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________________ गीता दर्शन भाग-3 सबसे सूक्ष्म और बारीक और डेलिकेट चीज है। इस जगत में जो सूक्ष्मतम अस्तित्व है, वह अहंकार है । और जो स्थूलतम अस्तित्व है, वह पृथ्वी है। इसलिए इस तरह । और एक-एक के बाद। सबसे पहले भीतर की यात्रा में कहा, मन । मन का अर्थ है, हमारे भीतर वह जो सचेतना है, वह जो कांशसनेस है। मन का है, सचेतना । वह जनरलाइज्ड हमारे भीतर जो मनन की शक्ति है, उसका नाम मन है। मन का बहुत रूप जानवरों में भी है। जानवर भी मन से जीते हैं, लेकिन बुद्धि उनके पास नहीं है। बुद्धि मन का स्पेशलाइज्ड रूप है। सिर्फ मनन नहीं, बल्कि तर्कयुक्त तर्कसरणीबद्ध चिंतन का नाम बुद्धि है। और बुद्धि के भी पीछे जब कोई बहुत बुद्धि का उपयोग करता है, तभी भीतर एक और सूक्ष्मतम चीज का जन्म होता है, जिसका नाम अहंकार है, मैं । ये आठ तत्वों से मैंने यह सारी प्रकृति रची है, कृष्ण कहते हैं। यह किसलिए कहते हैं? यह वे इसलिए कहते हैं कि इन आठ तत्वों में तू प्रकृति को जानना। और जब इन आठ के पार चला जाए, तब तू जान पाएगा। इन आठ के भीतर तू जब तक रहे, तब तक तू जानना कि संसार में है; और जब इन आठ के पार हो जाए, तब तू जानना कि तू परमात्मा में है। सर्वाधिक कठिनाई और आखिरी मुसीबत तो अहंकार के साथ होगी, क्योंकि बहुत ही बारीक है। हवा को तो मुट्ठी में हम बांध भी थोड़ा-बहुत उसको मुट्ठी में बांधने का भी उपाय नहीं । हवा तो चलती है, तो उसका धक्का भी लगता है; अहंकार चलता है, तो उसका स्पर्श भी मालूम नहीं पड़ता। इसीलिए तो दुरूह हो जाता है अहंकार से ऊपर उठना। क्योंकि इतना सूक्ष्म है कि आप कुछ भी करो, उसी में प्रवेश कर जाता है। आप त्याग करो, वह उसी के पीछे खड़ा हो जाता है। वह कहता है, मैंने त्याग किया! आप किसी के चरण छुओ, समर्पण करो। वह पीछे से कहता है कि देखो, मैं कितना विनम्र हूं। मैंने चरण छुए ! आप प्रार्थना करो, परमात्मा के मंदिर में सिर पटको। वह कहता है कि देखो, मैं कितना धार्मिक हूं! मैंने प्रभु की प्रार्थना की। जब ि दूसरे अधार्मिक सड़कों से जा रहे हैं दूकानों की तरफ; मैं धार्मिक, प्रभु की प्रार्थना कर रहा हूं! वह मैं आपकी प्रत्येक क्रिया के पीछे खड़ा हो जाता | आप कुछ भी करो, वह सदा पीछे है। वह इतना बारीक है कि आप कहीं सेद्वार - दरवाजे बंद नहीं कर सकते, जहां वह न आ जाए। जहां भी आप होंगे, वहां वह पहुंच जाएगा। जब तक आप होंगे, तब तक वह पहुंच जाएगा। तो कृष्ण ने यह विभाजन जो करके कहा, वह इसीलिए कहा है कि मोटी से मोटी चीज है पृथ्वी, और सूक्ष्म से सूक्ष्म चीज है अहंकार | पदार्थ से तो मुक्त होना ही है, अंततः अस्मिता से भी मुक्त होना है। क्योंकि अहंकार भी पदार्थ का ही सूक्ष्मतम रूप है। अगर ठीक से समझें, तो जैसा कहा कि अग्नि के ही रूप हैं सब बाह्य पदार्थ, वैसे ही अग्नि के ही रूप हैं भीतर के पदार्थ । जिसको हम मनन कहते हैं, वह भी अग्नि का ही एक रूप है। और जिसे हम बुद्धि कहते हैं, वह भी अग्नि का ही एक रूप है। और इसीलिए मैं आपसे कहूं कि अगर पश्चिम में आज सफलता मिल गई है कंप्यूटर बनाने में, और जो बुद्धि से आप काम करते थे, वह पेट्रोल या बिजली से चलने वाली मशीन करने लगी है, तो बहुत | चकित होने की जरूरत नहीं। क्योंकि आप भी जो काम कर रहे हैं, वह भी सिर्फ नेचरल कंप्यूटर का है। आपके भीतर भी जो चल रहा | है काम, वह भी अग्नि से ही चल रहा है। ठीक वैसी ही मशीन बाहर भी अग्नि से काम कर सकती है। और काम करने लगी है। और आदमी से ज्यादा कुशल काम करती है। क्योंकि उस मशीन के पास कोई अहंकार नहीं है, जो बीच में बाधा डाले। कोई अहंकार नहीं है; वह बिलकुल कुशलता से काम करती रहती है। ठीक फ्यूल मिल जाए, ईंधन मिल जाए, मशीन काम करती रहती है। आपकी बुद्धि का काम तो मशीन करने लगी है। आज नहीं कल, | शायद हम किसी दिन ऐसी मशीन भी ईजाद करने में सफल हो जाएंगे...। अभी किसी वैज्ञानिक को सूझा नहीं है, और न उन लोगों को सूझा है, जो विज्ञान के संबंध में उपन्यास और कल्पनाएं लिखते हैं। लेकिन मैं कहता हूं, किसी दिन यह भी संभव हो जाएगा कि हम ऐसी मशीन बनाने में सफल हो जाएंगे, जिस मशीन को आप जरा पैर की चोट मार दे, तो वह कहेगी, देखते नहीं; मैं कौन हूं! तो मशीन | कह सकती है। क्योंकि अहंकार भी बहुत सूक्ष्म अग्नि है। | अगर हमने विचार पैदा कर लिया मशीन से, अगर हमने विचार का काम ले लिया मशीन से, अगर हमने बुद्धि का काम ले लिया मशीन से, तो बहुत देर नहीं लगेगी कि उसमें हम अस्मिता को भी | जन्म दे दें। और मशीनें भी अकड़कर बैठ जाएं। कुछ मशीनें राष्ट्रपति हो जाएं, कुछ मशीनें प्राइम मिनिस्टर हो जाएं। कुछ कठिनाई नहीं है। मशीनें दावे करने लगें। मशीनें कभी न कभी दावे करेंगी, क्योंकि हमारे भीतर भी मशीनें दावे कर रही हैं। हमारे भीतर 342
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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