________________
-कृष्ण का संन्यास, उत्सवपूर्ण संन्यास -
खेल में कभी फलहीन कर्म की थोड़ी-सी झलक मिलती है। जो दे, उसमें चुपचाप बह जाओ। कोई आकांक्षा कल की मत लेकिन नहीं मिलती है, हमने खेलों को नष्ट कर दिया है। हमने बांधो, कोई फल निश्चित मत करो, कोई कर्म की नियति मत बांधो, खेलों को भी काम बना दिया है। उनमें भी हम तनाव से भर जाते वह प्रभु पर छोड़ दो। वह उस पर छोड़ दो, जो समग्र को जी रहा हैं। जीतने की आकांक्षा इतनी प्रबल हो जाती है कि खेल का सब है। और ऐसा करते ही व्यक्ति संन्यासी हो जाता है। मजा ही नष्ट हो जाता है।
___ संन्यासी वह है, जिसने कहा कि कर्म मैं करूंगा, फल तेरे हाथ। नहीं, कभी चौबीस घंटे एक प्रयोग करके देखें, और वह प्रयोग संन्यासी वह है, जिसने कहा कि शक्ति तूने मुझे दी है, तो काम आपकी जिंदगी के लिए कीमती होगा। उस प्रयोग को करने के | करवा ले। न मुझे कल का पता है, न मुझे बीते कल का कोई पता पहले इस सूत्र को पढ़ें, फिर प्रयोग को करने के बाद इस सूत्र को है। न मुझे यह भी पता है कि क्या मेरे हित में है और क्या मेरे अहित पढ़ें, तब आपको पता चलेगा कि कृष्ण क्या कह रहे हैं। और एक में है। मुझे कुछ भी पता नहीं है। बाकी तू सम्हाल। जिसने जीवन काम भी अगर आप फल के बिना करने में समर्थ हो जाएं, तो | की परम सत्ता को कहा कि सब तू सम्हाल; मुझमें जो ऊर्जा है, आपकी पूरी जिंदगी पर फलाकांक्षाहीन कर्मों का विस्तार हो | उससे जो काम लेना है, वह काम ले ले। काम मैं करूंगा, फल की जाएगा। वही विस्तार संन्यास है।
बातचीत मुझसे मत कर। ऐसा व्यक्ति संन्यासी है। सच, ऐसा ही . होगा क्या? अगर आप फल की आकांक्षा न करें, तो क्या व्यक्ति संन्यासी है। बनेगा, क्या मिट जाएगा?
संन्यास का अर्थ ही यही है कि जिसने अपनी अस्मिता का बोझ नहीं, प्रत्येक को ऐसा लगता है कि सारी पृथ्वी उसी पर ठहरी अलग कर दिया, जिसने अपने अहंकार का बोझ अलग रख दिया, हुई है! अगर उसने कहीं फल की आकांक्षा न की, तो कहीं ऐसा न जिसने कहा कि अब समर्पित हूं। समर्पण संन्यास है। हो कि सारा आकाश गिर जाए। छिपकली भी घर में ऐसा ही सोचती समर्पित व्यक्ति फल की आकांक्षा नहीं करता। क्योंकि हम है मकान पर टंगी हुई कि सारा मकान उस पर सम्हला हुआ है। जानते ही नहीं कि क्या ठीक है और क्या गलत है। क्या होना चाहिए अगर वह कहीं जरा हट गई, तो कहीं पूरा मकान न गिर जाए! और क्या नहीं होना चाहिए, यह भी हमें पता नहीं है।
हम भी वैसा ही सोचते हैं। हमसे पहले भी इस जमीन पर अरबों । एक अरेबिक कहावत है कि अगर परमात्मा सबकी आकांक्षाएं लोग रह चुके और इसी तरह सोच-सोचकर मर गए। न उनके कर्मों पूरी कर दे, तो लोग इतने दुख में पड़ जाएं, जिसका कोई हिसाब का कोई पता है, न उनके फलों का आज कोई पता है। न उनकी हार नहीं। उस कहावत के पीछे फिर बाद में एक सूफी कहानी वहां का कोई अर्थ है, न उनकी जीत का कोई प्रयोजन है। सब मिट्टी में प्रचलित हुई, वह मैं आपसे कहूं, फिर हम दूसरे सूत्र पर बात करें। खो जाते हैं। लेकिन थोड़ी देर मिट्टी बहुत पागलपन कर लेती है। | सुना है मैंने, एक आदमी ने यह कहावत पढ़ ली कि परमात्मा थोड़ी देर बहुत उछल-कूद; जैसे लहर उठती है सागर में, थोड़ी देर आकांक्षाएं पूरी कर दे आदमियों की, तो आदमी बड़ी मुसीबत में बहुत उछल-कूद; उछल-कूद हो भी नहीं पाती कि गिर जाती है पड़ जाएं। उसकी बड़ी कृपा है कि वह आपकी आकांक्षाएं पूरी नहीं वापस। ऐसे ही हम हैं।
करता। क्योंकि अज्ञान में की गई आकांक्षाएं खतरे में ही ले जा कृष्ण कहते हैं कि जानो तुम कि जिस परमात्मा ने तुम्हें पैदा किया सकती हैं। उस आदमी ने कहा, यह मैं नहीं मान सकता हूं। उसने या जिस परमात्मा की तुम एक लहर हो, जिसने तुम्हें जीवन की परमात्मा की बड़ी पूजा, बड़ी प्रार्थना की। और जब परमात्मा ने ऊर्जा दी, वही तुमसे कर्म करवाता रहा है, वही तुमसे कर्म करवाता आवाज दी कि तू इतनी पूजा-प्रार्थना किसलिए कर रहा है? तो रहेगा। तुम जल्दी मत करो। तुम अपने सिर पर व्यर्थ का बोझ मत उसने कहा कि मैं इस कहावत की परीक्षा करना चाहता हूं। तो आप लो। तुम उसी पर छोड़ दो। तुम इसकी भी फिक्र छोड़ दो कि कल मुझे वरदान दें और मैं आकांक्षाएं पूरी करवाऊंगा; और मैं सिद्ध क्या होगा! जो होगा कल, वह कल देख लेंगे। जो आज हो रहा | करना चाहता हूं, यह कहावत गलत है।
परमात्मा ने कहा कि त कोई भी तीन इच्छाएं मांग ले. मैं परी कर में अपने को छोड़ दे और बह जाए। तैरे नहीं, बह जाए; जस्ट देता हूं। उस आदमी ने कहा कि ठीक। पहले मैं घर जाऊं, अपनी फ्लोटिंग। तैरने का भी श्रम मत करो। बस, बह जाओ। जीवन तुम्हें पत्नी से सलाह कर लूं।
पे कोई पानी