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सगीता दर्शन भाग-3
काश, सभी लोगों को पता होता, तो यह दुनिया बिलकुल दूसरी वे मुश्किल में पड़ जाते हैं। और जो बाप होशियार हैं, वे खुद जमीन हो सकती थी! नहीं, पता नहीं है। शब्द पता हैं। शायद अर्थ भी पता पर लेट जाते हैं और हार जाते हैं। और उनके बच्चे बाद में पछताते है, क्योंकि अर्थ शब्दकोश में मिल जाता है। अभिप्राय पता नहीं है, हैं कि बाप ने बहुत गहरी मजाक कर दी। लेकिन तब कोई आकांक्षा क्या प्रयोजन है!
नहीं है, सिर्फ उस छोटे-से खेल में सब समा गया है। ये कृष्ण कहते हैं कि तू फल कि आकांक्षा छोड़ दे और कर्म कर। - मेरे एक मित्र जापान के एक घर में मेहमान थे। सुबह घर के मैं आपसे कहूंगा, एक चौबीस घंटे के लिए दुनिया नष्ट नहीं बच्चों ने उनको आकर खबर दी कि हमारे घर में विवाह हो रहा है, हो जाएगी-एक दिन प्रयोग कर लें। सुबह छः बजे से दूसरे दिन आप शाम सम्मिलित हों। उन्हें थोड़ी हैरानी हुई, क्योंकि बहुत छोटे सुबह छः बजे तक फल की आकांक्षा छोड़ दें और कर्म करें। और बच्चे थे। तो उन्होंने सोचा कि कुछ गुड्डा-गुड्डी का विवाह करते आपकी जीभ पर स्वाद आ जाएगा। और आपको पता चलेगा कि होंगे। उन्होंने कहा, मैं जरूर सम्मिलित होऊंगा। लेकिन सांझ के कर्म हो सकता है, फल की आकांक्षा के बिना भी। और पहली दफे पहले घर के बड़े-बूढ़ों ने भी आकर निमंत्रण दिया कि घर में विवाह आपके जीवन में ऐसा कर्म होगा, जिसको हम टोटल एक्ट, पूर्ण है, आप सम्मिलित हों। तब वे समझे कि मुझसे भूल हो गई। कर्म कह सकते हैं। क्योंकि मन कहीं नहीं दौड़ेगा; फल की कोई लेकिन जब सांझ को घर के हाल में गए, जहां कि सब आकांक्षा नहीं है। और एक बार आपको स्वाद आ जाए, तो मैं बैंड-बाजा सजा था, तो देखा कि वहां दूल्हा तो नहीं है। वहां तो आपको भरोसा दिलाता हं कि वे चौबीस घंटे फिर कभी खतम नहीं गड़ा ही रखा है और बारात तैयार हो रही है। गांव के आस-पास होंगे। छः बजे शुरू जरूर होगी यात्रा, लेकिन दूसरे छः फिर कभी के बूढ़े भी इकट्ठे हुए हैं; बारात बाहर निकल आई है। तब उन्होंने नहीं बजेंगे।
एक बूढ़े से पूछा कि यह क्या मामला है ? मैं तो सोचता था कि एक बार स्वाद आ जाए, तो आपको पता चले कि इतने निकट बच्चों के खेल बच्चों के लिए शोभा देते हैं, आप लोग इसमें सब जीवन के, इतना बड़ा सागर था आनंद का, हमने कभी नजर न की सम्मिलित हैं! हम चूकते ही चले गए। हमारी गर्दन ही तिरछी हो गई है। हम भागते तो उस बूढ़े ने हंसकर कहा कि अब हमें बड़ों के खेल भी बच्चों ही चले जाते हैं। बस, चूकते चले जाते हैं। देख ही नहीं पाते कि के खेल ही मालूम पड़ते हैं। बड़ों के खेल भी! अब तो जब असली किनारे कोई एक और स्वाद भी है जीवन का। कभी-कभी उसकी | दूल्हा भी बारात लेकर चलता है, तब भी हम जानते हैं कि खेल ही झलक मिलती है किन्हीं कृत्यों में।
है। तो इस खेल में गंभीरता से सम्मिलित होने में हमें कोई हर्ज नहीं कभी आप अपने बच्चे के साथ खेल रहे हैं, कोई फल की है। दोनों बराबर हैं। आकांक्षा नहीं होती। कभी आपने खयाल किया है कि बच्चे के । गांव के बूढ़े भी सम्मिलित हुए हैं। मेरे मित्र तो परेशान ही रहे। साथ खेलने में कैसा आह्लाद! हां, अगर बड़े के साथ खेल रहे हैं, सोचा कि सांझ खराब हो गई। मैंने उनसे पूछा कि आप करते क्या तो उतना आह्लाद नहीं होगा, क्योंकि बड़े के साथ खेल भी काम सांझ को, अगर खराब न होती तो? रेडियो खोलकर सुनते, सिनेमा बन जाता है। बाजी! हार-जीत शुरू हो जाती है। फल की आकांक्षा । देखते, राजनीति की चर्चा करते? सुबह जो अखबार में पढ़ा था, आ जाती है। बाप अपने छोटे-से बेटे के साथ खेल रहा है। कभी उसकी जुगाली करते? क्या करते? करते क्या? कहा, नहीं, करता आपने किसी बाप को अपने छोटे बेटे के साथ खेलते देखा? वैसे तो कुछ नहीं। तो फिर मैंने कहा कि बेकार चली गई, यह खयाल यह घटना दुर्लभ होती जाती है।
कैसे पैदा हो रहा है? बेकार जरूर चली गई, क्योंकि उस घंटेभर में बाप अपने छोटे बेटे के साथ खेल रहा है। हराने का कोई सवाल आपको एक मौका मिला था, जब कि आकांक्षा फल की कोई भी नहीं उठता। हराने का खयाल भी नहीं उठता। हां, खेल में हार जाने न थी, तब आपको एक खेल में सम्मिलित होने का मौका मिला का मजा जरूर वह लेता है। जमीन पर लेट गया है. बेटे को छाती था. वह आप चक गए। मैंने कहा. दोबारा जाना। कोई निमंत्रण न पर बिठा लिया है। बेटा नाच रहा है खुश होकर; बाप को उसने भी दे, तो भी सम्मिलित हो जाना। और उस घंटेभर इस बारात को हरा दिया है!
आनंद से जीना, तो शायद एक क्षण में वह दिखाई पड़े, जो कि सभी बेटे बाप को हराना चाहते हैं। और जो बाप जिद्द करते हैं, फलहीन कर्म है।