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________________ आध्यात्मिक बल > नहीं मानता। दुख को दुख नहीं मानता; सम्मान को सम्मान नहीं | ठीक आंक रहा है। मानता; अपमान को अपमान नहीं मानता; जीवन को जीवन नहीं असल में हमारे भीतर हमारी कोई कीमत ही क्या है? असल में मानता; मृत्यु को मृत्यु नहीं मानता-तब उसके भीतर एक नए हम ही कहां हैं? बीइंग कहां है? हमारे भीतर आत्मा जैसी चीज जीवन का संचार शुरू होता है। उसके भीतर तप नाम का तत्व पैदा कहां है? . होता है। उसके भीतर क्रिस्टलाइजेशन-गुरजिएफ ने जो शब्द गुरजिएफ जब कहता है क्रिस्टलाइज्ड, तो उसका मतलब है कि प्रयोग किया है, क्रिस्टलाइजेशन-कि वह क्रिस्टल बन जाता है भीतर कुछ पैदा हुआ। और वह पैदा तभी होता है, जब सुख और उसके भीतर एक। दुख की संवेदनाएं छूती नहीं। वह पैदा तभी होता है, जब तप का ठीक अर्थ वही है। तप का अर्थ है, वह व्यक्ति पहली अनुकूल-प्रतिकूल बराबर हो जाता है। वह पैदा तभी होता है, जब दफे भीतर आत्मवान बनता है। जब तक दुख आपको हिला देता द्वंद्वों के बीच में थिरता और समता आती है। समत्व ही तप है। है, आप दुख से कमजोर हैं। सुख हिला देता है, सुख से कमजोर कठिन है। तपश्चर्या बहुत आसान है; तप बहुत कठिन है। हैं। कोई एक फूल की माला गले में डाल देता है और आप कंप कृष्ण कहते हैं, तपस्वियों में तप। जाते हैं, तो आप फूल की माला से कम कीमती हैं। आपकी कीमत वे अनेक-अनेक मार्गों से खबर दे रहे हैं कि मुझे तू कहीं से भी बहुत ज्यादा नहीं है। | पहचान, और कहीं से भी खोज। बहुत हैं द्वार मेरे। बहुत हैं मार्ग। - मैंने सुना है कि एक करोड़पति एक तालाब में गिर गया था।., लेकिन अगर तू कहीं से भी दृश्य को छोड़कर अदृश्य में उतर अनेक लोग खड़े होकर देख रहे थे। एक अजनबी आदमी भी भीड़ | सके-तपश्चर्या दृश्य है, तप अदृश्य है-अगर तू कहीं से भी में था, वह चिल्लाया कि तुम खड़े होकर क्यों देख रहे हो? आदमी | | दृश्य को छोड़कर अदृश्य में उतर सके; अगर कहीं से भी रूप को मर रहा है। उसे कुछ पता नहीं था कि वह आदमी कौन है। वह छोड़कर अरूप में; आकार को छोड़कर निराकार में; व्यर्थ को बेचारा कूद पड़ा। उस करोड़पति को, बड़ी मुश्किल से, अपनी जान | | छोड़कर सारभूत में अगर तू जा सके कहीं से भी...। को जोखिम में डालकर, बचाकर बाहर लाया। जब वह होश में | - तो सब तरफ से वे बात कर रहे हैं। वे कह रहे हैं, कहीं से भी आया धनपति, तो उसने कहा, बहत-बहत धन्यवाद। खीसे में| तेरी समझ में आ जाए। उसने हाथ डालकर कुछ खोजा, फिर एक नया पैसा निकालकर उस फिर देअर आर मोमेंट्स, कुछ क्षण होते हैं जीवन में, जब समझ आदमी को भेंट किया। पकड़ में आती है। सदगुरु जो है, उसे निरंतर खयाल रखना पड़ता सारी भीड़ चिल्लाने लगी कि इसीलिए तो हममें से कोई कूदकर है कि कभी-कभी ऐसा क्षण आता है। नहीं बचा रहा था। आदमी देखते हैं। एक नया पैसा! उस आदमी क्योंकि हमारा चित्त फ्लक्चुएशन में है। हमारा चित्त कभी एक ने जिंदगी, जान लगा दी; जोखम में डाला अपने को; और यह एक जगह नहीं है। कभी नीचे खाई छूता है, कभी ऊपर शिखर छू लेता पैसा उसको इनाम दे रहा है! है। हमारा चित्त पूरे वक्त नीचे-ऊंचे होते जा रहा है। हमारा चित्त एक और आदमी, एक फकीर इस बीच उस भीड़ के पास आकर कभी एक तल में नहीं है। सुबह हम नर्क में होते हैं; सांझ हम स्वर्ग खड़ा हो गया था। उसने कहा, नाराज मत होओ। नो वन नोज दि | में हो जाते हैं। घड़ीभर पहले हम रोते हैं; घड़ीभर बाद हंसी के फूल वेल्यू आफ हिज लाइफ मोर दैन हिमसेल्फ, उसकी जिंदगी की | खिल जाते हैं। हमारा चित्त पूरे वक्त नीचे-ऊंचे हो रहा है। कीमत उसके सिवाय और किसको ज्यादा मालूम हो सकती है। वह ___ कृष्ण जैसे व्यक्ति को स्मरण रखना पड़ता है। बहुत-बहुत बार बिलकुल ठीक दे रहा है। एक नया पैसा! वह अपनी जिंदगी की वही-वही बात कहनी पड़ती है, अलग अलग रूपों में। पता नहीं कीमत ही चुका रहा है। और किसी की जिंदगी का कोई सवाल नहीं | | अर्जुन का चित्त कब पीक पर हो, कब शिखर पर हो! और जब वह है। अगर मर जाता, तो एक नए पैसे का नुकसान हो रहा था दुनिया शिखर पर हो, तभी बात छुएगी। जब वह नीचे घाटी में होगा, तब में। और तो कोई खास नुकसान नहीं था। कोई बात छुएगी नहीं, बात ऊपर से निकल जाएगी। इसलिए बहुत उस फकीर ने कहा, नाराज मत होओ। उसके सिवाय कोई भी पुनरुक्ति भी करनी पड़ती है। नहीं जानता कि उसकी जिंदगी की असली कीमत कितनी है। वह अनेक लोग गीता के इस हिस्से को पढ़ते हैं, तो वे सोचते हैं कि 375
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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