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अदृश्य की खोज
जाता है, वह परमात्मा है। मनके वही हैं, जो इंद्रियों की पकड़ में आ जाते हैं; और धागा वही है, जो इंद्रियों की पकड़ के बाहर छूट जाता है।
क्या जीवन में हमने कोई ऐसी चीज जानी है, जो इंद्रियों की पकड़ के बाहर हो ? कोई ऐसा स्वाद जाना है, जो जीभ से न लिया गया हो ? अगर नहीं जाना, तो परमात्मा की हमें कोई खबर नहीं है। कोई ऐसा दृश्य देखा है, जो आंख से न देखा गया हो ? अगर नहीं देखा, तो हमें उन जड़ों की कोई खबर नहीं है, जिनकी कृष्ण बात करते हैं। क्या कोई ऐसी ध्वनि सुनी है, जो कानों से न सुनी गई हो? ऐसी ध्वनि, जिसे बहरा भी सुन सके ! अगर नहीं सुनी है ऐसी कोई ध्वनि, तो हमें धागे की कोई भी खबर नहीं है; हम मनकों से ही खेल रहे हैं।
और जब तक कोई आदमी मनकों से खेलता है, तब तक बचकाना है, जुवेनाइल है। और जैसे ही उसे मनकों के भीतर छिपे | हुए धागे के रहस्य का पता चल जाता है, उसी दिन प्रौढ़ होता है।
सिर्फ धार्मिक व्यक्ति ही मैच्योर होता है, प्रौढ़ होता है । अधार्मिक व्यक्ति बचकाने ही रह जाते हैं। इसलिए जिस समाज में जितना ज्यादा अधर्म होगा, उतना बचकानापन और चाइल्डिशनेस बढ़ जाएगी।
आज अगर अमेरिका में जुवेनाइल बच्चे पागल की तरह व्यवहार कर रहे हैं, तो उसके लिए जिम्मेवार बच्चे नहीं हैं। अगर आज अमेरिका के बच्चे हिप्पी, और बीटल, और सब तरह की नासमझियों को उपलब्ध हो रहे हैं, तो उसके लिए बच्चे जिम्मेवार नहीं हैं। उसके लिए वे मां-बाप जिम्मेवार हैं, जिन्होंने प्रौढ़ होने का रास्ता ही तोड़ दिया है। क्योंकि प्रौढ़ होने का एक ही रास्ता है, मैच्योरिटी का इस जगत में, वह धर्म है। एक बार धर्म हट जाए, तो बूढ़े भी बचकाने होंगे। और एक बार जीवन में धर्म प्रवेश कर जाए, तो बच्चे में भी उतनी ही प्रज्ञा उत्पन्न होती है, जितनी वृद्धतम व्यक्ति को हो सके।
लाओत्से के संबंध में कहा जाता है कि वह बूढ़ा ही पैदा हुआ। बड़ी अजीब-सी बात है। कोई आदमी बूढ़ा कैसे पैदा होगा ! लेकिन अजीब न लगेगी, अगर दूसरे छोर से सोचें। कई लोग बच्चे ही मर जाते हैं न! अगर कोई आदमी बच्चा ही मर जाता है, तो किसी आदमी के बूढ़े पैदा होने में अड़चन क्या है ?
अनेक लोग जब अपनी कब्र में जाते हैं, तब अगर गौर से देखें, तो उनके हाथ में घुनघुने होते हैं, और कुछ भी नहीं। जिन चीजों से
हम भी खेल रहे हैं, वे घुनघुनों से ज्यादा नहीं हैं। बच्चों के घुनघुने जरा ज्यादा रंगीन होते हैं, हमारे जरा कम रंगीन, पर उससे हम प्रौढ़ नहीं हो जाते हैं। और बच्चों के घुनघुने सुबह आते हैं और सांझ टूट जाते हैं। और हमारे घुनघुने जिंदगीभर चलते हैं, ज्यादा मजबूत होते | हैं | इससे कोई भेद नहीं पड़ता है। लेकिन खेलते हम घुनघुनों से रहते हैं। अधिक लोग मरते वक्त वहीं होते हैं, जहां पैदा होते वक्त खटोले में थे। कब्र और खटोले में कोई विकास नहीं होता।
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लाओत्से की बात मजाक की तो है, लेकिन अर्थपूर्ण है। वह यही कहने को यह कहानी गढ़ी गई है कि अधिक लोग कब्र में जाते वक्त घुनघुने हाथ में रखते हैं और मुंह में उनके दूध की चूसनी होती है। इसलिए उलटी बात लाओत्से के लिए कही गई कि वह जन्म से ही बूढ़ा पैदा हुआ। और जब लोग लाओत्से से पूछते कि तुम्हारे जन्म से बूढ़े होने का क्या मतलब है? तो लाओत्से कहता कि जन्म से ही मुझे, जो दिखाई पड़ता है, उसमें कोई रस नहीं है; जो नहीं दिखाई पड़ता, उसी में मेरा रस है।
तो
कृष्ण कहते हैं, मैं छिपा हूं।
धर्म जो है, वह साइंस आफ दि हिडेन, छिपे हुए का विज्ञान है। विज्ञान जो है, वह प्रकट जगत की खोज है।
लेकिन जो भी प्रकट है, वह ऊपर है, सतह पर है; और जो अप्रकट है, वह गहरा है। खजाने तो छिपाकर ही रखे जाते हैं। आप भी अपनी तिजोड़ी कहां रखते हैं? द्वार पर नहीं रखते हैं। न ही सड़क पर रख देते हैं। न घर की दीवाल पर रखते हैं । न घर की फेंसिंग के पास रखते हैं। तिजोड़ी आप वहीं रखते हैं, जो घर का अंतरतम स्थान है।
जीवन की भी सारी संपदा अंतरतम स्थानों में छुपी होती है । जितनी बड़ी चीज खोदनी हो, उतने गहरे उतरना पड़ता है।
अगर परमात्मा को खोजना हो, तो बहुत गहरे उतरना पड़ेगा। और गहरे उतरने का एक ही अर्थ है कि इंद्रियां जब तक ह पकड़े हैं, तब तक हम गहरे नहीं जा सकते।
इंद्रियों की पकड़ की हालत वैसी है, जैसे कोई आदमी किसी नदी के किनारे को पकड़े हो और कहता हो, मुझे नदी की गहराई की खोज करनी है। और किनारे को जोर से पकड़े हो, और कहता हो कि कहीं मैं डूब न जाऊं, इसलिए किनारा नहीं छोडूंगा। यद्यपि मुझे | उन हीरों की खोज करनी है, जो मैंने सुने हैं कि नदी के अंतर्गर्भ में हैं, नदी की गहराई में पड़े हैं। मुझे वे हीरे खोजने हैं, लेकिन किनारा मैं न छोडूंगा। क्योंकि किनारा छोड़ दूं, तो कहीं मैं डूब न जाऊं !