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- गीता दर्शन भाग-3
यह कृष्ण क्या कहे चले जा रहे हैं! यह एक या दो दफे कह देना | कृष्ण की हवा अर्जुन के घर के चारों तरफ घूम रही है कि कहीं काफी था। यह बार-बार क्या कह रहे हैं कि मैं इसमें यह, और | कोई द्वार, कहीं कोई खिड़की, कहीं कोई रंध्र भी मिल जाए, तो उसमें वह। एक दफा कह देते कि मैं सनातन कारण हूं; बात तो पूरी | प्रवेश कर जाए। इसलिए वे बार-बार कहे चले जाते हैं। हो गई। यह क्यों बार-बार कहे चले जा रहे हैं!
आज इतना ही। ___ यह बार-बार इसलिए कहे चले जा रहे हैं कि पता नहीं वह क्षण पर उठेंगे नहीं, क्योंकि इतनी देर में हो सकता है कोई रंध्र, कोई
अर्जुन के मन का कब हो, जब प्रवेश मिल जाए। द्वार सदा बंद होते खिड़की आपके भीतर थोड़ी-सी खुली हो। तो एकदम जल्दी न उठ हैं, कभी खुले होते हैं। और जब खुले होते हैं, तब प्रवेश हो जाता जाएं, नहीं तो बंद हो जाएगी। है। कब खुले होते हैं, कहना कठिन है। एकदम कठिन है। • इधर ये कीर्तन हमारे संन्यासी करेंगे, तो आपकी खिड़की को
इसलिए पुराने गुरु अपने शिष्यों को सदा पास रखने की कोशिश जरा थोड़ी देर, पांच मिनट, जितना खुला रख सकें, रखें। शायद करते थे। पता नहीं कब, किस क्षण में...।
यह हवा आपके भीतर जाए, और जो कृष्ण अर्जुन को कह रहे थे, एक सफी फकीर बायजीद तो कभी दिन में शिक्षा ही नहीं देता वह आपको भी सनाई पड सके। था। रात जब सब शिष्य सो जाते, तब वह घूमता रहता। शिष्यों के और बैठे ही न रहें। ताली बजाएं। धुन में साथ दें। डोलें। पास आकर उनकी हृदय की धड़कनें सुनता। शायद उनके सपनों | आनंदित हों। में झांकता। शायद उनके विचारों की पर्तों में उतरता। और जब कभी पाता कि कोई शिष्य उस गहराई में है या उस ऊंचाई में, जहां बात प्रवेश कर सकती है, तो तत्काल उसे उठा लेता और कहता, सुन! और सुनाना शुरू कर देता।
उसके शिष्य कई बार कहते भी उससे कि आप भी क्या पागलपन करते हैं! हम दिनभर बैठे रहते हैं तुम्हारे पास। और यह क्या हिसाब आपने निकाला है कि कभी रात दो बजे उठा लिया! कभी रात तीन बजे उठा लिया!
तो बायजीद कहता कि मैं जानता हूं कि कब तुम सुन पाओगे! कब! तुम जब बैठे होते हो, तब जरूरी नहीं कि तुम वहां मौजूद भी हो। तुम जब मुझे देखते होते हो, तब जरूरी नहीं कि तुम भीतर भी मुझे ही देख रहे हो। किसी और को देखते होओ! तुम्हारे कान जब मेरी तरफ लगे होते हैं, तब जरूरी नहीं कि तुम मुझे सुनो। तुम न मालूम क्या सुन रहे होओ! मैं उस क्षण की तलाश में होता हूं, जब मैं पाऊं कि हां. ठीक! अब उस जगह तुम हो, जहां मेरी बात तुम तक पहुंच पाएगी।
एक तो रास्ता यह है जो बायजीद का है। दूसरा रास्ता कृष्ण का है। युद्ध के मैदान पर इसका तो कोई उपाय नहीं था जो बायजीद ने किया। तो कृष्ण बहुत बार, बहुत बार, वही-वही बात, अलग-अलग ढंग, अलग-अलग मार्ग से कहे चले जाते हैं। इस आशा में कि कहीं से द्वार खुला मिल जाए। बाएं नहीं मिलता हवा को मार्ग, चलो दाएं घूमें। दाएं न मिले, तो और कहीं घूमें। आगे से नहीं मिलता, तो पीछे के द्वार से मिल जाए।
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