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________________ < अदृश्य की खोज > जिस बिंदु पर घटित होता है, उसी बिंदु पर मृत्यु भी घटित होती है। | प्रकाश संयुक्त हैं। और अगर कोई परमात्मा कहता हो, प्रकाश हूं वर्तुल पूरा हो गया। और मृत्यु जन्म से विपरीत नहीं है, बल्कि जन्म | मैं और अंधेरा कोई और, तो वह परमात्मा भी बेईमान है। अंधेरा के साथ ही जुड़ा हुआ दूसरा कदम है। और विनाश, सिर्फ विश्राम | | कौन होगा और ? और अगर परमात्मा प्रकाश है और अंधेरा कोई है। इसे समझ लेना जरूरी है। | और, तो इस जगत में शक्ति-विभाजन हो जाएगा। रात किसी और इस मुल्क में ही विनाश को विश्राम समझने की सामर्थ्य पैदा हुई। | की, और दिन किसी और का।। विनाश विश्राम है। सृष्टि तो श्रम है, और प्रलय? प्रलय विश्राम सुना है मैंने कि एक आदमी मर रहा है, एक ईसाई मर रहा है। है। इसलिए सृष्टि को हमने कहा, ब्रह्मा का दिन। और प्रलय को | पादरी उसे आखिरी पश्चात्ताप करवाने और प्रार्थना करवाने आया हमने कहा, ब्रह्मा की रात्रि। श्रम हो गया। सुबह हम उठे। दौड़े, | है। पादरी उससे कहता है, बोल कि शैतान, अब मुझे तुझसे कोई जीए, हारे, जीते, अज्ञानी-ज्ञानी बने, समझ-नासमझ झेली। और वास्ता नहीं; अब मैं परमात्मा की शरण जाता हूं। हे दुष्ट शैतान, फिर सांझ आई। और अंधेरा उतरा। और सो गए। और फिर वापस | अब तुझसे मेरा कोई संबंध नहीं; अब मैं प्रभु की शरण जाता हूं। वहीं खो गए, जहां से सुबह उठे थे। लेकिन वह आदमी सुनता है और आंख बंद कर लेता है और दिन है श्रम, रात्रि है विश्राम। जीवन है श्रम, मृत्यु है विश्राम। कुछ बोलता नहीं। पादरी और जोर से कहता है कि शायद मृत्यु सजन है श्रम, विनाश है विश्राम। विनाश को हमने कभी शत्र की | ज्यादा निकट है और उसे सुनाई नहीं पड़ रहा है। वह फिर भी सुन तरह नहीं देखा, मृत्यु को हमने कभी शत्रु की तरह नहीं देखा। । लेता है, फिर आंख बंद कर लेता है। पादरी और जोर से कहता है और ध्यान रहे. जिसने भी मत्य को शत्र की तरह देखा. उसका उसे हिलाकर। वह कहता है, हिलाओ मत। मैं अच्छी तरह सुन रहा जीवन नष्ट हो जाएगा। यह बड़ी उलटी दिखाई पड़ेगी बात। पर | हूं। तो पादरी पूछता है कि तू बोलता क्यों नहीं! ऐसा ही है। वह कहने लगा कि मरते वक्त किसी को भी नाराज करना ठीक . जिसने भी मृत्यु को शत्रु की तरह देखा, वह जी न पाएगा; वह नहीं। पता नहीं, किसकी शरण जाऊ! आखिरी वक्त में किसी की जिंदगीभर मृत्यु से डरेगा और बचेगा। जीना असंभव है। लेकिन | झंझट में मैं नहीं पड़ना चाहता। पता नहीं, सच में किसकी शरण जिसने मृत्यु को भी मित्र माना, वही जी पाएगा। क्योंकि जिसे मृत्यु जाऊं! इसलिए मुझे चुपचाप मर जाने दो। जिसकी शरण पहुंच भी दुख नहीं दे पाती, उसे जीवन कैसे दुख देगा! और जिसे मृत्यु | जाऊंगा, उससे ही कह दूंगा। अगर शैतान के पास पहुंच गया, तो भी मित्र है, उसे जीवन तो महामित्र हो जाएगा। और जिसे जीवन कह दूंगा कि हे ईश्वर, तुझसे मेरा कोई वास्ता नहीं। क्योंकि जिसके से विपरीत नहीं दिखाई पड़ती मृत्यु, बल्कि जीवन की ही पूर्णता | | साथ रहना है, उसी के साथ दोस्ती बतानी उचित है। और अभी मुझे दिखाई पड़ती है जैसे कि वृक्षों पर फल पक जाते हैं, ऐसे ही | | कुछ पता नहीं। जीवन पर मृत्यु पकती है-जिसे मृत्यु जीवन की ही परिपूर्णता | डिवाइडेड, अगर हम जगत को दो सत्ताओं में तोड़ दें, तो हमारी दिखाई पड़ती है और प्रलय भी सृजन का अंतिम चरण मालूम होता | निष्ठा भी विभाजित होती है। और विभाजित निष्ठा कभी भी निष्ठा है, उसका जीवन आह्लाद से भर जाए, तो कोई आश्चर्य नहीं है। नहीं है। अविभाजित निष्ठा ही निष्ठा है, अनडिवाइडेड। और आह्लाद से न भरे जीवन, तो धर्म का हमें कोई भी पता नहीं है। अगर पश्चिम में धर्म इस बुरी तरह नष्ट हुआ, तो उसके नष्ट इसलिए कृष्ण जब कहते हैं, मैं ही हूं सृजन और मैं ही विनाश। होने का अकेला कारण नास्तिक नहीं है; उसका बहुत गहरा कारण इस तरह की हिम्मत की घोषणा कहीं भी नहीं की गई है। अगर कहीं पश्चिम में धर्म का विभाजित निष्ठा का नियम है। घोषणाएं भी की गई हैं, तो कहा गया है कि मैं हूँ स्रष्टा, और वह दो के प्रति निष्ठा खतरनाक है; दो नावों पर यात्रा है। जीवन की जो शैतान है, वह है दुष्ट। वह कर रहा है विनाश। तू उससे | कोई यात्रा दो नावों पर नहीं हो सकती। और जीवन के सभी द्वंद्व सावधान रहना। संयुक्त हैं। यहां जीवन और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। लेकिन अमृत भी मैं और जहर भी मैं; इन दोनों की एक साथ | और अंधेरा और प्रकाश भी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यहां, स्वीकृति बड़ी अदभुत है। और सचाई है उसमें। क्योंकि जीवन के | | जिसे हम विरोध कहते हैं, वह विरोध भी विरोध नहीं है, केवल समस्त द्वंद्व संयुक्त होते हैं, अलग-अलग नहीं होते। अंधेरा और | दूसरा अंग है। 351
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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