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4 गीता दर्शन भाग-3
दिखाई पड़ेगा, सब है। कंकड़-पत्थर से लेकर हीरे-जवाहरातों पवित्र अहंकार भीतर निर्मित होता है। तक, बुझे हुए दीयों से लेकर जलते हुए महासूर्यों तक, सब है। | अपवित्र अहंकार तो होते ही हैं। एक आदमी कहता है कि मुझसे __तो कृष्ण अर्जुन से कहते हैं-वह उनका अर्थ है कहने का और - ज्यादा दुष्ट कोई भी नहीं। कि मैं छाती में छुरा भोंक दूं, तो हाथ नहीं कारण है-वे कहते हैं कि वेदों की समस्त साधना भी तू कर डाल, धोता और खाना खा लेता हूं। अब इसके भी दावे करने वाले लोग सब यज्ञ कर ले, हवन कर ले, फिर भी इतना न पाएगा, जितना | हैं। यह असात्विक अहंकार की घोषणा है। सिर्फ योग की जिज्ञासा से पा सकता है। और योग को साधे, तब | ध्यान रखना कि आमतौर से हम समझते हैं कि सभी अहंकार तो बात ही अलग है। तब तो प्रश्न ही नहीं उठता। अर्जुन को भरोसा | असात्विक होते हैं, तो गलत समझते हैं। सात्विक अहंकार भी होते दिलाने के लिए कृष्ण की चेष्टा सतत है।
| हैं। और सात्विक अहंकार सटल, सूक्ष्म हो जाता है। __एक आदमी कहता है, मुझसे दुष्ट कोई भी नहीं; एक आदमी
कहता है, मैं तो आपके चरणों की धूल हूं। अब जो आदमी कहता प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिषः। है, मैं आपके चरणों की धूल हूं। मैं तो कुछ भी नहीं हूं। इसका भी अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम् ।। ४५।।। अहंकार है; बहुत सूक्ष्म। इसका भी दावा है। बहुत दावा शून्य अनेक जन्मों से अंतःकरण की शुद्धिरूप सिद्धि को प्राप्त हुआ मालूम पड़ता है, लेकिन दावा है। कोई दावा दिखाई नहीं पड़ता,
और अति प्रयत्न से अभ्यास करने वाला योगी, संपूर्ण पापों क्योंकि यह भी कोई दावा हुआ कि मैं आपके चरणों की धूल हूं! से अच्छी प्रकार शुद्ध होकर उस साधन के प्रभाव से परम लेकिन उस आदमी की आंखों में झांकें। अगर आप उससे कहें गति को प्राप्त होता है अर्थात परमात्मा को प्राप्त होता है। | कि तुम तो कुछ भी नहीं हो, तुमसे भी ज्यादा चरणों की धूल मैंने
देखी है एक आदमी में। एक आदमी मैंने देखा, तुमसे भी ज्यादा।
तुम कुछ भी नहीं हो उसके सामने। तो आप देखना कि उसके भीतर - स सूत्र में दो बातें कृष्ण और जोड़ते हैं। जैसे-जैसे | | अहंकार तड़पकर रह जाएगा; बिजली कौंध जाएगी। उसकी आंखों २ अर्जुन, उन्हें प्रतीत होता है कि समझ पाएगा, समझ | में झलक आ जाएगी। वही झलक, जो आदमी कहता है कि मुझसे
पाएगा, वैसे-वैसे वे कुछ और जोड़ देते हैं। दो बातें ज्यादा दुष्ट कोई भी नहीं। मैं छाती में छुरा भोंक देता हूं, और बिना कहते हैं। वे कहते हैं, शुद्ध हुआ चित्त साधन के द्वारा परम गति को | हाथ धोए पानी पीता हूं। वही झलक! उपलब्ध होता है।
___ अहंकार बहुत चालाक है, दि मोस्ट कनिंग फैक्टर। बहुत शुद्ध हुआ चित्त साधन के द्वारा परम गति को उपलब्ध होता है। चालाक तत्व है हमारे भीतर। वह हर चीज से अपने को जोड़ लेता क्या शुद्ध होना काफी नहीं है? कठिन सवाल है। जटिल बात है। है, हर चीज से! वह कहता है, धन है तुम्हारे पास, तो अकड़कर क्या शद्ध होना काफी नहीं है? और साधन की भी जरूरत पडेगी? खडे हो जाओ. और कहो कि जानते हो. मैं कौन हं। मेरे पास धन इतना ही उचित न होता कहना कि शुद्ध हुआ जिसका अंतःकरण, है। अब तुमने अगर सोचा कि धन की वजह से अहंकार है। छोड़ वह परम गति को उपलब्ध होता है?
दो धन। तो वह अहंकार कहेगा, तेरे से बड़ा त्यागी कोई भी नहीं। लेकिन कृष्ण कहते हैं, अनंत जन्मों में भी शुद्ध हुआ अंतःकरण घोषणा कर दे कि मैं त्यागी हूं, महान! वाला व्यक्ति साधन की सहायता से परम गति को उपलब्ध होता | आपको पता नहीं कि वही अहंकार, जो धन के पीछे छिपा था, है। मेथड, विधि की सहायता से। साधारणतः हमें लगेगा, जो शुद्ध | अब त्याग के पीछे छिप गया है; त्याग को ओढ़ लिया है। और हो गया पूरा, अब और क्या जरूरत रही साधन की? क्या परमात्मा ध्यान रहे, धन वाला अहंकार तो बहुत स्थूल होता है, सबको उसे बिना किसी साधन के न मिल जाएगा?
दिखाई पड़ता है। त्याग वाला अहंकार सूक्ष्म हो जाता है और दिखाई एक छोटी-सी बात समझ लें, तो खयाल में आ जाएगी। जो नहीं पड़ता। शुद्ध हो जाए सब भांति और साधन का प्रयोग न किया हो, तो एक - इसलिए कृष्ण कहते हैं कि अर्जुन, सब भांति शुद्ध हुआ व्यक्ति ही खतरा है, जो अंतिम बाधा बन जाता है। पायस ईगोइज्म, एक भी, साधन की सहायता से प्रभु को उपलब्ध होता है।
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