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________________ < प्रकृति और परमात्मा - चले जाते हैं। से भी स्मरण मिलता हो! कृष्ण कह रहे हैं, मुझको परायण को उपलब्ध हो जा, मेरे प्रति । लेकिन हमारी तो बड़ी अजीब हालतें हैं। यहां कुछ संन्यासी मेरे समर्पित हो जा। इस दौड़ से बच। ये तीन प्रकृति के गुण और यह नाम के साथ भगवान लगाकर चिल्ला देते हैं। मैं चुप रह जाता हूं प्रकृति का पूरा का पूरा सम्मोहन का जाल, यह मेरी योगमाया है। यह सोचकर कि आज नहीं कल वे मेरा नाम भी छोड़ देंगे और सिर्फ यह मेरे हिप्नोसिस, यह मेरे सम्मोहन की शक्ति है। और इस सब में भगवान का नाम ही उच्चारित करेंगे। क्योंकि उसमें भगवान शब्द सारा जगत चल रहा है और दौड़ा चला जा रहा है। शाबास कल्लू! झूठ नहीं है, उसमें मेरा नाम ही झूठ है। और दौड़े चले जा रहे हैं। रुक। और तू मेरे स्मरण में लग। अगर | लेकिन मेरे पास चिट्ठियां आती हैं लोगों की कि आप लोगों को तुझे सम्मोहन के बाहर आना है, तो परमात्मा के स्मरण में लगा । | मना क्यों नहीं करते कि भगवान लगाना बंद करें; सिर्फ रजनीश परमात्मा का सम्मोहन डी-हिप्नोटाइजिंग है; वह सम्मोहन को | कहें; आचार्य रजनीश कहें; भगवान लगाना बंद करें। लोगों की तोड़ता है, वह एंटीडोट है। देखें, उदाहरण के लिए मैं आपको कहूं | चिट्ठियां आती हैं! वे समझते हैं बहुत होशियार लोग हैं, जो मुझे कि वह कैसे एंटीडोट है। चिट्ठियां भेजते हैं। रास्ते पर एक खूबसूरत स्त्री आपको दिखाई पड़ी। आपने अपने | एक आदमी ने चिट्ठी नहीं भेजी कि वह कहता कि रजनीश कहना मन में कहा, शाबाश कल्लू! और चले। चल पड़े आप। उस वक्त | | बंद कर दें, क्योंकि दोनों बात एक साथ नहीं हो सकतीं। जब तक थोड़ा स्मरण करें। स्मरण करें कि वह जो स्त्री है सामने, वहां भी | | रजनीश हूं, तब तक भगवान होना मुश्किल। जब भगवान हो कष्ण हैं। और स्मरण करें अपने भीतर कि वहां जो. जिसको आप जाऊं तो रजनीश होना मश्किल। ये दोनों कंटाडिक्टरी हैं। कल्लू कह रहे हैं, वहां भी कृष्ण हैं। और फिर देखें कि बीच में लेकिन वे चिट्ठियां, होशियार लोग जो हैं-होशियार का वह जो सम्मोहन पैदा हुआ था वासना का, वह एकदम गिर जाता मतलब कि जिनके पास कोई यूनिवर्सिटी का कागज का टुकड़ा है या नहीं! वगैरह है-वे फौरन चिट्ठी भारी...। मुझे कई चिट्ठियां, दस-पांच फौरन गिर जाएगा। अचानक आप पाएंगे कि कोई अंधेरा बीच चिट्ठियां आई कि फौरन बंद करवाइए! यह क्या हो रहा है? से उठ गया; कोई पर्दा बीच से हट गया। कोई चीज बीच से टूट | अक्ल के तो हम जैसे दुश्मन हैं। लट्ठ लेकर अक्ल के पीछे पड़े गई, सरक गई, तत्काल। हुए हैं। चलो, यही बहाना अच्छा; भगवान का ही तो नाम ले लेते एक आदमी ने आपको गाली दी है और आपके भीतर क्रोध का | | हैं। खूटी मेरी भी सही, तो क्या हर्जा! खूटी तुड़वा लेंगे। खूटी कोई धुआं उठा। वह सम्मोहन है प्रकृति का। बटन दबा दी उसने | | बड़ी चीज नहीं है। भगवान जैसा भजन रखोगे, खूटी कितनी देर आपकी। बस, अब आपका पंखा भीतर चलने लगा। उस वक्त | बचेगी! खूटी गिर ही जाएगी। लेकिन नहीं; जिनको यह तकलीफ जरा स्मरण करें, उस ओर भी कृष्ण हैं, इस ओर भी कृष्ण हैं। और होती है, उनकी तकलीफ का कारण है। स्मरण जैसी चीज का उन्हें तब आप अचानक पाएंगे कि भीतर क्रोध जो पंख फैलाता था उड़ने कोई पता नहीं है। के लिए, उसने पंख सिकोड़ लिए। एक और मजे की बात है कि मैं सदा आपके भीतर बैठे परमात्मा डी-हिप्नोटाइजिंग है स्मरण। परमात्मा का स्मरण सम्मोहन- को प्रणाम करता रहा। तब किसी ने मुझे चिट्ठी लिखकर नहीं भेजी तोड़क है। और अगर परमात्मा को भूले और अपना ही स्मरण रखा | कि हमको आप परमात्मा क्यों कहते हैं? किसी आदमी ने चिट्ठी कि मैं ही सब कुछ हूं, तो यह मैं जो है, यह बहुत मादक है। और लिखकर नहीं भेजी मुझे कि आप हमको परमात्मा क्यों कहते हैं? यह सम्मोहन को गहन करता है, और मूर्छित करता है, बेहोश | मैंने बहुत दिन कहकर देख लिया। मैंने सोचा कि वह कुछ सुनाई करता है। फिर हम दौड़े चले जाते हैं। यह तीन का खेल चलता नहीं पड़ता आपको। मैंने बंद कर दिया। रहता है चारों तरफ। यह प्रकृति की तीन की लीला चलती रहती है; | अब यह दूसरे छोर से इन लोगों ने शुरू कर दिया। यह छोर ट्राएंगल; हम दौड़ते रहते हैं उसमें। | दूसरा है; बात वही है। लेकिन अब उनको बड़ी बेचैनी हो रही है। इससे कब ऊपर उठेंगे? इससे उठने का द्वार कहां है? इससे | | उन्हीं सज्जनों को, जिनको कि मैं निरंतर कहता रहा कि आपके उठने का द्वार है, प्रभु-स्मरण। कहीं से भी स्मरण मिलता हो! कहीं भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं। उन्होंने बड़े मजे से 391
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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