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गीता दर्शन भाग - 3 >
उसको ही कहां कर पाए ! अब हम विदा होते आपको और कष्ट न देंगे। हमें कुछ पूछना नहीं है। आपने सब बिना पूछे दिया है। बिना मांगे आपने बरसाया है। सलाह नहीं मांगी थी, तो भी सलाह दी है। आपके हम सिर्फ ऋणी हैं, अनुगृहीत हैं। हम सिर्फ रो सकते हैं, और कुछ कह नहीं सकते।
बुद्ध ने तीन बार पूछा। बुद्ध का नियम था, हर बात तीन बार पूछते थे । अनुकंपा अदभुत है बुद्ध लोगों की। वे तीन बार पूछते थे। पूछना है कुछ? सामने वाला कहता, नहीं। तो भी बुद्ध कहते, पूछना है कुछ? सामने वाला कहता, नहीं। तो भी बुद्ध कहते, पूछना है कुछ ? सामने वाला कहता, नहीं। तब बुद्ध कहते, अब तू ही जिम्मेवार होगा अपनी नहीं का। तीन बार बहुत हो गया। तीन बार पूछकर बुद्ध वृक्ष के पीछे चले गए। आंखें बंद करके वे अपने प्राणों को विसर्जित करने लगे।
जो लोग भी स्वयं को जान लेते हैं, उनके लिए मृत्यु अपने ही हाथ का खेल है। वे मृत्यु में ऐसे ही प्रवेश करते हैं, जैसे आप किसी पुराने मकान को छोड़कर नए मकान में प्रवेश करते हैं। आप नहीं करते ऐसा। आपको तो एक मृत्यु से दूसरी मृत्यु में घसीटकर ले जाना पड़ता है, बड़ी मुश्किल से। क्योंकि आप पुराने मकान को ऐसा जोर से पकड़ते हैं कि छोड़ते ही नहीं। हालांकि वह मकान बेकार हो चुका है; सड़ चुका है; अब उसमें जीवन संभव नहीं है। मृत्यु आती ही तभी है, जब जीवन एक मकान में असंभव हो जाता है।
लेकिन आप कहते हैं, चाहे असंभव हो जाए, चाहे मुझे अस्पताल में उलटा-सीधा लटका दो; चाहे मेरी आंख बंद रहे, नलियां मेरी नाक में पड़ी रहें आक्सीजन की, लेकिन मुझे बचाओ। देखा है अस्पताल में लटके हैं लोग! सिर नीचा है, पैर ऊपर हैं। वजन बंधे हैं, नाक में नलियां लगी हैं। इंजेक्शन दिए जा रहे हैं। मगर वे कहते हैं कि बचाओ। मकान सड़ गया है बिलकुल ; बचने के योग्य नहीं। मौत कृपा करती है कि चलो, ले चलें । तुम्हें नया मकान दे दें। वे कहते हैं, पुराना मकान। पता नहीं पुराना भी छूट जाए और नया न मिले ! बेहोश पड़े रहेंगे, लेकिन बचाओ । मरना नहीं है।
जो आदमी जान लेता है, वह अपने को सहज, सहज, मकान पूरा हुआ तो वह मौत को खुद कहता है, अब ले चल। यह मकान बेकार हो गया।
तो बुद्ध अपने को विसर्जित करने लगे। नए मकान में अब वे जाने को नहीं हैं, क्योंकि अब नए मकान का कोई सवाल नहीं रहा ।
मकानों की जरूरत मन को रहती है। अब मन विसर्जित हो 'चुका' है। | अब बुद्ध परिनिर्वाण में प्रवेश कर रहे हैं। महाशून्य में, अस्तित्व में उनकी यात्रा हो रही है। सरिता सागर में गिर रही है, सदा के लिए।
तब सुभद्र नाम का आदमी भागा हुआ पहुंचा और उसने कहा कि बुद्ध कहां हैं? वे दिखाई नहीं पड़ते ? लोग रो रहे हैं। क्या उनका | अंत हो गया ? एक भिक्षु ने कहा, अंत तो नहीं हुआ है। लेकिन वे अंत में प्रवेश कर रहे हैं। पर, सुभद्र ने कहा, मुझे कुछ पूंछना है। उन लोगों ने कहा, तूने बड़ी देर कर दी सुभद्र! और जहां तक हमें याद है, बुद्ध तेरे गांव से कम से कम तीन या चार बार गुजरे होंगे, तब तू नहीं आया !
उसने कहा, दुकान पर बड़ी भीड़ थी । बुद्ध आते थे जरूर, लेकिन कभी ग्राहक होते; कभी पत्नी बीमार पड़ जाती; कभी बेटे | को कुछ काम आ जाता ; कभी शादी हो जाती। कभी तो ऐसा भी होता कि बहुत धूप होती, तो सोचता कि कौन जाए इतनी धूप में; कभी शीतकाल में आएंगे, तब चला जाऊंगा। फिर कभी शीतकाल में भी आए, तो इतनी सर्दी होती कि घर में बिस्तर में पड़े रहने का मन होता। सोचता कि कौन जाए। अब की दफा जब धूप में आएंगे, तब चला जाऊंगा। ऐसे ही तीस साल बुद्ध मेरे गांव से निकले | जरूर | मेरे गांव के पास से निकले। मैं उन गांवों से निकला जिनमें
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बुद्ध ठहरे हुए थे। लेकिन नहीं; मैंने सोचा, फिर, फिर मिल लेंगे। आज मुझे खबर मिली कि बुद्ध तो विसर्जित हो रहे हैं। तो मैं भागा हुआ आया हूं। मुझे पूछ लेने दें।
भिक्षुओं ने कहा, सुभद्र, इसमें किसका कसूर है ? लेकिन बुद्ध की अनुकंपा, कि बुद्ध वृक्ष के पास से उठकर बाहर आ गए। और उन्होंने कहा कि मेरे जीते जी कोई आदमी खाली हाथ लौट जाए, पूछने आए और लौट जाए! अभी मैं सुन सकता था। तो मेरे ऊपर सदा के लिए एक इल्जाम रह जाएगा कि कोई जानने आया था, और मेरे पास था, जो मैं उसे कह देता। कोई हर्ज नहीं सुभद्र, तीस साल में भी आया, तो जल्दी आ गया। कुछ लोग तीस जन्मों में भी नहीं आते !
कृष्ण एक शुभ क्षण देखकर अर्जुन को कहते हैं कि उसके भीतर चली जाए यह बात नहीं; कुछ नष्ट नहीं होगा अर्जुन ! तू जो भी कमाएगा, वह तेरी संपत्ति बन जाएगी।
और ध्यान रहे, और सब तरह की संपत्तियां इसी जन्म में छूट जाती हैं, सिर्फ योग में कमाई गई संपत्ति अगले जन्म में यात्रा करती है। और सब संपत्तियां इसी जन्म में छूट जाती हैं। कमाया हुआ धन