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कृष्ण का संन्यास, उत्सवपूर्ण संन्यास -
आज यंत्रों ने किया हुआ है।
तब जो जीवन का एक बहुत अमृत-फूल नष्ट हो जाएगा। तब तो अग्नि छोड़ दे जो उस दिन, उसका सब छूट जाता था। सब! | जीवन की एक बहुत अदभुत सुगंध-क्योंकि जिसने संन्यास नहीं उसके हाथ में कुछ बचता नहीं था। वह सभ्य जीवन से हट जाता जाना, उसने जीवन नहीं जाना—वह नष्ट हो जाएगा, वह खो था। वह असभ्य जीवन की ओर. वन की ओर. अरण्य की ओर जाएगा। कृष्ण का संन्यास बच सकता है। हट जाता था। वह उसी दुनिया में लौट जाता, जहां अग्नि के पहले इसलिए मुझे कई बार लगता है कि गीता भविष्य के लिए बहुत आदमी रहता था, गुफाओं में। हाथ से खाना नहीं पकाता था। आग सार्थक होती चली जाएगी। उसकी दृष्टि भविष्य के लिए रोज जलाकर ठंड से अपने को नहीं बचाता था। वह वहां लौट जाता था। अनुकूल पड़ती चली जाएगी। कृष्ण रोज करीब आते चले जाएंगे। अग्नि छोड़ने का अर्थ यह है, गुफा-मानव की ओर वापस लौट क्योंकि वे गहरी बात कर रहे हैं। वे कह रहे हैं, कहीं कोई जाने की जाए कोई।
जरूरत नहीं है। जहां हो वहीं, सिर्फ एक शर्त पूरी करो और तुम तो भी कृष्ण कहते हैं, वह संन्यासी नहीं है। क्योंकि अगर यह | गृहस्थ न रह जाओगे। एक शर्त पूरी करो, और तुम संन्यासी हो कृत्य भी किसी वासना से प्रेरित होकर हो रहा है, तो संन्यास नहीं है। जाओगे। और वह शर्त है कि तुम वासना मत करो, फल की
कृष्ण कहते हैं, वासनाशून्य कृत्य। कोई भी कृत्य वासना से | आकांक्षा मत करो। शून्य हो जाए, फिर चाहे वह कृत्य कितना ही बड़ा हो। अर्जुन युद्ध | | कठिन होगा समझना कि फल की आकांक्षा कैसे न करें! चौबीस में जाने को खड़ा है। कृष्ण कहते हैं, तू युद्ध में जा। अगर फल की | | घंटे के लिए प्रयोग करके देखें, तो खयाल में आ जाएगा, अन्यथा आकांक्षा छोड़कर जा सके, तो यह युद्ध भी संन्यास है। फिर कोई | शायद जीवनभर समझने से खयाल में न आ सके। हर्ज नहीं है। ।
__ कुछ चीजें हैं इस जीवन में, जो प्रयोग करने से तत्काल समझ . अजीब बात कहते हैं। जो आदमी सब कुछ छोड़कर जंगल की | | में आ जाती हैं। मुंह पर कोई शक्कर का एक टुकड़ा रख दे, और गुफा में चला जाए, उसे कहते हैं, वह भी संन्यास नहीं। अर्जुन जो | तत्काल समझ में आता है कि स्वाद क्या है। एक जरा-सा टुकड़ा, युद्ध में खड़ा है, युद्ध में लड़े, उससे कहते हैं, यह भी संन्यास है! | | एक क्षण की भी देर नहीं लगती, पूरा शरीर खबर देता है कि क्या
कृष्ण का यह वक्तव्य बहुत सोचने जैसा है। सैद्धांतिक अर्थों में | | है। और जिस आदमी ने नहीं स्वाद लिया हो, उसे हम पूरे के पूरे उतना मूल्यवान नहीं, जितना व्यावहारिक अर्थों में मूल्यवान है। जीवनभर समझाते रहें कि स्वाद क्या है; वह कहेगा, आप कहते अगर भविष्य में इस पथ्वी पर कोई भी संन्यास बचेगा. तो वह कष्ण हैं. सब ठीक है। लेकिन फिर भी स्वाद क्या है. अभी समझ में नहीं का संन्यास बच सकता है, और कोई संन्यास बच नहीं सकता है। | आया। उसमें समझ की कोई गलती नहीं है। समझ का काम ही नहीं क्योंकि अगर आज कोई मान ले पुराने संन्यास की धारणा को | | है; अनुभव का काम है। कुछ बातें हैं, जो समझ से समझ में आती पृथ्वी पर साढ़े तीन अरब लोग हैं, अगर ये छोड़कर जंगल में चले | | हैं। बेकार बातें समझने से समझ में आ जाती हैं। गहरी और काम जाएं, तो जंगल में सिर्फ मेला भर जाएगा, और कुछ भी नहीं होगा! की बातें सिर्फ अनुभव से समझ में आती हैं, समझने से समझ में ये जहां जाएंगे, वहीं जंगल नहीं रहेगा। ये कहीं भी चले जाएं, ये नहीं आतीं। जहां जाएंगे, वहीं जंगल सपाट हो जाएगा।
कृष्ण कहते हैं, फल की आकांक्षा छोड़ दो। यह साढ़े तीन अरब लोगों की पृथ्वी, जो रोज बढ़ती जा रही है। हजारों साल से हम सुन रहे हैं। गीता इतनी परिचित है, जितनी इस सदी के पूरे होते-होते और एक अरब संख्या बढ़ जाएगी। और और कोई किताब परिचित नहीं है। मुझसे कोई बोला कि गीता तो वैज्ञानिक कहते हैं कि अगर सौ वर्ष इसी तरह संख्या बढ़ती रही, इतनी परिचित है, आप गीता पर क्यों बोलते हैं? मैंने कहा कि मैं तो आदमी को कोहनी हिलाने की जगह नहीं बचेगी। सब जगह, इसीलिए बोलता हूं, क्योंकि मैं मानता हूं कि गीता के संबंध में बड़ा जहां भी जाएगा, कोई हाथ चारों तरफ लगा रहेगा। अब भागकर | | भ्रम हो गया है कि परिचित है। पढ़ ली, तो हम सोचते हैं, परिचित आप नहीं जा सकेंगे।
है। गीता से ज्यादा अपरिचित किताब मुश्किल है। एक अर्थ में ठीक तो फिर क्या होगा संन्यास का? पुराना गुहा वाला संन्यास तो है कि परिचित है। सभी लोगों के घरों में रखी है और धूल इकट्ठी फिर नहीं हो सकेगा। तो फिर इस पृथ्वी पर संन्यास ही नहीं होगा? | करती है। सभी लोगों को पता है कि गीता में क्या लिखा है।