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________________ आंतरिक संपदा जाता है। आप चौबीस घंटे प्रेम के क्षण में नहीं होते। चौबीस घंटे में कोई | कहता है, बिलकुल ठीक है। घर चला जाता है। अक्सर जो लोग क्षण होता है, जब आपको लगता है, आप ज्यादा प्रेमपूर्ण हैं। कहते हैं, बिलकुल ठीक है बिना सोचे-समझे, बिना भयभीत चौबीस घंटे में कई क्षण ऐसे होते हैं, जब आपको लगता है कि आप हुए और यह मामला ऐसा है कि भयभीत होगा ही कोई। यह पूरी ज्यादा क्रोधपूर्ण हैं। जिंदगी के बदलने का सवाल है। यह जिंदगी और मौत का दांव है, भिखारी सुबह आपके दरवाजे पर भीख मांगते हैं, वे जानते हैं और भारी दांव है। कि सुबह दया की ज्यादा संभावना है सांझ की बजाय। सांझ को ___ अर्जुन जब चिंतित हो गया, यह चिंतित होना शुभ लक्षण है। भिखारी भीख मांगने नहीं आता, क्योंकि वह जानता है कि सांझ | | यह चिंता शुभ लक्षण है। इसलिए कृष्ण ने समझा कि अभी वह द्वार तक आप दिनभर भीख मांगकर खुद इतने परेशान हो गए हैं कि खुला है, अब वे उससे कह दें। कह दें उससे कि घबड़ा मत। आपसे कोई आशा नहीं की जा सकती है। सुबह आप आ रहे हैं | भरोसा रख। जो तू करेगा, वह अगले जन्म में तुझे मिल जाएगा, एक दूसरे लोक से, स्वयं के भीतर की गहराइयों से, जहां मालिक | | अगर यात्रा पूरी भी न हुई तो। कुछ खोता नहीं। अगले जन्म में का निवास है, जहां प्रभु रहता है। सुबह-सुबह के क्षण में आपमें | | सुगति मिल जाती है। वैसा वातावरण मिल जाता है, जहां वह फूल भी थोड़ी मालकियत होती है, थोड़ा स्वामित्व होता है। आप भी अनायास खिल जाए। वैसे लोग मिल जाते हैं। भिखारी नहीं होते। सांझ तक, बाजार के धक्के, दफ्तर की दौड़, तिब्बत में एक बहुत पुरानी योगियों की कहावत है, डू नाट सीक सड़कों की चोट, सब उपद्रव सहकर आप भिखारी की हालत में दि मास्टर, गुरु को खोजो मत। व्हेन दि डिसाइपल इज़ रेडी, दि पहुंच जाते हैं। सांझ आपकी हैसियत नहीं होती कि दे सकें। मास्टर एपियर्स। जब शिष्य तैयार है, तो गुरु मौजूद हो जाता है। ___ इसलिए सांझ, दुनिया में किसी कोने में भीख नहीं मांगी जाती। | बहुत पुरानी, कोई छः हजार वर्ष पुरानी किताब में यह सूत्र है इजिप्त भिखारी भी समझ गए हैं लंबे अनभव से मनसविज्ञान, कि आदमी | की। खोजना मत गुरु को। जब शिष्य तैयार है, तो गुरु मौजूद हो की बुद्धि कब काम कर सकती है दया के लिए। ठीक ऐसे ही गहराई के क्षण भी होते हैं। इसलिए गुरु, पुराना | क्योंकि जीवन के बहुत अंतर्नियम हैं, जिनका हमें खयाल भी गुरु चाहता था कि शिष्य निकट रहे, बहुत निकट रहे। ताकि किसी | नहीं होता, जिनका हमें पता भी नहीं होता। वे नियम काम करते ऐसे क्षण में, जब भी उसे लगे कि अभी द्वार खुला है, वह कुछ | रहते हैं। आपकी जितनी योग्यता होती है, उस योग्यता की व्यवस्था डाल दे। और वह भीतर की गहराई तक पहुंच जाए। के लिए परमात्मा सदा ही साधन जुटा देता है। कृष्ण को लगा है कि यह क्षण अर्जुन का गहरा है। क्यों? क्योंकि | हां, आप ही उनका उपयोग न करें, यह हो सकता है। यह हो अर्जुन पहली दफा उत्सुक हो रहा है कुछ करने को। भय उसका | सकता है कि आप कहें कि नहीं, अभी नहीं। आपका ही वह जो उत्सकता की वजह से ही है। अगर उत्सक न होता. तो वह यह भी ऊपर का मन है. बाधा डाल दे। आपके भीतर के मन को देखकर न पूछता कि कहीं मैं बिखर तो न जाऊंगा! कहीं ऐसा तो न होगा | | तो अस्तित्व ने व्यवस्था जुटा दी, लेकिन आपका ऊपर का मन बाधा कि मेरी नाव रास्ते में ही डूब जाए! इसका पक्का अर्थ यह है कि डाल सकता है। बुद्ध आपके गांव से गुजरें और आप कहें कि आज दूसरी तरफ जाने की पुकार उसके मन में आ गई। दूसरे किनारे की तो मुश्किल है। आज तो दुकान पर ग्राहकों की भीड़ ज्यादा है। खोज का आह्वान मिल गया। चुनौती कहीं स्वीकार कर ली गई है। कैसे आश्चर्य की बात है! ऐसा हुआ है। बुद्ध गांव से गुजरे हैं। इसीलिए तो भय उठा रहा है। इसीलिए भय उठा रहा है। नहीं तो पूरा गांव सुनने नहीं आया है। आखिरी वक्त; बुद्ध के पास एक भय भी नहीं उठाता। वह कहता कि ठीक है, आप जो कहते हैं, आदमी भागता हुआ पहुंचा, सुभद्र। बुद्ध अपने भिक्षुओं से विदा बिलकुल ठीक है। | ले चुके थे। और उन्होंने कहा कि अब मैं शांत होता हूं, शून्य होता __ अक्सर जो लोग एकदम से कह देते हैं कि बिलकुल ठीक है, वे हूं, निर्वाण में प्रवेश करता हूं। अब मैं समाधि में जाता हूं। तुम्हें कुछ वे ही लोग होते हैं, जिन्हें कोई मतलब नहीं होता। मतलब हो, तो पूछना तो नहीं है? एकदम से नहीं कह सकते कि ठीक है। क्योंकि तब प्राणों का भिक्षु इकट्ठे थे, कोई लाख भिक्षु इकट्ठे थे। उन्होंने कहा, हमने सवाल है, कमिटमेंट है। फिर तो एक गहरा कमिटमेंट है। आदमी इतना पाया, हम उसको ही नहीं पचा पाए। हमने इतना समझा, हम | 299
SR No.002406
Book TitleGita Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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