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< गीता दर्शन भाग-3 -
है। इसलिए फूल को तोड़कर अगर आप पता लगाने चलेंगे, तो | लेकिन कृष्ण जैसे लोग तो बहुत टेलीग्रैफिक होते हैं। अगर एक भी हां, केमिकल्स मिलेंगे, रस न मिलेगा। रासायनिक मिल जाएंगी। शब्द जरूरी न होता, तो वे उपयोग करते न। लेकिन इससे बड़ी वस्तुएं, रस न मिलेगा। रंग मिल जाएंगे; सब कुछ मिल जाएगा। उलझन खड़ी हो गई है। फूल की पूरी एनालिसिस हो जाएगी, पूरा विश्लेषण। और। कहा, पवित्र सुगंध, तो इसका यह अर्थ हुआ कि अपवित्र सुगंध वैज्ञानिक एक-एक शीशी में अलग निकालकर रख देगा कि भी होती है। और कहा, पवित्र सुगंध, तो इसका अर्थ हुआ कि यह-यह, लेबल लगाकर। लेकिन कोई ऐसी शीशी न होगी, जिसमें पवित्र दुर्गंध, अपवित्र दुर्गंध, इनकी संभावना है क्या? . वह एक लेबल लगाए कि यह रहा सौंदर्य। सौंदर्य के लेबल वाली इनकी संभावना है। इसलिए जानकर लगाया, पवित्र सुगंध। शीशी खाली रह जाएगी। वह कहेगा, कोई सौंदर्य नहीं है। सभी सुगंधे पवित्र नहीं होतीं। उस सुगंध को पवित्र कहा है कृष्ण असल में फूल में कोई सौंदर्य नहीं था। सौंदर्य तो आपको जो ।
| ने, जिसकी भनक पड़ते ही जीवन की ऊर्जा ऊपर की तरफ प्रवाहित रस उपलब्ध हुआ फूल को देखकर, उसमें आया। वह आपका होती है।
आंतरिक रस है। लेकिन मजे की बात है, फूल को भी तोड़कर देख ऐसी सुगंधे भी हैं, जिनकी भनक पड़ते ही जीवन की ऊर्जा नीचे लो, तो भी रस न मिलेगा; आपको तोड़कर देख लें, तो भी रस न | की तरफ प्रवाहित होती है। जगत के कोने-कोने में अनुभवी मिलेगा। फिर रस कहां था? वह अदृश्य है। वह धागे की तरह वेश्याओं से पूछे आप। या पेरिस के बाजार में, जहां दुनियाभर की भीतर मनकों के छिपा है। मनके पकड़ में आ जाएंगे और धागे का अपवित्र सुगंधे पैदा की जाती हैं, परफ्यूम। और सब तरह की आपको कोई पता न चलेगा।
| जांच-परख की जाती है कि कौन-सी परफ्यम आदमी में इसलिए कृष्ण कहते हैं, पेय पदार्थों में मैं रस, जल में मैं रस। सेक्सुअलिटी ज्यादा पैदा करेगी। सुगंध है वह। लेकिन आपके लेकिन उदाहरण लेते हैं जल का। वह अर्जुन को समझ में आएगा, भीतर कामवासना को जगाने में कौन-सी सुगंध काम करेगी, उसके और रस की तरफ इशारा हो सकेगा।
एक्सपर्ट हैं, उसके विशेषज्ञ हैं। वे खबर लाते हैं कि कौन-सी जीवन में जो भी हमारे गहरे अनुभव हैं, रस के अनुभव हैं। चाहे सुगंध वेश्या के द्वार पर हो, तो ग्राहक के आने में सुविधा बनेगी। हो सौंदर्य, चाहे हो प्रेम, चाहे हो संगीत, जो भी हमारे अनुभव हैं, कौन-सी सुगंध स्त्री के कपड़ों पर हो, तो स्त्री गौण हो जाएगी और वे रस के अनुभव हैं। अनुभव रस रूप है। या ऐसा कहें कि समस्त पुरुष का मन सुगंध की वजह से आंदोलित होगा। अनुभवों का जो निचोड़ है, उसे हमने रस कहा है।
अपवित्र सुगंधे हैं। जो सुगंध जीवन ऊर्जा को नीचे की ओर ले रस की धारणा भारत में अनूठी है। रस की धारणा ही अनूठी है। जाती है, कामवासनाओं के मार्गों की ओर ले जाती है, वह दुनिया में कोई भी रस के करीब इतना नहीं पहुंचा। सौंदर्य की उन्होंने | अपवित्र है। व्याख्याएं कीं; लेकिन उनकी व्याख्याएं बड़ी ऊपरी हैं। पश्चिम ने फिर पवित्र सुगंध कौन-सी है? अभी तक किसी बाजार में तो सौंदर्य का बड़ा शास्त्र, एस्थेटिक्स पैदा किया। लेकिन उनकी | कहीं पैदा होती दिखाई नहीं पड़ती। कभी-कभी पवित्र सुगंध की सौंदर्य की परिभाषा बड़ी ऊपरी है।
घटना घटती है, वह मैं आपसे कहूं, तब आपको यह सूत्र समझ में सौंदर्य रस है। प्रेम रस है। आनंद रस है। और उपनिषद ने तो आएगा। अन्यथा यह समझ में नहीं आएगा। और गीता पर हजारों घोषणा की कि ब्रह्म रस है। ब्रह्म रस है!
टीकाएं लोगों ने लिखी हैं। लेकिन पवित्र सुगंध के बाबत कुछ वह कृष्ण वही घोषणा कर रहे हैं। जलों में मैं रस! फिर वे ध्यान नहीं दिया है। कभी आती है वह। एक-एक उदाहरण लेते चलते हैं। कहते हैं, पृथ्वी में मैं गंध, महावीर के संबंध में कहा जाता है कि महावीर जहां खड़े हो जाएं, पवित्र गंध।
वहां एक सुगंध व्याप्त हो जाएगी। चलेंगे तो, उठेंगे तो, चारों तरफ यह भी थोडा कठिन होगा। रस से कम कठिन नहीं होगा। | की हवाओं में एक सुगंध चलेगी। महावीर का शरीर भी पृथ्वी का ही क्योंकि पवित्र कृष्ण न लगाते तो आसानी पड़ जाती। लेकिन गंध | बना हुआ है, जैसा हमारा बना हुआ है। महावीर के शरीर से जो में पवित्र लगाने का क्या प्रयोजन? सुगंध काफी न था कहना? | सुगंध उठती है, उस सुगंध का नाम है-पृथ्वी में मैं सुगंध हूं। कहते हैं, पृथ्वी में पवित्र सुगंध। सुगंध काफी मालूम पड़ता है। जरूरी नहीं है कि महावीर आपके पास से निकलें, तो आपको
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