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________________ 4 गीता दर्शन भाग-3 अभी पश्चिम में इस बात पर काफी चिंतन-मनन चलता है कि | बहुत बड़ी घटना थी। आज हमारे मन में खयाल आएगा कि यह क्या जब आदमी इच्छाएं करता है, तो क्या उसके मन में कोई अंतर बात कहते हैं कृष्ण कि जिसने अग्नि छोड़ दी! आज हमारे लिए पड़ता है इच्छाओं के करने से? जब एक आदमी क्रोध से भरता है,। अग्नि उतनी बड़ी घटना नहीं है। लेकिन जिस दिन यह बात कही गई तब उसके पास वही मन रहता है, जो क्रोध करने के पहले था? | | थी, उस दिन अग्नि उतनी ही बड़ी घटना थी, जितनी अगर हम आज जब एक आदमी क्षमा से भरता है, तब उसके पास वही मन रहता | सोचना चाहें, तो सिर्फ एक ही बात खयाल में आ सकती है। जैसे है, जो क्रोध के वक्त था? आज अगर हम कहें कि जिस व्यक्ति ने यंत्रों का उपयोग छोड़ दिया। तो अब मनोविज्ञान कहता है कि मन तो वही रहता है, लेकिन आज अगर पैरेलल, समानांतर कोई बात कहना चाहें; अगर आज मन के आस-पास की चीजें बदल जाती हैं। जब आदमी क्रोध से | हम कहें कि जिस व्यक्ति ने यंत्रों का उपयोग छोड़ दिया। भरता है, तो शरीर की ग्रंथियां ऐसे जहर को छोड़ देती हैं, जो मन | तो आप सोचें कि यंत्र के उपयोग छोड़ने में करीब-करीब को चारों तरफ से घेर लेता है, पायजनस कर देता है, जैसे दर्पण | जीवन का सब कुछ छूट जाएगा। क्योंकि आज जीवन को यंत्र ने को धूल घेर ले। और जब आदमी प्रेम से भरता है, तो उसकी | | सब तरफ से घेर लिया है। वह आदमी ट्रेन में नहीं बैठ सकेगा। रस-ग्रंथियां उसके सारे शरीर से उस अमृत को छोड़ देती हैं; तब | वह आदमी माइक से नहीं बोल सकेगा। वह आदमी चश्मा नहीं भी मन वही रहता है, लेकिन उसके चारों तरफ रस की धार बहने । लगा सकेगा। वह आदमी कपड़ा नहीं पहन सकेगा। सब यंत्र पर लगती है-उसी आदमी के पास।। निर्भर है। वह आदमी फाउंटेनपेन से नहीं लिख सकेगा। वह कृष्ण और भी गहरी बात कहते हैं। वे कहते हैं कि आदमी की | | आदमी जाकर नाई से बाल नहीं बनवा सकेगा। थोड़ा सोचें कि चेतना तो निर्दोष है ही। बस, तुमने चाहा कि दोष इकट्ठे होने शुरू जिस आदमी ने यंत्र का उपयोग छोड़ दिया, उसके जीवन में क्या हुए। वे भी बाहर ही इकट्ठे होते हैं, भीतर प्रवेश नहीं करते। एक | बच रहेगा? कुछ नहीं बच रहेगा। क्षण को भी कोई इच्छाएं छोड़ दे, तो वे सारे दोष गिर जाते हैं। और उस दिन अग्नि इतनी ही बड़ी घटना थी। तो उस दिन कष्ण कहते तब बुरा कर्म असंभव हो जाता है। लेकिन शुभ कर्म जारी रहता है। हैं कि जिसने अग्नि छोड़ दी। उस दिन सब कुछ अग्नि पर निर्भर सच तो यह है कि जो शक्ति हमारे बुरे कर्म में लगती है, वह सारी । | था: भोजन, जीवन की सुरक्षा, जीवन की व्यवस्था। अग्नि बहुत शक्ति बच जाती है और शुभ कर्म में समायोजित हो जाती है। बड़ी घटना थी। जब तक अग्नि नहीं थी आदमी के पास, तब तक कृष्ण के लिए, कर्म इच्छाओं के कारण से नहीं होते; कर्म जीवन | आदमी इतना असुरक्षित था, कहना चाहिए, सभ्य नहीं था। आदमी के स्वभाव की स्फुरणा है; जीवन की एनर्जी से होते हैं। जहां शक्ति सभ्य हुआ अग्नि के साथ। है, वहां कर्म आएगा। क्योंकि शक्ति कर्म में प्रकट होना चाहती है। ___ अग्नि नहीं थी, तो मांसाहार भोजन के अतिरिक्त और कोई यह परमात्मा इतने बड़े विराट जगत में प्रकट होता है, यह उसकी उपाय न था। या कच्चे फल खा लेता, या मांस खा लेता। अग्नि ऊर्जा है, शक्ति है, जो प्रकट होना चाहती है। जमीन से एक पत्थर थी, तो भोजन पकाकर उसने खाना शुरू किया। अग्नि नहीं थी, तो हटा लिया और एक फव्वारा फूटने लगा। यह फव्वारा कहीं जाने को दिनभर ही घूम-फिर सकता था। रात होते ही खतरे में पड़ जाता था। नहीं फूट रहा है। इसके भीतर ऊर्जा है, वह प्रकट होना चाहती है। चारों तरफ जंगली जानवर थे, उनका भय था। रातभर आधे लोगों आदमी की अगर इच्छाएं गिर जाएं, तो उसके जीवन की पूरी | को पहरा देना पड़ता, आधे लोग सोते। तब भी खतरा हमेशा मौजूद ऊर्जा शुभ में प्रकट होना चाहती है। इच्छाओं रहित चेतना शुभ की | | रहता। सभ्य होने का मौका नहीं था। खाना और रात सो लेना, दो ऊर्जा को प्रकट करने लगती है। काम जीवन की सारी ऊर्जा ले लेते थे। अग्नि ने आकर बड़ा उपाय तो कृष्ण कहते हैं, बुरे कर्म गिर जाएंगे। जो करने योग्य है, वही कर दिया। अग्नि ने सुरक्षा दे दी। जंगल का आदमी चारों तरफ किया जा सकेगा। इसको ही मैं संन्यास कहता हूं। उसको नहीं कि | | अग्नि जलाकर बीच में आराम से सोने लगा। अग्नि पहला देवता जिसने अग्नि छोड़ दी। था, आदमी को सभ्य करने वाला। सभ्यता आई अग्नि के साथ। उन दिनों अग्नि को छोड़ना बहुत बड़ी घटना थी। इसको थोड़ा तो जिस जिन यह सूत्र कहा गया, उस दिन अग्नि ने जीवन को खयाल में ले लें। यह सूत्र जब कहा गया, तब अग्नि को छोड़ना चारों तरफ से इसी तरह सिविलाइज किया था, सभ्य किया था, जैसे
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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