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+गीता दर्शन भाग-3 -
लेकिन किनारा छोड़ना ही पड़ेगा।
हुई, दि क्रिएटर। बट दि डिस्ट्रायर, विनाश करने वाले की तरह की कबीर ने मजाक की है हम सबके बाबत। और कहा है, मैं बौरी | धारणा भारत की अपनी अनूठी खोज है। खोजन गई, रही किनारे बैठ। गई तो खोजने, गई खोजने हीरों को, सारी दुनिया में परमात्मा को कहा जाता है, स्रष्टा, बनाने वाला। लेकिन पागल ऐसी कि किनारे पर बैठ रही।
लेकिन इतने हिम्मतवर धार्मिक लोग पृथ्वी पर कहीं न हुए कि बनाने कोई पूछ सकता है कि कबीर ने स्त्रीलिंग शब्द का क्यों प्रयोग वाले के भीतर जो छिपा हुआ तर्क है, उसकी आत्यंतिक बात को किया? मैं बौरी खोजन गई, रही किनारे बैठ। क्यों न कहा कि मैं | भी स्वीकार कर लेते; क्योंकि जो बनाएगा, वही मिटाएगा भी। जो बौरा खोजन गया, रहा किनारे बैठ! कोई अड़चन न थी। मैं पागल | स्रष्टा होगा, वही विनाश भी कर सकेगा। और जिससे जगत पैदा खोजने गया और किनारे बैठ गया। कहते हैं, मैं पागल खोजने गई होगा, उसी में लीन भी होगा। और जो जन्मदाता है, वही मृत्युदाता और किनारे बैठ रही।
भी होगा। कबीर जानते हैं कि परमात्मा के सिवाय पुरुष कोई भी नहीं है। दूसरी बात अप्रीतिकर है, इसलिए दुनिया में कहीं भी खयाल में क्योंकि पुरुष का ठीक-ठीक अर्थ यही है गहरे में कि जो मालिक नहीं आई। पहली बात बड़ी प्रीतिकर है कि हे, तू पिता है, तू गोद . है। तो मालिक तो कभी खोजने नहीं जाता; भिखारी खोजने जाते है। लेकिन तू कब्र भी है, इसे कहने की हिम्मत! तूने जन्म दिया, हैं। अगर मालिक ही होते, तो खोजने क्यों जाते? मालिक नहीं हैं, तूने बनाया, तू दयालु है। लेकिन तू मिटाएगा भी, तू तोड़कर इसलिए खोजने गए।
खंड-खंड करके विनष्ट भी कर देगा! और फिर भी कहने की ___ इसलिए कबीर स्त्रीलिंग शब्द का प्रयोग करते हैं। वे कहते हैं, हिम्मत की कि तू दयालु है, बड़ी मुश्किल है। बनाने वाला दयालु मैं बौरी खोजन गई। मालिक तो एक ही है, वह परमात्मा। पर | है, लेकिन मिटाने वाला ? मिटाने वाले से हमें डर लगता है। जन्म पागल की तरह किनारे पर बैठ रही। ..
| दिया तूने, बड़ी कृपा की। लेकिन मृत्यु! किनारे पर जो बैठ रहेगा, वह पागल ही है। क्योंकि किनारे पर | | तो सारी दुनिया में मृत्यु के लिए लोगों ने दूसरा तत्व खोजाबैठे आदमी को हाथ में क्या लग सकता है ज्यादा से ज्यादा। हां, डेविल. शैतान. इबलीस. अलग-अलग नाम टिप। परमात्मा से कभी-कभी नदी की छाती पर सफेद झाग हीरों का धोखा देती है। विपरीत एक और शक्ति की कल्पना की. जो मिटाएगी। यह सिर्फ समुद्र के तट पर टकराकर पत्थरों से, पानी झाग बना लेता है। सूरज इस देश में एक ठीक, संगत विचार की व्यवस्था हुई, और वह यह की किरणें कभी झाग से गुजरती हैं, तो रंग-बिरंगा हो जाता है। दूर | कि जो बनाएगा, वही मिटाएगा। से कभी बहुत प्यारा भी लगता है। पास जाकर हाथ-मुट्ठी में लो, | लेकिन हमारी धारणा यह है कि बनाना भी उसकी कृपा है और तो सिवाय पानी के कुछ भी हाथ नहीं आता।
मिटाना भी उसकी कृपा है। और जो बनाने में ही कृपा देखता है, नदी के तट पर तो झाग ही हाथ लग सकती है, फोम। हां, हीरों वह धार्मिक नहीं है। जो मिटाने में भी कृपा देख पाता है, वही का धोखा हो सकता है। नदी में गहरे उतरें, तो ही हीरे हाथ लग धार्मिक है। सकते हैं।
इसलिए कृष्ण कहते हैं कि सृजन भी मेरा, विनाश भी मेरा; तो कृष्ण कहते हैं, इंद्रियों के पार जो है, वह मैं हूं। और इंद्रियों | निर्मित भी हुआ सब मुझसे और प्रलय को भी उपलब्ध होगा मुझमें। से जो पकड में आता है. वह जगत है, जो मैंने तझसे कहा आठ सब मुझमें ही आता है और मझमें ही खो जाता है। प्रकार का।
इसमें बड़ा वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। जीवन की सारी गति एक और बात कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं। यह बात बहुत सोचने वर्तुलाकार है। और चीजें जहां से शुरू होती हैं, वहीं समाप्त होती जैसी है। इसलिए भी सोचने जैसी है कि भारतीय प्रज्ञा ने ही इस हैं। जैसे कि एक हम वर्तुल बनाएं, एक सर्किल बनाएं, तो जहां से बात की जगत में उदघोषणा की है। कहते हैं, मैंने ही बनाई है यह | हम बनाना शुरू करें, वहीं फिर दूसरी रेखा आकर जोड़ें, तब वर्तुल प्रकृति। मैंने ही रचा है यह सब। यह मुझसे ही स्रष्ट हुआ, और। पूरा बने। मुझमें ही प्रलय को उपलब्ध हो जाएगा।
सारा जीवन वर्तुलाकार है। बचपन में जहां से हम यात्रा करते हैं, परमात्मा की स्रष्टा की तरह धारणा तो जगत में सब जगह पैदा जवानी के बाद उसी दुनिया में वापस सीढ़ियां उतरते हैं। और जन्म
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