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< गीता दर्शन भाग-3 -
वहीं से विभाजन करना पड़ेगा।
उपाय भी नहीं है। वह समझौता करेगा किस बात के लिए! अज्ञानी कहां से शुरू करें? तो ऊपर से ही शुरू करना उचित है, क्योंकि | तो डटकर अपने अज्ञान में खड़ा रहता है। वह तो कहता है, यही अर्जुन को पता है ऊपर का। वह समझेगा कि पृथ्वी क्या है, वह ठीक है। समझौता करना पड़ता है ज्ञानी को। वह नीचे उतरता है; समझेगा कि जल क्या है, वह समझेगा कि अग्नि क्या है। फिर अज्ञानी की जगह आता है। उसका हाथ पकड़ता है। यात्रा पर धीरे-धीरे उसकी समझ बढ़ेगी। जैसे-जैसे समझ बढ़ेगी, भीतर की | निकलता है। हाथ पकड़ता है, तो अज्ञानी की भाषा का उसे उपयोग बात कृष्ण उससे कहेंगे। कहेंगे, बुद्धि क्या है, विचार क्या है, मन | करना पड़ता है। क्या है। कहेंगे, अहंकार क्या है। और जब उसे अहंकार की सूझ सब विभाजन अज्ञानी की भाषा है। ज्ञानी की भाषा में तो कोई खयाल में आ जाएगी, तब कहेंगे, इसके पार, बियांड दिस, परा | | विभाजन नहीं है, अद्वय है, एक है। लेकिन उस एक को कहने का का लोक है। इसके पार मैं हूं, इसके पार भागवत चैतन्य है। कोई उपाय नहीं; मौन रह जाना ही काफी है।
लेकिन उस मैं तक लाने के लिए यह मिट्टी-पदार्थ से लेकर, अगर कृष्ण ज्ञानी की भाषा का उपयोग करते, तो चुप रह जाते। पृथ्वी से लेकर आठ तत्वों की यात्रा कृष्ण को करवानी पड़ेगी। और | फिर गीता पैदा नहीं होती। तो अर्जुन की बुद्धि से चल रहे हैं। भलीभांति जानते हुए कि सब जुड़ा है, सब इकट्ठा है। | इसलिए बहुत स्थूल से शुरू किया, पृथ्वी; स्थूलतम। फिर सूक्ष्म
सब इकट्ठा है। कहीं कुछ टूट नहीं गया है। सब संयुक्त है। | के पास आए, अहंकार। निम्नतम, बाह्यतम वस्तु भी अंतरतम से जुड़ी है। निम्नतम श्रेष्ठतम | | और अर्जुन का अहंकार भारी रहा होगा। क्षत्रिय था। क्षत्रिय तो का ही नीचे का फैलाव है। सब संयक्त है। अस्तित्व संयक्त है। जीता ही अहंकार पर है। उसकी तो सारी चमक और रौनक अहंकार लेकिन जिन्हें कुछ भी पता नहीं है, उनसे करनी है बात। और जिन्हें की है। उसकी तो सारी धार अहंकार की है। अगर एकदम से कह पता है, उनसे बात करने का कोई अर्थ नहीं है।
| देते कि अहंकार, तो शायद वह नाराज ही होता, समझ न पाता। तो एक बात ध्यान में रख लेंगे और वह यह कि दो ज्ञानी अगर एकदम से कह देते कि यह अहंकार सब प्रकृति है; कुछ भी नहीं, मिलें, तो बातचीत का कोई उपाय नहीं है। दो अज्ञानी मिलें, तो | सब बेकार है। तो अर्जुन और कृष्ण के बीच संवाद की संभावना बातचीत बहुत होगी, हो बिलकुल न पाएगी। दो ज्ञानी मिलें, टूटती, और कुछ न होता। क्रमशः! । बातचीत बिलकुल न होगी, फिर भी हो जाएगी। दो अज्ञानी मिलें, । और अहंकार तलाश में रहता है इस बात की कि मुझे चोट पहुंचा बातचीत बहुत चलेगी, भारी चलेगी, हो न पाएगी बिलकुल। फिर | दो। खोज में रहता है। बहुत सेंसिटिव है। छुई-मुई। जरा-सा इशारा बातचीत कहां हो पाती है?
लगा दो, जरा-सा, जरा तिरछी आंख से देख दो, तो वह दिक्कत एक ज्ञानी और एक अज्ञानी के बीच बातचीत हो पाती है। | में पड़ जाता है। और दिक्कत में इसलिए पड़ जाता है कि उसके लेकिन समझौते करने पड़ते हैं, कंप्रोमाइज करनी पड़ती है। ज्ञानी | | पास वस्तुतः कोई आधार तो हैं नहीं, हवाई किला है। ताश का घर को ही करनी पड़ती है, क्योंकि अज्ञानी तो क्या करेगा, अज्ञानी है। जरा-सी फूंक, और सब गिर जाएगा। कैसे करेगा? ज्ञानी को ही करनी पड़ती है। उसे ही अज्ञानी की सुना है मैंने, एक फकीर ठहरा था एक महानगरी के बाहर। भाषा में बोलना शुरू करना पड़ता है। इस आशा में कि धीरे-धीरे, | अमावस की रात। महानगरी में विद्युत के दीए पूरे नगर में जल रहे क्रमशः, एक-एक कदम वह राजी कर लेगा, और उस जगत तक | थे, जैसे दीवाली हो। फकीर लेटा था अंधेरे में एक वृक्ष के तले। ले जाएगा, जहां शब्द के बिना कहने की संभावना है। उस परा | एक जुगनू उड़ती हुई आकर फकीर के पास बैठ गई। बैठकर उसने तक इशारा कर पाएगा।
पंख बंद कर लिए। उसकी चमकती हुई रोशनी बंद हो गई। तभी इसलिए सारी चर्चा, जब भी होती है—चाहे कृष्ण और अर्जुन | अचानक बिजली के कारखाने में कुछ गड़बड़ हुई होगी, और सारे के बीच, और चाहे बुद्ध और आनंद के बीच, और चाहे महावीर नगर की बिजली चली गई।
और गौतम के बीच, और चाहे जीसस और ल्यूक के बीच–सारी उस जुगनू ने फकीर से कहा, एक्सक्यूज मी फार मेंशनिंगचर्चा एक ज्ञानी और एक अज्ञानी के बीच है।
कहने के लिए क्षमा करें। बट डू यू सी इन व्हाट शेप दिस ग्रेट सिटी और ध्यान रहे, अज्ञानी बिलकुल समझौता नहीं करता। कोई विल बी, इफ आई एम गान समव्हेयर एल्स-अगर मैं कहीं और
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