। ऐसी तो आप जीवन के सत्य को समझकर धर्म की तरफ नहीं जाते; | मुसीबत महावीर जैसे लोगों को रोज होती है। वह बेचारा कुछ बल्कि धार्मिक बातें आपको प्रलोभनपूर्ण लगती हैं, इसलिए चले | | गलत नहीं कह रहा है। वही वेटरनरी डाक्टर की भाषा है। वह सब जाते हैं। इसका फर्क आप समझ लें। तत्व को समझकर जाने वाले | | चीजें खरीदता रहा है। जो भी चीज चाहिए, खरीद लेता है। सोचा और प्रलोभन से जाने वाले का क्या फर्क है? कि ध्यान, सामायिक। महावीर का ध्यान के लिए शब्द है, मैंने आपसे बात कही कि परमात्मा को पाना परम आनंद है। सामायिक। सामायिक कैसे मिल जाए? मैंने बड़ी तारीफ सुनी है आपके मन में ग्रीड पकड़ी, लोभ पकड़ा। आपको लगा कि अरे, | कि बड़ा आनंद है। इसको भी खरीद लेंगे! परमात्मा को पाना परम आनंद है, तो हम भी पा लें! आपने सोचा महावीर ने कहा, ऐसा करो। बड़ा कठिन है मामला। सौदा बहुत कि ठीक है। बुद्ध भी कहते हैं, महावीर भी कहते हैं, कृष्ण भी कहते मुश्किल है। लेकिन फिर अब तुम कहते हो, खरीद लोगे, तो तुम
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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