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________________ + गीता दर्शन भाग-3> गई। वेद किसी एक व्यक्ति के द्वारा दी गई शिक्षा नहीं है; अनेक | वेद की व्यवस्थाओं के कारण ही जैन और बौद्ध धर्मों का भेद पैदा व्यक्तियों के द्वारा दी गई शिक्षा है। एक व्यक्ति को दी गई शिक्षा | | हुआ, अन्यथा शायद कभी न पैदा होता। क्योंकि तीर्थंकरों को, जैनों नहीं, अनेक व्यक्तियों को दी गई शिक्षा है। के तीर्थंकरों को भी लगा कि ये वेद किस तरह की बातें करते हैं! और वेद विश्वकोश है। क्षुद्रतम व्यक्ति से श्रेष्ठतम व्यक्ति के महावीर कहते हैं कि दूसरे के लिए भी वैसा ही सोचो, जैसा लिए वेद में वचन हैं। क्षुद्रतम व्यक्ति से! उस आदमी के लिए भी | अपने लिए सोचते हो; और वेद ऐसी प्रार्थना को भी जगह देता है वेद में वचन हैं, जो कहता है कि हे प्रभु, हे देव, हे इंद्र! बगल का कि दुश्मन को नष्ट कर दो! बुद्ध कहते हैं, करुणा करो उस पर भी, आदमी मेरा दुश्मन हो गया है; तू कृपा कर और इसकी गाय के दूध जो तुम्हारा हत्यारा हो। और वेद कहते हैं, पड़ोसी के जीवन को नष्ट को नदारद कर दे। उसके लिए भी प्रार्थना है! कुछ ऐसा कर कि इस कर दे हे देव! और इसको जगह देते हैं। बुद्ध या कृष्ण या महावीर, पड़ोसी की गाय दूध देना बंद कर दे। सभी वेद की इन व्यवस्थाओं से चिंतित हुए हैं। सोच भी न पाएंगे। दुनिया का कोई धर्मग्रंथ इतनी हिम्मत न कर लेकिन मैं आपसे कहूं, वेद का अपना ही रहस्य है। और वह पाएगा कि इसको अपने में सम्मिलित कर ले। लेकिन वेद उतने ही रहस्य यह है कि वेद इनसाइक्लोपीडिया है, वेद विश्वकोश है। इनक्लूसिव हैं, जितना इनक्लूसिव परमात्मा है। विश्वकोश का अर्थ होता है, जो भी धर्म की दिशा में संभव है, वह जब परमात्मा इस आदमी को अपने में जगह दिए हुए है, तो वेद | | सभी संगृहीत है। माना कि यह आदमी दुश्मन को नष्ट करने के कहते हैं, हम भी जगह देंगे। जब परमात्मा इनकार नहीं करता कि लिए प्रार्थना कर रहा है, लेकिन प्रार्थना कर रहा है। और प्रार्थना इस आदमी को हटाओ, नष्ट करो; यह आदमी क्या बातें कर रहा | संकलित होनी चाहिए। यह भी आदमी है; माना बुरा है, पर है। है! यह कह रहा है कि हे इंद्र, मैं तेरी पूजा करता हूं, तेरी प्रार्थना, तथ्य है, तथ्य संगृहीत होना चाहिए। और जब परमात्मा इसे तेरी अर्चना, तेरे नैवेद्य चढ़ाता है, तेरे लिए यज्ञ करता है, तो कुछ स्वीकार करता है, सहता है, इसके जीवन का अंत नहीं करता: ऐसा कर कि पड़ोसी के खेत में इस बार फसल न आए। दुश्मन के | श्वास चलाता है, जीवन देता है, प्रतीक्षा करता है इसके बदलने खेत जल जाएं, हमारे ही खेत में फसलें पैदा हों। दुश्मनों का नाश की, तो वेद कहते हैं कि हम भी इतनी जल्दी क्यों करें! हम भी इसे कर दे। जैसे बिजली गिरे किसी पर और वज्राघात होकर वह नष्ट स्वीकार कर लें। हो जाए, ऐसा उस दुश्मन को नष्ट कर दे। वेद जैसी किताब नहीं है पृथ्वी पर, इतनी इनक्लूसिव। सब धर्मग्रंथ, और ऐसी बात को अपने भीतर जगह देता है! शोभन | किताबें चोजेन हैं। दुनिया की सारी किताबें चुनी हुई हैं। उनमें कुछ नहीं मालूम पड़ता। कृष्ण को भी शोभन नहीं मालूम पड़ा होगा। छोड़ा गया है, कुछ चुना गया है। बुरे को हटाया गया है, अच्छे को इसलिए कृष्ण ने कहा है कि वेदों में जिन सकाम कर्मों की-सकाम रखा गया है। धर्मग्रंथ का मतलब ही यही हो कर्म का अर्थ है, किसी वासना से किया गया पूजा-पाठ, हवन, मतलब ही होता है कि धर्म को चुनो, अधर्म को हटाओ। वेद सिर्फ विधि; किसी वासना से, किसी कामना से, कुछ पाने के लिए किया | | धर्मग्रंथ नहीं है; मात्र धर्मग्रंथ नहीं है। वेद पूरे मनुष्य की समस्त गया—जो भी वेदों में दी गई व्यवस्था है, जो कर्मकांड है, उसको क्षमताओं का संग्रह है। समस्त क्षमताएं! कर-करके भी आदमी जहां पहुंचता है, योग की जिज्ञासा मात्र करने | जान्सन ने, डाक्टर जान्सन ने अंग्रेजी का एक विश्वकोश निर्मित वाला, उसके पार निकल जाता है। सिर्फ जिज्ञासा मात्र करने वाला! किया। विश्वकोश जब कोई निर्मित करता है, तो उसे गंदी गालियां इसका ऐसा अर्थ हुआ, अकाम भाव से जिज्ञासा मात्र करने वाला, | भी उसमें लिखनी पड़ती हैं। लिखनी चाहिए, क्योंकि वे भी शब्द सकाम भाव से साधना करने वाले से आगे निकल जाता है। | तो हैं ही और लोग उनका उपयोग तो करते ही हैं। उसमें गंदी, अकाम का इतना अदभुत रहस्य, निष्काम भाव की इतनी गहराई अभद्र, मां-बहन की गालियां, सब इकट्ठी की थीं। और निष्काम भाव का इतना शक्तिशाली होना, उसे बताने के लिए बड़ा कोश था। लाखों शब्द थे। उसमें गालियां तो दस-पच्चीस कृष्ण ने यह कहा है। ही थी, क्योंकि ज्यादा गालियों की जरूरत नहीं होती, एक ही गाली कृष्ण भी वेद से चिंतित हुए, क्योंकि वेद इस तरह की बातें बता को जिंदगीभर रिपीट करने से काम चल जाता है। गालियों में कोई देता है। वेद से बुद्ध भी चिंतित हुए। सच तो यह है कि हिंदुस्तान में ज्यादा इनवेंशन भी नहीं होते। गालियां करीब-करीब प्राचीन, पथ का 302
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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