SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 355
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ < अनन्य निष्ठा - वह रहस्य। बुद्ध से पूछता है कि प्रभु! आज एकांत का क्षण है, एक बात पूछ और ध्यान रहे, संतों ने कभी भी सत्य का दावा नहीं किया, लूं। बहुत दिन से पूछने का मन करता है, लेकिन कोई न कोई मौजूद रहस्य की घोषणा की है। दार्शनिकों ने सत्य का दावा किया और | | होता है; मैं टाल जाता हूं। आज यहां कोई भी नहीं है, सिवाय इन रहस्य की हत्या की है। और इसलिए दर्शन, फिलासफी और धर्म | सूखे गिरते पत्तों के। मैं आपसे पूछ लूं एक बात। आप जो जानते में एक बुनियादी फर्क है। हैं, वह सभी कह दिया है, या कुछ बचा भी लिया है? आपने जो धर्म रहस्य की खोज है और दर्शनशास्त्र सत्य की। इसलिए | जाना, वह सभी कह दिया है, या कुछ बचा भी लिया है? . दार्शनिक गणित बिठाने में लगा रहता है, और धार्मिक गणित | तो बुद्ध अपना हाथ खोल देते हैं उसके सामने, और कहते हैं, उखाड़ने में लगा रहता है। दर्शनशास्त्री तर्क, कनक्लूजन, मैं खुली हुई मुट्ठी की तरह हूं, बंद मुट्ठी की तरह नहीं। मैंने तो सभी निष्पत्तियां निकालता रहता है। और संत, मिस्टिक, सब निष्पत्तियां | | कह दिया है, लेकिन तमने सभी सन लिया होगा, यह जरूरी नहीं तोड़कर, वह जो अनंत अज्ञात है, उसमें कूद जाता है। है। मैंने तो सब बता दिया है, लेकिन सब तुमने पा लिया होगा, यह इसलिए कृष्ण ने कहा, रहस्य। जरूरी नहीं है। मैंने तो कुछ भी नहीं छिपाया है, लेकिन सब प्रकट कृष्ण कोई फिलासफर नहीं हैं, कोई दार्शनिक नहीं हैं; उस अर्थों हो गया होगा, यह जरूरी नहीं है। मैं तो एक खुली किताब हूं, खुली में जिसमें प्लेटो या अरस्तू या हीगल दार्शनिक हैं। उस अर्थ में कृष्ण | मुट्ठी हूं। सब मेरा खुला है। द्वार-दरवाजे खुले हैं। तुम कहीं से भी दार्शनिक नहीं हैं। कृष्ण उस अर्थ में रहस्यवादी हैं, जैसे जीसस या | प्रवेश करो। तुम सब जान लो। कुछ भी छिपाया नहीं है। कुछ बुद्ध या लाओत्से। | छिपाने का सवाल नहीं है। लेकिन सब तुम्हें प्रकट हो गया होगा, रहस्यवादी का कहना यह है कि तुम्हारे ज्ञान की घोषणा सिर्फ | यह जरूरी नहीं है। तुम्हारे अज्ञान का सबूत है। काश, तुम सच में ही जान लो, तो तुम कृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि सभी कुछ कह दूंगा तुझे-सभी। जानने का दावा छोड़ दो। काश, तुम्हें पता चल जाए, तो जो सत्य जो कहा जा सकता है, वह भी कह दूंगा; जो नहीं कहा जा सकता है, वह इतना बड़ा है कि तुम उसमें कहीं पाओगे भी न कि तुम कहां | है, वह भी कह दूंगा। सभी में दोनों आ जाते हैं। जो कहा जा सकता खड़े हो। तुम उसमें डूब तो सकते हो, लेकिन उसको मुट्ठी में नहीं | | है, वह भी कह दूंगा; जो नहीं कहा जा सकता है, वह भी कह दूंगा। ले सकते हो। आप पूछेगे, जो नहीं कहा जा सकता है. उसको कैसे कहिएगा? इसलिए कृष्ण कहते हैं, रहस्य। शायद जो नहीं कहा जा सकता, उसको कहने की बहुत तरह की रहस्य वह है, जिसमें हम तो डूब सकते हैं, लेकिन जिसे हम कोशिशें दुनिया में की गई हैं अलग-अलग ढंग से। लेकिन कृष्ण अपनी मुट्ठी में बांधकर घर में लाकर तिजोड़ी में बंद नहीं करने जैसी कोशिश की है, वैसी बहुत मुश्किल से शायद ही कभी की सकते। और हम कितना ही उसे जान लें. और कितना ही उसे गई है। इसलिए कष्ण जब कह-कहकर थक गए तो फिर उन्होंने पहचान लें, और कितना ही उसके साथ एक हो जाएं, फिर भी हमारे | दिखाया। वह कहा, जो नहीं कहा जा सकता है। फिर अर्जुन को मन में अज्ञात का भाव बना ही रहेगा, दि अननोन मौजूद ही रहेगा। कहा कि अब तेरी समझ में नहीं आता शब्दों से, तो अब तू देख जानें कितना ही, पहचानें कितना ही, मिलन हो जाए कितना ही, ले। अब मैं तुझे दिव्य-दृष्टि दे देता हूं और तू देख ले मेरे पूरे विराट फिर भी कुछ अज्ञात, कुछ अननोन शेष रहेगा। को। वह जो नहीं कहा जा सकता है, वह दिखाया। वह अज्ञात जो शेष रह जाता है, सदा शेष रह जाता है, वही कृष्ण विट्गिंस्टीन का बहुत प्रसिद्ध वचन है, देयर आर थिंग्स, व्हिच को रहस्य कहने के लिए प्रेरित करता है। कैन नाट बी सेड, बट कैन बी शोड। विट्गिंस्टीन पश्चिम के दूसरी बात वे कहते हैं, सभी तुझसे कह दूंगा। आधुनिक मिस्टिक, आधुनिक रहस्यवादियों में कीमती आदमी था। इस पर भी विचार कर लेने जैसा है। कहता है, ऐसी चीजें हैं, जो नहीं कही जा सकती, लेकिन बताई जा एक दिन बुद्ध एक वृक्ष के नीचे से गुजर रहे हैं। पतझड़ हो रही सकती हैं। और अगर उसके वचन के लिए कोई गवाही है, तो वे है। पतझड़ है। वृक्षों से सूखे पत्ते नीचे गिरते हैं। हवाएं पत्तों को | | कृष्ण हैं। क्योंकि जब नहीं कह सके वे, तो उन्होंने बताया कि अब उड़ाती हैं। पत्तों की आवाज और ध्वनि जंगल में गूंज रही है। आनंद | तू देख ले। 329
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy