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________________ परमात्मा की खोज भी दावे मशीनों के हैं। लेकिन वह है मशीन, है पदार्थ, है प्रकृति | सुना है मैंने, एक अदालत में एक आदमी पर एक गरीब आदमी | पर मुकदमा चल रहा हैं। और मजिस्ट्रेट उससे पूछता है कि क्या तुमने नेताजी बदमाश कहा ? | गांव में कोई नेताजी हैं, सभी गांव में हैं। मानहानि का मुकदमा चल रहा है उस आदमी पर । नेताजी ने मानहानि का मुकदमा चलाया है। कमजोर नेताजी रहे होंगे। नहीं तो नेता लोग मानहानि की फिक्र नहीं करते; चौबीस घंटे सहनी पड़ती है। जिसको मान चाहिए, उसे मानहानि सहनी ही पड़ेगी। जिसे सिंहासन पर चढ़ना है, उसे गालियों के रास्ते से गुजरना ही पड़ेगा। कोई उपाय नहीं है। कमजोर नेताजी रहे होंगे, या सिक्खड़, एमेच्योर । अभी नए-नए होंगे। मुकदमा चला दिया। गुस्से में आ गए। मजिस्ट्रेट उस आदमी से पूछ रहा है - नेताजी सामने खड़े हैं- कि क्या तुमने नेताजी को बदमाश कहा ? उसने कहा, जी हां। नेताजी सोचते थे, शायद मना करेगा। मजिस्ट्रेट भी सोचता था कि मना करेगा। मजिस्ट्रेट भी चौंका। कहा कि क्या तुमने चोर भी कंहा? उस आदमी ने कहा, जी हां। कहा, तुमने डाकू भी कहा ? उसने कहा, जी हां। कहा, तुमने हत्यारा भी कहा ? उसने कहा, जी हां। मजिस्ट्रेट ने कहा, क्या तुमने गधा भी कहा ? उसने कहा, कहना चाहता था। लेकिन माफ करिए, कहा नहीं। पूछा, क्यों ? उसने कहा कि जब मैं कहने के करीब आया, तो तुझे खयाल आया कि कहीं गधे नाराज न हो जाएं। क्योंकि न तो गधे चोर होते, न बेईमान होते, न बदमाश होते, न हत्यारे होते। पहले तो मैंने तय किया था कि कहूंगा। लेकिन पीछे मैं, माफ करिए, मैं छोड़ गया। कहा नहीं मैंने। आदमी जो भी कर रहा है, उसमें और पशुओं में बड़ा भेद नहीं है । सिर्फ थोड़ी-सी सूक्ष्मता का भेद पड़ता है, और कुछ भेद नहीं पड़ता । पशु उसे ही जरा अनगढ़ ढंग से करते हैं; आदमी गढ़कर करता है! सब पशु की प्रवृत्तियां आदमी में सूक्ष्म हो जाती हैं, बस । सूक्ष्म होने से और जटिल हो जाती हैं। सूक्ष्म होने से और कनिंग, और चालाक हो जाती हैं। पशु में एक सरलता भी दिखाई पड़ती है, आदमी में वह भी खो जाती है। क्योंकि वह जटिलता का बिंदु भीतर, अस्मिता, अहंकार पैदा हो जाता है; वह सारी चीजों को उलझा देता है। और जिसको परमात्मा की यात्रा पर जाना हो, उसे पदार्थ के उस 343 > सूक्ष्मतम रूप, अग्नि के उस सूक्ष्मतम खेल, प्रकृति के उस सूक्ष्मतम रहस्य के ऊपर जाना पड़ेगा। इसलिए कृष्ण कहते हैं, यह विभाजन है। यह मैंने रची प्रकृति । इस तरह आठ हिस्सों में मैंने इस प्रकृति को रचा है। जोर यह है कि तू समझ ले कि यह प्रकृति है; यह तू नहीं है। और जोर यह है कि तू समझ ले कि यह प्रकृति है; यह परमात्मा नहीं है। जो भी रचा जाता है, वह प्रकृति है; और जो भी रचा नहीं जाता है, वही परमात्मा है। जो भी बनता है, वह प्रकृति है; और जो कभी नहीं बनाया जाता, वही परमात्मा है। जो निर्मित होता है, वह प्रकृति है; और जो सदा अनिर्मित है और है— अनक्रिएटेड, अस्रष्ट - वही परमात्मा है। अहंकार भी निर्मित होता है। बच्चों में अहंकार नहीं होता; धीरे-धीरे निर्मित होता है। बुद्धि भी निर्मित होती है। बच्चों में बुद्धि नहीं होती। और आप ऐसा सोचते हों कि आप बुद्धि लेकर पैदा हुए हैं, तो आप बड़ी गलती में हैं। सिर्फ आप संभावना लेकर पैदा होते हैं, बाद में सब निर्मित होता है। अगर आपको जंगल में भेड़ियों के पास रख दिया जाए और बड़ा किया जाए, तो आपके पास कोई बुद्धि नहीं होगी। हां, भेड़ियों के पास जितनी बुद्धि होती है, उतनी बुद्धि आपके पास होगी। उससे ज्यादा नहीं। अगर आप सोचते हैं कि आपको एकांत में रखा जाए... । अकबर ने ऐसा प्रयोग किया। अकबर को किसी फकीर ने कहा कि आदमी वही हो जाता है, जो उसे बनाया जाता है। इसलिए बनाया हुआ आदमी झूठा है। हम तो उस आदमी की तलाश में हैं, जो अनबनाया है, जो अनबना है। अकबर ने कहा, मैं यह नहीं मान सकता कि आदमी में सब बनाया हुआ है। उस फकीर ने कहा, कौन-सी चीज आपको गैर-बनाई दिखती है? अकबर ने कहा कि जैसे आदमी की बुद्धि, विचार । ये आदमी के बनाए हुए नहीं हैं। ये तो भीतर से आते हैं। सबको हमको खयाल है कि भीतर से आते हैं। इसीलिए तो हम लड़ पड़ते हैं। कोई आदमी अगर कहे कि आपका विचार गलत, तो आप कहते हैं, मेरा विचार गलत ! कभी नहीं। मेरा विचार! ऐसा लगता है, जैसे कि मेरे साथ नहीं, सब विचार बाहर से भीतर डाले जाते हैं। तो उस फकीर ने कहा, आप एक प्रयोग कर लें। एक बच्चे को, जन्मजात बच्चे को, अभी पैदा हुआ और उठाकर कारागृह में रखा गया। सब तरह उसकी सेवा की जाती; उसे दूध पहुंचाया जाता;
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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