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आंतरिक संपदा
छूट जाएगा। बनाए हुए मकान छूट जाएंगे। इज्जत, यश छूट रोशनी की एक किरण आती हो, तो भी भरोसा रहता है कि सूरज जाएगा। लेकिन जो बहुत गहरे तल पर किए गए कर्म हैं, शुभ या बाहर है और मैं बाहर जा सकता हूं! अंधकार आत्यंतिक नहीं है, अशुभ; योग के पक्ष में या योग के विपक्ष में-पक्ष में, तो संपत्ति अल्टिमेट नहीं है। अंधकार के विपरीत भी कुछ है। बन जाएगी; विपक्ष में, तो विपत्ति बन जाएगी। अगर योग के | । एक छोटी-सी किरण उतरती हो छिद्र से घने अंधकार में, तो वह विपक्ष में जीए हैं, तो दिवालिया निकलेंगे और अगले जन्म में छोटी-सी किरण भी उस घने अंधकार से महान हो जाती है। वह अनायास पाएंगे कि दिवालिया हैं। और योग के पक्ष में कुछ किया | घना अंधकार उस छोटी-सी किरण को भी मिटा नहीं पाता; वह है, तो एक महासंपत्ति के मालिक होकर गुजरेंगे और अगले जन्म | छोटी-सी किरण अंधकार को चीरकर गुजर जाती है। में पाएंगे कि सम्राट हैं।
कितना ही विषय-वासनाओं में डूबा हो वैसा आदमी अगले भिखारी के घर में भी योग की संपत्ति वाला आदमी पैदा हो, तो | जन्मों में, लेकिन अगर छोटे-से छिद्र से भी, जो उसने निर्मित किया सम्राट मालूम होता है। और सम्राट के घर में भी योग की संपत्ति से | है, प्रभु की कृपा उसको उपलब्ध होती रहे, तो उसके रूपांतरण की हीन आदमी पैदा हो, तो भिखारी मालूम होता है। एक आंतरिक संभावना सदा ही बनी रहती है। वह सदा ही प्रभु-कृपा को पाता संपदा, उसकी ही बात कृष्ण ने कही है और अर्जुन को भरोसा | रहता है। जगह-जगह, स्थान-स्थान, स्थितियों-स्थितियों से प्रभु दिलाया है।
की कृपा उस पर बरसती रहती है। न मालूम कितने रूपों में, न मालूम कितने आकारों में, न मालूम कितने अनजान मार्गों और
द्वारों से, और न मालूम कितनी अनजान यात्राएं प्रभु की कृपा से पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि सः।। | उसकी तरफ होती रहती हैं। बाहर वह कितना ही उलझा रहे, भीतर • जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते । । ४४ ।। कोई कोना प्रभ का मंदिर बना रहता है। और वह बहत बडा
और वह विषयों के वश में हुआ भी उस पहले के अभ्यास आश्वासन है। से ही, निःसंदेह भगवत की ओर आकर्षित किया जाता है, । कृष्ण कहते हैं, अर्जुन, वह छोटा-सा छिद्र भी अगर निर्मित हो तथा समत्वबुद्धि रूप योग का जिज्ञासु भी वेद में कहे हुए जाए, तो तेरे लिए बड़ा सहारा होगा। सकाम कर्मों के फल का उल्लंघन कर जाता है। और एक दूसरी बात, और भी क्रांतिकारी, बहुत क्रांतिकारी बात
कहते हैं। कहते हैं, योग का जिज्ञासु भी, जस्ट एन इंक्वायरर; योग
का जिज्ञासु भी–मुमुक्षु भी नहीं, साधक भी नहीं, सिद्ध भी ' बातें कृष्ण और जोड़ते हैं। वे कहते हैं कि पिछले जन्मों नहीं—मात्र जिज्ञासु; जिसने सिर्फ योग के प्रति जिज्ञासा भी की हो, 91 में जिसने थोड़ी-सी भी यात्रा प्रभु की दिशा में की हो, वह भी वेद में बताए गए सकाम कर्मों का उल्लंघन कर जाता है,
वह उसकी संपदा बन गई है। अगले जन्मों में विषय उनसे पार निकल जाता है। और वासना में लिप्त हुआ भी प्रभु की कृपा का पात्र बन जाता है। वेद में कहा है कि यज्ञ करो, तो ये फल होंगे। ऐसा दान करो,
अगले जन्म में विषय-वासना में लिप्त हुआ भी-वैसा व्यक्ति | | तो ऐसा स्वर्ग होगा। इस देवता को ऐसा नैवेद्य चढ़ाओ, तो स्वर्ग जिसके पिछले जन्मों की यात्रा में योग का थोड़ा-सा भी संचय है, | में यह फल मिलेगा। ऐसा करो, ऐसा करो, तो ऐसा-ऐसा फल जिसने थोड़ा भी धर्म का संचय किया, जिसका थोड़ा भी पुण्य होता है सुख की तरफ। वेद में बहुत-सी विधियां बताई हैं, जो अर्जन है—वह विषय-वासनाओं में डूबा हुआ भी, प्रभु की कृपा | मनुष्य को सुख की दिशा में ले जा सकती हैं। कारण है बताने का। का पात्र बना रहता है। वह उतना-सा जो उसका किया हुआ है, वह __वेद अर्जुन जैसे स्पष्ट जिज्ञासु के लिए दिए गए वचन नहीं हैं। दरवाजा खुला रहता है। बाकी उसके सब दरवाजे बंद होते हैं। सब | वेद इनसाइक्लोपीडिया है, वेद विश्वकोश है। समस्त लोगों के तरफ अंधकार होता है, लेकिन एक छोटे-से छिद्र से प्रभु का | | लिए, जितने तरह के लोग पृथ्वी पर हो सकते हैं, सब के लिए सूत्र प्रकाश उसके भीतर उतरता है।
वेद में उपलब्ध हैं। गीता तो स्पेसिफिक टीचिंग है, एक विशेष और ध्यान रहे, गहन अंधकार में अगर छप्पर के छेद से भी | शिक्षा है। एक विशेष व्यक्ति द्वारा दी गई; विशेष व्यक्ति को दी
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