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7 गीता दर्शन भाग-3 >
है। क्योंकि बीज मिटे, तो अंकुर हो । अंकुर हो, तो अनंत बीज लगें। अहंकार हमारा बीज है, सख्त गांठ ।
और ध्यान रहे, बीज की खोल जो काम करती है, वही काम अहंकार करता है। बीज की सख्त खोल क्या काम करती है? वह जो भीतर है कोमल जीवन, उसको बचाने का काम करती है। वह सेफ्टी मेजर है, सुरक्षा का उपाय है। वह जो खोल है सख्त, वह भीतर कुछ कोमल छिपा है, उसको बचाने की व्यवस्था है।
लेकिन बचाने की व्यवस्था अगर टूटने से इनकार कर दे, तो आत्महत्या बन जाएगी। जैसे कि हम एक सिपाही को युद्ध के मैदान पर कवच पहना हैं लोहे के । वह बचाने की व्यवस्था है कि बाहर से हमला हो, तो बच जाए। लेकिन फिर कवच इतना सख्त हो जाए और प्राणों पर इस तरह कस जाए कि जब सिपाही युद्ध से घर लौटे, तब भी कवच छोड़ने को राजी न हो; बिस्तर पर सोए, तो भी कवच को पकड़े रखे और कह दे कि अब मैं कवच कभी नहीं निकालूंगा; तो वह कवच उसकी कब्र बन जाएगी। वह मरेगा उसी कवच में, जो बचाने के लिए था।
बीज की सख्त खोल, उसके भीतर कोमल जीवन छिपा है, उसको बचाने की व्यवस्था है। उस समय तक बचाने की व्यवस्था है, जब तक उस बीज को ठीक जमीन न मिल जाए। जब ठीक जमीन मिल जाए, तो वह बीज टूट जाए, सख्त खोल मिट जाए, गल जाए, हट जाए; अंकुरित हो जाए अंकुर निकल आए कोमल जीवन सूर्य को छूने की यात्रा पर चल पड़े।
ठीक हमारा अहंकार भी हमारे बचाव की व्यवस्था है। हमारा अहंकार भी हमारे बचाव की व्यवस्था है। जब तक ठीक भूमि न मिल जाए, वह हमें बचाए । ठीक भूमि कब मिलेगी ?
अधिक लोग तो बीज ही रहकर मर जाते हैं। उनको कभी ठीक भूमि मिलती हुई मालूम नहीं पड़ती। उस ठीक भूमि का नाम ही धर्म है । जीवन की सारी खोज में जितने जल्दी आप के रहस्य को समझ लें, उतने जल्दी आपको ठीक भूमि मिल जाए।
यह मैं गीता पर बात कर रहा हूं इसी आशय से कि शायद आपके किसी बीज को भूमि की तलाश हो । कृष्ण की बात में, कहीं हवा में, वह भूमि मिल जाए। इस चर्चा के बहाने कहीं कोई स्वर आपको सुनाई पड़ जाए और वह भूमि मिल जाए, जिसमें आपका बीज अपने को तोड़ने को राजी हो जाए।
इसलिए तो कृष्ण पूरे समय अर्जुन से कह रहे हैं कि तू अपने को छोड़ दे, तू अपने को तोड़ दे
सारा धर्म यही कहता है। सारी दुनिया के धर्म यही कहते हैं। चाहे कुरान, चाहे बाइबिल, चाहे महावीर, चाहे बुद्ध । दुनिया में जिन्होंने भी धर्म की बात कही है, उन्होंने कहा है कि तुम मिटो। अगर तुम अपने को बचाओगे, तो तुम परमात्मा को खो दोगे । और तुम अगर | अपने को मिटाने को राजी हो गए, तो तुम परमात्मा हो जाओगे । मिटो! अपने को मिटा डालो !
तुम ही तुम्हारे लिए बाधा हो । अब इस खोल को तोड़ो। इस | खोल को कई जन्मों तक खींच लिया। अब तुम्हारी आदत हो गई | खोल को खींचने की । अब तुम समझते हो कि मैं खोल हूं। अब | तुम, भीतर का वह जो कोमल जीवन है, उसको भूल ही चुके हो। वह जो आत्मा है, बिलकुल भूल गई है और शरीर को ही समझ लिया है कि मैं हूं। वह जो चेतना है, बिलकुल भूल गई है और मन की वासनाओं को ही समझ लिया है कि मैं हूं। अब इस खोल को तोड़ो, इस खोल को छोड़ दो।
लेकिन हम संकल्प करके इस खोल को बचाए चले जाते हैं। संकल्प इस खोल को बचाने की चेष्टा है। हम कहते हैं, मैं अपने को बचाऊंगा। हम सब एक-दूसरे से लड़ हैं, ताकि कोई हमें नष्ट न कर दे। हम सब संघर्ष में लीन हैं, ताकि हम बच जाएं।
डार्विन ने कहा है कि यह सारा जीवन स्ट्रगल फार सरवाइवल है। यह सब बचाव का संघर्ष है। और वे ही बचते हैं, जो सर्वाधिक योग्य हैं। सरवाइवल आफ दि फिटेस्ट । वे जो सर्वाधिक योग्य हैं, वे ही बचते हैं।
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लेकिन अगर डार्विन ने कभी कृष्ण को समझा होता, तो कृष्ण कुछ दूसरा सूत्र कहते हैं। कृष्ण कहते हैं कि जो श्रेष्ठतम हैं, वे तो अपने को बचाते ही नहीं। और जो मिटते हैं, वे ही बचते हैं।
जीसस से पूछा होता डार्विन ने तो जीसस भी यही कहते कि अगर तुमने बचाया अपने को, तो खो दोगे। और अगर खोने को राजी हो गए, तो बच जाओगे ।
धर्म कहता है कि हमने खोल को समझ लिया अंकुर, तो हम भूल में पड़ गए। यह खोल ही है । और आप मत मिटाओ, इससे अंतर नहीं पड़ता। खोल तो मिटेगी। खोल को तो मिटना ही पड़ेगा। सिर्फ एक जीवन का अवसर व्यर्थ हो जाएगा। फिर नई खोल, और फिर आप उस खोल को पकड़ लेना कि यह मैं हूं, और फिर आप एक जीवन के अवसर को खो देना !
संकल्प हमारी बचाने की चेष्टा है। हर आदमी अपने को बचाने में लगा है। आदमी ही क्यों, छोटे से छोटा प्राणी भी अपने को