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________________ कृष्ण का संन्यास, उत्सवपूर्ण संन्यास बचाने में लगा है। छोटा-सा पक्षी भी बचा रहा है। छोटा-सा कीड़ा-मकोड़ा भी बचा रहा है। एक पत्थर भी अपनी सुरक्षा कर रहा है। सब अपनी सुरक्षा कर रहे हैं। अगर हम पूरे जीवन की धारा को देखें, तो हर एक अपनी सुरक्षा में लगा है। संन्यास असुरक्षा में उतरना है, ए जंप इनटु दि इनसिक्योरिटी । संन्यास का अर्थ है, अपने को बचाने की कोशिश बंद । अब हम मरने को राजी हैं। हम बचाते ही नहीं हैं, क्योंकि हम कहते हैं कि बचाकर भी कौन अपने को बचा पाया है। कृष्ण कहते हैं, संकल्पों को छोड़ देता है जो, वही योगी है। लेकिन एक आदमी कहता है कि मैंने संकल्प किया है कि मैं परमात्मा को पाकर रहूंगा। फिर यह आदमी संन्यास नहीं पा सकेगा। अभी इसका संकल्प है। यह तो परमात्मा को भी एक एडीशन बनाना चाहता है अपनी संपत्ति में। इसके पास एक मकान है, दुकान है, इसके पास सर्टिफिकेट्स हैं, बड़ी नौकरी है, बड़ा पद है। यह कहता है कि सब है अपने पास, अपनी मुट्ठी में भगवान भी होना चाहिए! ऐसे नहीं चलेगा। ऐसे नहीं चलेगा, ऐसे सब तरह का फर्नीचर अपने घर में है; यह भगवान नाम का फर्नीचर भी अपने घर में होना चाहिए ! ताकि हम मुहल्ले - पड़ोस के लोगों को दिखा सकें कि पोर्च में देखो, बड़ी कार खड़ी है। घर में मंदिर बनाया है, उसमें भगवान है । सब हमारे पास है। भगवान भी हमारा परिग्रह का एक हिस्सा है। जो भी संकल्प करेगा, वह भगवान को नहीं पा सकेगा। क्योंकि संकल्प का मतलब ही यह है कि मैं मौजूद हूं। और जहां तक मैं मौजूद है, वहां तक परमात्मा को पाने का कोई उपाय नहीं है। बूंद कहे कि मैं बूंद रहकर और सागर पा लेना चाहती हूं, तो आप उससे क्या कहिएगा, कि तुझे गणित का पता नहीं है। बूंद कहे, मैं बूंद रहकर सागर को पा लेना चाहती हूं! बूंद कहे, मैं तो सागर को अपने घर में लाकर रहूंगी! तो सागर हंसता होगा। आप भी हंसेंगे। बूंद नासमझ है। लेकिन जहां आदमी का सवाल है, आपको हंसी नहीं आएगी। आदमी कहता है, मैं तो बचूंगा और परमात्मा को भी पा लूंगा। यह वैसा ही पागलपन है, जैसे बूंद कहे कि मैं तो बचूंगी और सागर को पा लूंगी। अगर बूंद को सागर को पाना हो, तो बूंद को मिटना पड़ेगा, उसे खुद को खोना पड़ेगा। वह बूंद सागर में गिर जाए, मिट जाए, तो सागर को पा लेगी। और कोई उपाय नहीं है। अन्यथा कोई मार्ग नहीं है। आदमी भी अपने को खो दे, तो परमात्मा को पा ले । बूंद की तरह है, परमात्मा सागर की तरह है। आदमी अपने को बचाए और कहे कि मैं परमात्मा को पा लूं - पागलपन है। बूंद पागल हो गई है। लेकिन बूंद पर हम हंसते हैं, आदमी पर हम हंसते नहीं हैं। जब भी कोई आदमी कहता है, मैं परमात्मा को पाकर रहूंगा, तो वह आदमी पागल है। वह पागल होने के रास्ते पर चल पड़ा है। मैं ही तो बाधा है। कबीर ने कहा है कि बहुत खोजा । खोजते खोजते थक गया; नहीं पाया उसे। और पाया तब, जब खोजते खोजते खुद खो गया। जिस दिन पाया कि मैं नहीं हूं, अचानक पाया कि वह है । ये दोनों एक साथ नहीं होते। इसलिए कबीर ने कहा, प्रेम गली अति सांकरी, ता में दो न समाय । वह दो नहीं समा सकेंगे वहां या तो वह या मैं । 13 संकल्प है मैं का बचाव। वह जो ईगो है, अहंकार है, वह अपने को बचाने के लिए जो योजनाएं करता है, उनका नाम संकल्प है। वह अपने को बचाने के लिए जिन फलों की आकांक्षा करता है, उन आकांक्षाओं को पूरा करने की जो व्यवस्था करता है, उसका नाम संकल्प है। नीत्शे ने एक किताब लिखी है, उस किताब का नाम ठीक इससे | उलटा है। किताब का नाम है, दि विल टु पावर - शक्ति का | संकल्प। और नीत्शे कहता है, बस, एक ही जीवन का असली राज है और वह है, शक्ति का संकल्प। संकल्प किए चले जाओ। और शक्ति, और शक्ति, और ज्यादा शक्ति - चाहे धन, चाहे यश, चाहे पद, चाहे ज्ञान - लेकिन और शक्ति चाहिए। बस, जीवन का एक ही राज है, नीत्शे कहता है कि और शक्ति चाहिए। उसका संकल्प किए चले जाओ। जो संकल्प करेगा, वह जीत जाएगा। जो नहीं करेगा, वह हार जाएगा। और जो हार जाएं, उन्हें मिटा डालो। उनको बचाने की भी कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि वे जीवन के काम के नहीं हैं। जो जीत जाएं, उन्हें बचाओ । नीत्शे जो कह रहा है, वह संकल्प की फिलासफी है; वह संकल्प का दर्शन है। इसलिए नीत्शे ने कहीं कहा है कि मैं एक ही सौंदर्य जानता हूं। जब मैं सिपाहियों को रास्ते पर चलते देखता हूं और उनकी संगीनें सूरज की रोशनी में चमकती हैं, बस, इससे ज्यादा सुंदर चीज मैंने कोई नहीं देखी। निश्चित ही, जब संगीन चमकती है रास्ते पर, तो इससे ज्यादा सुंदर प्रतीक अहंकार का और | कोई नहीं हो सकता । नीत्शे कहता है, मैंने कोई और इससे महत्वपूर्ण संगीत नहीं सुना । जब सिपाहियों के युद्ध के मैदान की
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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