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- गीता दर्शन भाग-3 -
प्रश्नः भगवान श्री, एक छोटा-सा प्रश्न है। कल उसने कहा, लेकिन आप कर क्या रहे हैं? आपने दिव्य व्यक्तित्व में अर्थात योगी में मैं तेजस हूं, । आधे बाल उसने साफ कर दिए और आधी खोपड़ी पर लिख इसकी चर्चा की। पिछले श्लोक में कहे गए, मैं | दिया राबर्ट रिप्ले! तेरा नाम, तू जा। पूरे गांव में घूम आ। पर उसने तपस्वियों में तप हूं, इसका भी अर्थ स्पष्ट करने की कहा, इसमें बड़ा डर लगता है। उसने कहा, डर मत। अगर तू इतना कृपा करें।
भी नहीं कर सकता, तो फिर अब मैं क्या करूं! तुझे मैं मिनिस्टर का भतीजा नहीं बना सकता। किसी धनपति से अचानक तेरा कोई
रिश्ता जड़वा नहीं सकता। यूनिवर्सिटी में दाखिला मैं करवा नहीं - तपस्वियों में तप हूं। तपश्चर्या नहीं। शब्द तो दोनों एक | सकता। पर तू मेरी मान। 01 से हैं। लेकिन तपश्चर्या का जोर होता है कृत्य पर, एक्ट । रिप्ले ने लिखा है कि पहले तो बड़ी हिम्मत जुटाई। फिर किसी
पर। और तप का जोर होता है आंतरिक उपलब्धि पर। तरह निकला। लेकिन सच, दो दिन में सब अखबारों में मेरे फोटो एक तपस्वी है, तपश्चर्या कर रहा है। जो वह तपश्चर्या करता छप गए। और जहां से निकल जाता, वहां लोग काम-धंधा बंद है, वह तो बाहरी कृत्य है, वह तो बाह्य कृत्य है कि उपवास करके बाहर आ जाते। और दो दिन में पूरे गांव में लोग मुझे जान करता है, कि प्राणायाम करता है, कि आसन करता है, कि धूप में | गए। न केवल गांव में, बल्कि गांव के बाहर खबरें पहुंचने लगीं। खड़ा होता है, कि शीत में खड़ा होता है—वह तो बाहरी कृत्य है, राजधानी तक खबरें पहुंचने लगीं। और कुछ मैंने किया नहीं था, एक्ट है। और यह भी हो सकता है कि वह यह सब करता रहे, और सिर्फ बाल काट लिए थे। भीतर कोई भी तप फलित न हो। क्योंकि यह कोई अज्ञानी भी कर फिर रिप्ले ने कहा, फिर तो ट्रिक मेरे हाथ लग गई। फिर तो मैं सकता है, कोई अहंकारी भी कर सकता है, कोई एक्जीबिशनिस्ट, जिंदगीभर ऐसे ही काम करता रहा। जिसको प्रदर्शन का शौक है, वह भी कर सकता है।
उसने पूरे अमेरिका की यात्रा उलटे चलकर की। सारी दुनिया में और अगर आप अपने तपश्चर्या करने वाले लोगों में खोजबीन खबर हुई और कहा गया कि इतिहास का पहला मनुष्य है, जिसने करने जाएं, तो सौ में से नब्बे एक्जीबिशनिस्ट मिलेंगे, जो अपने अमेरिका की यात्रा उलटे चलकर की। एक आईना बांध लिया प्रदर्शन को उत्सुक हैं। और जब भी प्रदर्शन करना हो, तो इस तरह सामने और चल पड़ा! जुलूस चलता था साथ में। के काम बहुत अच्छे होते हैं।
। रिप्ले ने लिखा है, लेकिन मेरी जिंदगी बेकार में गई; भीड़ को राबर्ट रिप्ले ने एक घटना लिखी है। कि रिप्ले युवक था, और इकट्ठा करने में गई। एक्जीबिशनिस्ट माइंड! प्रदर्शनकारी मन! प्रसिद्ध होना चाहता था। लेकिन प्रसिद्ध होने के लिए उसके पास तो तपश्चर्या बहुत कुछ तो प्रदर्शन होती है। अगर आप किसी कोई सीढ़ी न थी। न तो वह किसी मिनिस्टर का रिश्तेदार था; न तपस्वी की बहुत पूजा वगैरह करते हों, तो जरा पूजा वगैरह पंद्रह किसी धनी का भाई-भतीजा था; न किसी यूनिवर्सिटी में प्रवेश के दिन के लिए हालीडे पर छोड़ दें, बंद कर दें। पंद्रह दिन में तपस्वी लिए पैसे थे उसके पास। उसके पास कुछ भी नहीं था; लेकिन भाग जाएगा। क्योंकि जब देखेगा, कोई पूछता नहीं, कोई फिक्र नहीं प्रसिद्ध होना था।
करता, कोई पैर नहीं दबाता, कोई फूल नहीं चढ़ाता, कोई कुछ नहीं तो उसने गांव के एक बहुत कुशल विज्ञापनदाता से जाकर पूछा करता। अब क्या मतलब है! भागो इस गांव से; कहीं और जाओ। कि मुझे प्रसिद्ध होना है, मैं क्या करूं? कोई ऐसी सरल तरकीब तपश्चर्या तो अहंकार की तृप्ति भी हो सकती है। तप क्या है? बताओ, क्योंकि मेरे पास कोई सहारा नहीं है, कोई सीढ़ी नहीं है, तप तो सारभूत है। कृत्य नहीं है, आत्मा है। तप का अर्थ है, जब सीधा प्रसिद्ध हो जाऊं। उसने कहा, इसमें कौन-सी बड़ी बात है! कोई व्यक्ति दुख को दुख नहीं मानता। और ध्यान रखना, दुख को तू इधर आ, मेरे पास आ। वह अंदर गया और एक उस्तरा उठाकर दुख न मानना बहुत बड़ा तप नहीं है। दूसरी बात आपसे कहता हूं, लाया। और उसने रिप्ले की आधी खोपड़ी के बाल छांट दिए। आधे जब कोई व्यक्ति सुख को सुख नहीं मानता है। बाल अलग कर दिए। रिप्ले ने कहा, यह आप क्या कर रहे हैं? दुख को दुख न मानना बहुत बड़ी बात नहीं है, क्योंकि हम उसने कहा, तू घबड़ा मत। दो दिन में तुझे प्रसिद्ध किए देता हूं। सभी चाहते हैं कि दुख दुख न हो। लेकिन सुख को भी जो सुख
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