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- गीता दर्शन भाग-
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स्वीकार किया था। उनको अब बड़ी अड़चन हो रही है कि ये भगवान का नाम क्यों ले रहे हैं? - स्मरण का हमें कोई पता नहीं है। अच्छा ही है, इस बहाने आपके
कान में पड़ गया। __कल तो एक मित्र ने आकर कहा कि अगर अब दोबारा इन्होंने लिया, तो मैं सुनने ही नहीं आऊंगा। बहुत मजेदार है। वे मुझे सुनने आते हैं। कहते हैं, सुनना मुझे प्रीतिकर है। आपकी बात ठीक लगती है। लेकिन यह भर नहीं होना चाहिए, यह भगवान का नाम।
भगवान से ऐसी क्या दुश्मनी है? मुझसे तो दुश्मनी नहीं मालूम पड़ती उनकी। क्योंकि कहते हैं, आपको सुनने में अच्छा लगता है। हम रोज आना चाहते हैं। भगवान से दुश्मनी मालम पड़ती है।
मत आएं। बिलकल न आएं। और पिछली दफे भी जो आए हों. उसको बिलकुल भूल जाएं। क्योंकि वह बेकार है। क्योंकि मैं जो बोल रहा हूं, वह सिर्फ इसलिए बोल रहा हूं कि मुझमें ही नहीं सब जगह, जहां भी कभी कुछ दिखाई पड़े, भगवान ही दिखाई पड़े; उसके लिए बोल रहा हूं। और मुझे सुनने का कोई प्रयोजन नहीं है। आप बिलकुल मत आएं। क्या जरूरत है? यहां कोई शाबाश कल्लू, आपको कोई दौड़ तो लगवानी नहीं है मुझे।
आज इतना ही। लेकिन उठना मत। जो उठ जाएगा मैं समझूगा, शाबाश कल्लू! आप बैठे रहेंगे अपनी जगह। थोड़ा हम भगवान का स्मरण करते हैं। उसमें आनंदित हों।
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