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<< आंतरिक संपदा
अब ये साधन की इसलिए जरूरत पड़ी। शुद्धि हो जाए, सत्व | बड़ा कष्ट हुआ उस आदमी को। धन छोड़ देने में कष्ट न हुआ आ जाए, सब अंतःकरण बिलकुल पवित्र मालूम होने लगे, लेकिन था। यह सड़क पर बुहारी लगाने में बहुत कष्ट हुआ। कई दफा मन यह प्रतीति एक चीज को बचा रखेगी, वह है मैं। उस मैं को बिना | में खयाल आता कि क्या सड़क पर बुहारी लगाना, यह कोई योग साधन के काटना असंभव है। उस मैं को साधन से काटना पड़ेगा। है? यह कोई साधन है? कई दफा आता बायजीद के पास, पूछने
और योग की जो परम विधियां हैं, वे इस मैं को काटने की का मन होता। बायजीद कहता कि रुक, रुक। अभी पूछ मत। थोड़ा विधियां हैं, जिनसे यह मैं कटेगा। बहुत तरह की विधियां योग और बुहारी लगा। उपयोग करता है, जिनसे कि यह मैं काटा जाए। अलग-अलग बुहारी लगाते-लगाते एक महीना बीत गया, तब बायजीद एक तरह के व्यक्ति के लिए अलग-अलग विधि उपयोगी होती है, | दिन सड़क के किनारे से निकल रहा था। वह धनपति इतने आनंद जिससे यह मैं कट जाए। एक-दो घटनाएं मैं आपसे कहूं, तो | से बुहारी लगा रहा था कि जैसे प्रभु का गीत गा रहा हो। उसने खयाल में आ जाए।
उसके कंधे पर हाथ रखा। उसने लौटकर भी नहीं देखा बायजीद सूफी फकीर हुआ बायजीद। बायजीद के पास, जिस राजधानी को। वह अपनी बुहारी लगाता रहा। बायजीद ने कहा, मेरे भाई, में वह ठहरा था, उस राजधानी का जो सबसे बड़ा धनपति था, नगर सुनो भी! उसने कहा, व्यर्थ मेरे भजन में बाधा मत डालो। बायजीद सेठ था, वह आया। उसने आकर लाखों रुपए बायजीद के चरणों | ने कहा, चल, अब बुहारी लगाने की कोई जरूरत न रही। बुहारी में डाल दिए और कहा बायजीद, मैं सब त्याग करना चाहता हूं। | लगाना भजन बन गया। एक साधन का उपयोग हुआ। स्वीकार करो! बायजीद ने कहा कि अगर तू त्याग को त्याग करना योग हजार विधियों का प्रयोग करता है। योग ने जब पहली दफा चाहे, तो मैं स्वीकार करता हूं। त्याग को स्वीकार नहीं करूंगा। | संन्यासियों को कहा कि तुम भिक्षा मांगो, तो उसका कारण सिर्फ त्याग को भी त्याग करना चाहे, तो स्वीकार करता हूं। उस आदमी साधन था। भिखारी बनाने के लिए नहीं था। बुद्ध खुद सड़क पर ने कहा, मजे की बात कर रहे हैं आप। धन तो त्यागा जा सकता है; भिक्षा मांगने जाते हैं। बुद्ध को भिक्षा मांगने की क्या जरूरत थी? त्याग को कैसे त्यागेंगे! त्याग क्या कोई चीज है?
और जब बुद्ध के पास बड़े से बड़ा सम्राट भी दीक्षित होता है, तो बायजीद ने कहा, साधन का उपयोग करेंगे; त्याग को भी त्याग | वे कहते हैं, भिक्षा मांग। कई बार लोग कहते भी थे कि भिक्षा की करवा देंगे। उस आदमी ने कहा, करो साधन का उपयोग, लेकिन क्या जरूरत है, हमारे घर से इंतजाम हो जाएगा! बुद्ध कहते, जिस मेरी समझ में नहीं आता। यह त्याग तो है ही नहीं! समझिए कि एक | घर को छोड़ दिया, उससे इंतजाम लेगा, तो साधन न हो पाएगा। कमरे में मैं मौजूद हूं, तो मुझे बाहर निकाला जा सकता है। लेकिन उससे इंतजाम मत ले। तू तो सड़क पर भीख मांग। वह आदमी अगर मैं मौजूद नहीं हूं, तो मेरी गैर-मौजूदगी को कैसे बाहर कहता कि कई दफा लोग ऐसा हाथ का इशारा कर देते हैं, आगे निकाला जा सकेगा! .
जाओ. तो बड़ा दख होता है। बद्ध कहते, जिस दिन दुख न हो, उस बायजीद ने कहा, प्यारे, जिसे तू गैर-मौजूदगी कह रहा है, वह | | दिन तेरी भिक्षा छुड़वा देंगे। साधन हो गया। गैर-मौजूदगी नहीं है। वह सिर्फ जो प्रकट अहंकार था, उसका इसलिए बुद्ध ने अपने संन्यासियों को भिक्खु कहा; भिक्षु, अप्रकट हो जाना है। तू टेबल-कुर्सी के नीचे छिप गया है; मांगने वाले। और अधिकतर बड़े परिवार के लोग थे बुद्ध के गैर-मौजूद नहीं है। हम निकालेंगे। साधन का उपयोग करेंगे। भिक्षुओं में, क्योंकि सम्राट वे खुद थे। उनके सारे संबंधी, उनके ___ उसने कहा, अच्छा भाई। मैं तो सोचता था कि सब धन सब मित्र, उनकी पत्नी के संबंधी, वे सब दीक्षित हुए थे। उन छोड़कर–अंतःकरण इस धन की वजह से अशुद्ध होता | | सबको भीख मंगवाई रास्तों पर। है-अशुद्धि के बाहर हो जाऊंगा। तुम कहते हो कि और! और | | बुद्ध जब खुद अपने गांव में आए और भीख मांगने निकले, तो क्या चाहते हो तुम?
उनके पिता ने उनको जाकर रोका और कहा कि अब हद हुई जाती उस फकीर ने कहा कि तू कल से एक काम कर। रोज सुबह | है! क्या कमी है तेरे लिए? कम से कम इस गांव में तो भीख मत सड़क पर बुहारी लगा, कचरे को ढो। फिर जब जरूरत होगी, आगे | | मांग! मेरी इज्जत का तो कुछ खयाल कर। बुद्ध ने कहा, मैं अपनी साधन का उपयोग करेंगे।
इज्जत तो गंवा चुका। तुम्हारी भी गंवा दूं, तो साधन हो जाए। इसे
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