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< अदृश्य की खोज >
चली जाऊं, तो इस बड़े नगर का क्या होगा, देखते हैं। कहने के | रस बहुत अदभुत शब्द है, और बहुत सूक्ष्म और बहुत अदृश्य। लिए क्षमा करें। क्योंकि जुगनू ने सोचा कि चूंकि मैंने पंख बंद किए दिखाई जो पड़ता है—कोई पेय आप पीते हैं, अमृत भी पीएं-तो और मेरी चमक बंद हुई, सारा नगर अंधकार में डूब गया! जो दिखाई पड़ता है, जब आप पीते हैं, तो जो अनुभव में आता है,
फकीर मन ही मन में हंसा; ऊपर नहीं, क्योंकि ऊपर हंसे, तो | क्या वह वही है, जो दिखाई पड़ता था? जब पीते हैं, तो जो अनुभव जुगनू से फिर बातचीत नहीं हो सकती। उसने कहा कि तेरी सूचना | में आता है, वह तो दिखाई बिलकुल न पड़ता था। जो दिखाई पड़ता के लिए धन्यवाद। मैं तो सदा से ही ऐसा जानता था। तेरी बड़ी कृपा था, वह तो कुछ और दिखाई पड़ता था। और जो फिर अनुभव में है कि तू इस नगर को छोड़कर नहीं जाती। नगर की तो बात दूर, | आता है पीने पर, वह कुछ और ही है। वह जो अनुभव में आता है अगर तू इस विश्व को छोड़कर चली जाए, तो आकाश में जो तारे | पीने पर, वह है रस। वह रस आंतरिक अनुभूति है। टिमटिमा रहे हैं, ये भी एकदम बंद हो जाएं। ये भी एकदम बंद हो | ऐसा ही नहीं; जहां भी...। आपका प्रेमी आपके पास है, आप जाएं और बुझ जाएं। जुगनू पास सरक आई और उसने कहा, | | हाथ में हाथ लेकर बैठ गए हैं। हाथ तो प्रेमी का हाथ में है, लेकिन आदमी तुम काम के मालूम पड़ते हो। कुछ और बातें करें। | भीतर जो एक स्वाद उत्पन्न होता है प्रियजन के पास होने का, वह
कहते हैं, सुबह तक जुगनू फकीर हो गई। मगर फकीर को जुगनू | रस है। वह अगर हम वैज्ञानिक के पास दोनों के हाथ लेबोरेटरी में होने से शुरू करना पड़ा। रातभर चली बात; सुबह तक जुगनू पहुंचा दें और कहें कि काट-पीटकर पता लगाओ कि इनको कैसा फकीर हो गई।
रस उपलब्ध हुआ! क्योंकि ये दोनों कह रहे थे कि जन्म-जन्म तक ऐसा ही होने वाला है इस कथा में भी। यह अर्जुन बेचारा बचेगा हम ऐसे ही हाथ में हाथ लिए बैठे रहें, कि चांद-तारे बुझ जाएं और नहीं। यह कृष्ण हो जाने वाला है। लेकिन अभी लंबी है दूरी। अभी हमारे हाथ अलग न हों! ये कुछ ऐसी बातें सुनी हैं इनकी हमने। वह सुबह है दूर। अभी तो जुगनू की भाषा में कृष्ण को बोलना है। जरा कृपा करके इन दोनों के हाथ का पता तो लगाओ खोजबीन कर उसके सिवाय कोई उपाय नहीं है।
कि इसमें रस कहां है?
खून मिलेगा बहता हुआ। पानी मिलेगा बहता हुआ। हड्डी,
मांस, मज्जा, सब मिल जाएगी। रस नहीं मिलेगा। रस अदृश्य है। रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः । उन्हें जरूर मिल रहा था। उन्हें जरूर मिल रहा था। भ्रांत हो. सपना प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नूषु ।। ८।। हो, उन्हें जरूर मिल रहा था। प्रत्येक वस्तु के भीतर जो आंतरिक 'पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ। अनुभव में उतरता है स्वाद, उसका नाम रस है।
जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु ।। ९ ।। तो कृष्ण कहते हैं, समस्त जलीय द्रव्यों में, समस्त पेय पदार्थों हे अर्जुन, जल में मैं रस हूं; चंद्रमा और सूर्य में प्रकाश हूं में, वह जो तुम पीते हो, वह मैं नहीं हूं; वह जो तुम पीकर अनुभव संपूर्ण वेदों में ओंकार हूं तथा आकाश में शब्द और पुरुषों करते हो, वह मैं हूं। रस हूं मैं। में पुरुषत्व हूं। तथा पृथ्वी में पवित्र गंध और अग्नि में तेज ___ रस अदृश्य है। सभी रस अदृश्य हैं। फूल है खिला गुलाब का। हूं, और संपूर्ण भूतों में उनका जीवन हूं अर्थात जिससे वे गए आप उसके पास। कहा, बहुत सुंदर है। लेकिन कोई पकड़ ले जीते हैं, वह मैं हूं, और तपस्वियों में तप हूं। आपको, मिल जाए कोई तार्किक, और पूछे, कहां है सौंदर्य ? जरा
मुझे भी दिखाओ। तो आप पड़ेंगे कठिनाई में। कितना ही बताएंगे,
| नहीं बता पाएंगे। और जितना बताएंगे, उतना ही पाएंगे कि बताने में 7 स अदृश्य की ओर इशारा कृष्ण ने शुरू किया। दृश्य असमर्थ हैं। और आप हारेंगे। आपकी हार निश्चित है। वह तार्किक
को बताया, और कहा, उस दृश्य में मैं कौन हूं। इशारा जीतेगा। उसकी जीत निश्चित है। क्योंकि उसने दृश्य को पकड़ा,
किया दृश्य की तरफ, और फिर भी इशारा किया और आपने अदृश्य की घोषणा की है, जिसको आप न बता पाएंगे। अदृश्य की तरफ। कहा, जल में मैं रस।
सौंदर्य बताया नहीं जा सकता। असल में फूल में नहीं है सौंदर्य, जल में रस! रस को थोड़ा समझना पड़े।
फूल के अनुभव में आपके भीतर जो बोध पैदा होता है, उस रस में
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