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________________ आध्यात्मिक बल की परीक्षा दो विश्वविद्यालय के युवकों ने की। उन्होंने सुना है कि उस आदमी के पास जाओ, तो वह कुछ भी बता देता है। आपका नाम भी बता देता है। जैसे मुट्ठी में बंद चीज को बूढ़े ने जानना चाहा था, खबर थी कि वह बूढ़ा भी बता देता है; वह बड़ा बुद्धिमान है। तो वे दोनों युवक एक कबूतर को अपने कोट के भीतर छिपाकर आए हैं । और उस बूढ़े के सामने आकर कहा, क्या आप सकते हैं कि हमारे कोट के भीतर क्या है? उसने कहा, मैं बता सकता हूं। वे तैयारी करके आए थे। हाथ भीतर रखा था। उन्होंने पूछा, क्या आप बता सकते हैं कि वह जिंदा है या मुर्दा ? उन्होंने सोचा था कि अगर वह कहे जिंदा, तो अंदर ही गर्दन मरोड़कर बाहर निकालना है। अगर वह कहे मुर्दा, तो जिंदा बाहर निकाल देना है। गर्दन पर हाथ था मजबूत । बूढ़े ने एक क्षण आंख बंद की और कहा, इट डिपेंड्स । उसने कहा कि यह कई बातों पर निर्भर करेगा कि वह जिंदा है कि मुर्दा । उन्होंने कहा, क्या मतलब? उस बूढ़े ने कहा कि अगर मैं कहूं, वह जिंदा है, तो गर्दन दबाई जा सकती है। अगर मैं कहूं, वह मुर्दा है, तो उसे ऐसे ही बाहर निकाला जा सकता है। लेकिन तुम्हारी मैं फिक्र छोड़ता हूं; कबूतर की फिक्र करता हूं। मैं कहता हूं, वह मुर्दा है। बाहर निकालो। क्योंकि कबूतर न मर जाए नाहक । बूढ़े ने कहा कि मेरी तुम फिक्र छोड़ो। कबूतर की फिक्र करता हूं। मैं कहता हूं, वह मुर्दा है। बाहर निकालो। यह विजडम है। यह बहुत और बात है। यह बुद्धि और बात है। यह केवल जानकारी नहीं है; यह जीवन के रहस्य का बोध है। यह केवल संग्रह नहीं है ऊपर से; यह भीतर से आया हुआ आविर्भाव है। यह अंतःजागरण है, अंतःस्फूर्ति है। यह कुछ ऐसा नहीं है कि कल जो मैंने जाना था, उस पर निर्भर है। बल्कि आज भी मेरी चेतना जाग रही है और देख रही है; और जो कहेगी, वह मैं जानूंगा। बुद्धिमान, तथाकथित बुद्धिमान, अतीत के ज्ञान पर निर्भर होते हैं – दूसरों के, खुद के । वस्तुतः बुद्धि सदा सजग वर्तमान में जीती है— अभी, जागरूक, जैसे दर्पण। जो सामने आ जाता है, दिखाई पड़ जाता है। कृष्ण कहते हैं, बुद्धिमानों की बुद्धि हूं मैं । बुद्धिमत्ता नहीं, बुद्धिमानी नहीं, नालेज नहीं, ज्ञान नहीं - बुद्धि, इंटेलिजेंस। इंटलेक्ट नहीं, इंटेलिजेंस; सिर्फ बुद्धि । हम जो-जो जानकारियां भर लेते हैं...। फर्क समझ लें, थोड़ा बारीक है। एक कमरा है आपके पास । उसमें आप फर्नीचर भर लेते हैं। कभी आपने खयाल किया कि जितना फर्नीचर भरते जाते हैं, कमरा उतना छोटा होता जाता है ! क्योंकि कमरे का मतलब ही जगह है। अंग्रेजी का शब्द अच्छा है, रूम। उसका मतलब होता है, जगह, स्थान । तो जितना आप फर्नीचर भरते जाते हैं, कमरा कम होता | चला जाता है। इसलिए बड़े आदमियों के कमरे दिखाई ही बड़े पड़ते हैं, होते गरीबों से भी छोटे हैं। चीजें तो बढ़ती जाती हैं। एक बहुत अमीर के घर में ठहरा हुआ था। तो उन्होंने कमरे में इतनी चीजें भर दी हैं कि वे उसमें कैसे अंदर आते-जाते | हैं, मुझे कुछ पता नहीं। मुझे उसमें प्रवेश कराने लगे, मैंने कहा कि | आप मुझे बाहर ही रहने दो। इतनी चीजें हैं! यह रूम तो है ही नहीं । यह तो कबाड़खाना है । जो भी आता है, खरीदकर ले आते हैं और रखते चले जाते हैं! पैसा पास है। पैसे के साथ बुद्धि जरूरी रूप से आती हो, ऐसा नहीं है। तो जितने माडल हो सकते हैं फर्नीचर के, सब उसी कमरे में इकट्ठे हैं! कमरे में आप जब फर्नीचर भर देते हैं, तो कमरा छोटा हो जाता है। बुद्धि में जितनी आप सूचनाएं भर देते हैं, बुद्धि छोटी हो जाती है । बुद्धि तो रूम है, बुद्धि तो एक स्पेस है, खाली जगह है। बुद्धिमान वह है, जो अपनी बुद्धि को सदा खाली, और ताजी, और सजग रखता है। भर नहीं लेता सिर्फ । भरकर तो सब बासा हो | जाता है। कुछ नहीं भरता; खाली रखता है; ताजी रखता है; खुली | रखता है। सूचनाएं जितनी इकट्ठी हो जाती हैं भीतर, उतनी ही बुद्धि की कम जरूरत पड़ने लगती है। क्योंकि आप सूचनाओं से ही काम चला लेते हैं। 373 कृष्ण कहते हैं, बुद्धिमानों में मैं बुद्धि हूं। में वह खाली जगह, वह स्पेस । उपनिषदों में जिसे इनर स्पेस आफ दि हार्ट कहा है – हृदय की अंतर्जगह, अंतर्गुहा । हृदय में एक जगह है, जो बिलकुल खाली है। और जो व्यक्ति उस खाली जगह खड़ा हो जाए, वह परमात्मा के मंदिर में प्रवेश कर जाता है। तो यहां बुद्धि से मतलब इंटलेक्ट का नहीं है। यहां बुद्धि से मतलब चालाकी का नहीं है। यहां बुद्धि से मतलब दो और दो चार जोड़ लेने का नहीं है। यहां बुद्धि से मतलब है, उस भीतर के अंतर-आकाश में खड़े हो जाने का, जो बिलकुल खाली है, शून्य है । उस शून्य में जो खड़ा है, वही बुद्धिमान है। क्योंकि उस शून्य में खड़े होकर ही सत्य का दर्शन उपलब्ध होता है। कृष्ण कहते हैं, बुद्धिमानों में मैं बुद्धि हूं।
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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